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संतोष गंगवार बने प्रोटेम स्पीकर, जानें कौन बनता है और क्या है उसके अधिकार

बरेली से आठवीं बार सांसद चुने गए संतोष कुमार गंगवार लोकसभा में प्रोटेम स्पीकर बनाये गये हैं। यह पहली मोदी सरकार की केंद्रीय कैबिनेट में श्रम और रोजगार मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का कार्यभार संभाल चुके हैं।

Aditya Mishra
Published on: 30 May 2019 12:45 PM IST
संतोष गंगवार बने प्रोटेम स्पीकर, जानें कौन बनता है और क्या है उसके अधिकार
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बीजेपी सांसद संतोष गंगवार की फ़ाइल फोटो

नई दिल्ली: बरेली से आठवीं बार सांसद चुने गए संतोष कुमार गंगवार लोकसभा में प्रोटेम स्पीकर बनाये गये हैं। यह पहली मोदी सरकार की केंद्रीय कैबिनेट में श्रम और रोजगार मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का कार्यभार संभाल चुके हैं।

प्रोटेम स्पीकर नए सांसदों को शपथ दिलाता है। अमूमन सबसे वरिष्ठ सांसद को यह जिम्मेदारी सौंपी जाती है। उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने संतोश गंगवार को सोशल मीडिया पर प्रोटेम स्पीकर बनने की बधाई तक दे दी थी। हालांकि बाद में उन्होंने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया।

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क्यों नियुक्त किया जाता है प्रोटेम स्पीकर?

प्रोटेम स्पीकर, चुनाव के बाद पहले सत्र में स्थायी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के चुने जाने तक संसद का कामगाज स्पीकर के तौर पर चलाता है यानि संसद का संचालन करता है। सीधे कहें तो यह कामचलाऊ और अस्थायी स्पीकर होता है। बेहद कम वक्त के लिए इन्हें चुना जाता है।

अभी तक ज्यादातर मामलों में परंपरा रही है कि सदन के वरिष्ठतम सदस्यों में से किसी को यह जिम्मेदारी दी जाती है। प्रोटेम स्पीकर तभी तक अपने पद पर रहते हैं जब तक स्थायी अध्यक्ष का चयन न हो जाए।

हालांकि केवल चुनावों के बाद ही प्रोटेम स्पीकर की जरूरत नहीं होती बल्कि उस हर परिस्थिति में प्रोटेम स्पीकर की जरूरत पड़ती है जब संसद में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद एक साथ खाली हो। यह उनकी मृत्यु की स्थिति के अलावा दोनों के साथ इस्तीफा देने की परिस्थितियों में हो सकता है।

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क्या होती हैं प्रोटेम स्पीकर की शक्तियां?

संविधान में प्रोटेम स्पीकर की शक्तियों का जिक्र नहीं किया गया है। प्रोटेम शब्द की बात करें तो यह लैटिन शब्द प्रो टैम्पोर का संक्षिप्त रूप है। जिसका मतलब होता है- कुछ समय के लिए। प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।

टेम स्पीकर ही नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ ग्रहण कराता है। इस कार्यक्रम की देखरेख का जिम्मा उसी का होता है। सदन में जब तक नवनिर्वाचित सांसद शपथ ग्रहण नहीं कर लेते तब तक वे औपचारिक तौर पर सदन का हिस्सा नहीं होते हैं। इसलिए पहले सांसदों को शपथ दिलाई जाती है, जिसके बाद वे अपने बीच से अध्यक्ष का चयन करते हैं।

प्रोटेम स्पीकर वैसे किसी गलत प्रैक्टिस के जरिए वोट करने पर किसी सांसद के वोट को डिसक्वालिफाई कर सकता है। इसके अलावा वोटों के टाई होने की स्थिति में वह अपने मत का इस्तेमाल फैसले के लिए कर सकता है।

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Aditya Mishra

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