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Maharashtra, Jharkhand Election Results 2024: महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव परिणाम: क्या है सियासी संदेश?
Maharashtra, Jharkhand Election Results 2024: महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे की साख दांव पर थी, जबकि झारखंड में हेमंत सोरेन को जेल से लौटने के बाद अपनी स्थिति मजबूत करनी थी। अगर परिणाम देखें तो यह साफ होता है कि महिलाओं के लिए बनाई गई योजनाओं ने दोनों राज्यों में असर दिखाया है।
Maharashtra, Jharkhand Election Results 2024: महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव कई मायनों में एक-दूसरे से मेल खाते हैं। दोनों राज्यों में सत्तारूढ़ दलों पर सत्ता बचाने का दबाव था। दोनों ही जगह महिलाओं के लिए नकद सहायता योजनाएं शुरू की गईं, जो आज परिणामों में निर्णायक नजर आईं। साथ ही, दोनों राज्यों में सहानुभूति लहर की परीक्षा भी थी। महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे की साख दांव पर थी, जबकि झारखंड में हेमंत सोरेन को जेल से लौटने के बाद अपनी स्थिति मजबूत करनी थी। अगर परिणाम देखें तो यह साफ होता है कि महिलाओं के लिए बनाई गई योजनाओं ने दोनों राज्यों में असर दिखाया है। झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने इसका लाभ उठाया है, वहीं महाराष्ट्र में महायुति को इसका फायदा मिला है।
जहां तक सहानुभूति लहर की बात है, झारखंड में आदिवासी मतदाता हेमंत सोरेन के साथ मजबूती से खड़े रहे। लेकिन महाराष्ट्र के परिणाम बताते हैं कि सहानुभूति लहर अब समाप्त हो चुकी है। उद्धव ठाकरे ने न केवल चुनावी हार का सामना किया है, बल्कि असली शिवसेना पर अपना दावा भी खो दिया है। इसी तरह, शरद पवार अपनी पार्टी एनसीपी पर भतीजे के दावे को नहीं रोक पाए। महाराष्ट्र का यह चुनाव राज्य की राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जो अब राजनीतिक स्थिरता की दिशा में कदम बढ़ाएगा। झारखंड भी लंबे समय बाद स्थिर सत्ता की ओर है। इन दोनों राज्यों के चुनाव परिणाम में कई गहरे राजनीतिक संदेश छिपे हैं। यह परिणाम न केवल दलों के लिए आत्ममंथन का समय है, बल्कि राजनीतिक विज्ञान के छात्रों और विश्लेषकों के लिए अध्ययन का भी एक अवसर है।
महाराष्ट्र चुनाव: स्ट्राइक रेट से मिली जीत की कुंजी
महाराष्ट्र के इस बार के विधानसभा चुनाव कई मायनों में चुनौतीपूर्ण रहे। छह प्रमुख पार्टियों के बीच मुकाबला था, जिनमें से चार पार्टियां आपसी टूट-फूट और गद्दारी के आरोप-प्रत्यारोप में उलझी रहीं। बीजेपी के लिए यह चुनाव महत्वपूर्ण था, क्योंकि लोकसभा चुनावों में राज्य में पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा था। वहीं, कांग्रेस को उम्मीद थी कि वह एक बार फिर राज्य की नंबर 1 पार्टी बनकर उभरेगी। लेकिन चुनाव परिणामों ने इन उम्मीदों को पूरी तरह पलट दिया।
अगर स्ट्राइक रेट की बात करें, तो महाराष्ट्र में बीजेपी ने सबसे मजबूत प्रदर्शन किया। पार्टी ने 85% सीटों पर जीत दर्ज की, यानी हर लड़ी 10 में से 8 सीटें बीजेपी के खाते में गईं। बीजेपी के सहयोगी, शिंदे गुट की शिवसेना, 70% स्ट्राइक रेट पर रही वहीं अजित पवार की एनसीपी ने भी 63% का प्रभावशाली स्ट्राइक रेट दर्ज किया। इसके विपरीत, महा विकास अघाड़ी में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट मात्र 18.6% रहा, उद्धव ठाकरे के शिवसेना गुट का 20.6%, और शरद पवार की एनसीपी का केवल 15%। यह आंकड़े साफ तौर पर दिखाते हैं कि जिन पार्टियों ने बेहतर स्ट्राइक रेट दिखाया, वही धड़ा विजेता रहा।
बीजेपी के लिए यह उपलब्धि और भी बड़ी है क्योंकि यह लगातार तीन चुनावों में अकेले 100 सीटों का आंकड़ा पार करने वाली एकमात्र पार्टी बन गई है। बीजेपी ने साबित किया है कि वह अब महाराष्ट्र की सबसे बड़ी और स्थायी राजनीतिक ताकत बन चुकी है। दूसरी ओर, कांग्रेस, जो कभी राज्य की प्रमुख पार्टी हुआ करती थी, आज अपनी राजनीतिक स्थिति के आत्मचिंतन के लिए मजबूर है। यहां तक कि विपक्ष के नेता का पद पाने का दावा करने की स्थिति में भी वह नहीं है।
झारखंड: बीजेपी को चाहिए नया आदिवासी चेहरा
झारखंड के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन आदिवासी बहुल इलाकों में एक बार फिर कमजोर रहा। कोल्हान जैसे क्षेत्रों में चंपई सोरेन जैसे नेताओं की मौजूदगी के बावजूद पार्टी को लाभ नहीं मिला। संथाल, छोटानागपुर और अन्य इलाकों में बीजेपी पिछड़ गई है। इसके पीछे प्रमुख कारण हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से उपजी सहानुभूति लहर रही। हेमंत सोरेन ने चुनाव प्रचार के दौरान "जल, जंगल, ज़मीन" और "जोहार" जैसे स्थानीय मुद्दों को जोर-शोर से उठाया। यह नारा आदिवासी अस्मिता और पहचान से जुड़ गया, जो सोरेन के पक्ष में वोटों को मजबूत करता गया। वहीं, बीजेपी का चुनावी अभियान अधिकतर अवैध घुसपैठ जैसे मुद्दों पर केंद्रित रहा, जो आदिवासी वोटों से जुड़ने में असफल रहा।
बीजेपी की रणनीति की एक और बड़ी कमी यह रही कि असम के मुख्यमंत्री और चुनाव प्रभारी हेमंत बिस्वा सरमा का नेतृत्व राज्य में जरूरत से ज्यादा हावी दिखा। इससे स्थानीय नेताओं और उम्मीदवारों को वह मंच नहीं मिल पाया, जिसकी उन्हें जरूरत थी। राज्य के चुनावी प्रचार में ऐसा लग रहा था जैसे यह "हेमंत बनाम हेमंत" की लड़ाई बन गई हो। बीजेपी के स्थानीय मुद्दे और घोषणाएं केंद्र में आते-आते पीछे छूट गए। इसके अलावा, मुख्यमंत्री मैय्या योजना जैसी योजनाओं के साथ झामुमो का प्रचार महिलाओं के बीच जबरदस्त दिखा। कल्पना सोरेन की लोकप्रियता ने महिलाओं के बीच झामुमो को बड़ी बढ़त दी। इसके उलट, बीजेपी के पास झारखंड में ऐसा कोई महिला चेहरा नहीं था, जो इन चुनावों में प्रभावी अपील कर सके।
कांग्रेस: इस चुनाव की सबसे बड़ी हारी हुई कहानी
इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पास जश्न मनाने लायक कुछ भी नहीं है, सिवाय इसके कि प्रियंका गांधी वायनाड से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंच गई हैं। गांधी परिवार का तीसरा सदस्य संसद में पहुंचा है, लेकिन इससे पार्टी की व्यापक विफलता नहीं छिपती। झारखंड में कांग्रेस का प्रचार हेमंत सोरेन के भरोसे रहा, और जो भी सीटें कांग्रेस के खाते में आई हैं, उनका श्रेय झामुमो और सोरेन को जाता है। महाराष्ट्र में कांग्रेस का हाल और भी खराब रहा, जो उसकी कमजोर रणनीति और नेतृत्व का परिणाम है। महाराष्ट्र में ऐसा प्रतीत हुआ कि कांग्रेस, बीजेपी से अधिक उद्धव ठाकरे की शिवसेना के खिलाफ लड़ रही थी। पार्टी के नेता, जैसे नाना पटोले और बालासाहेब थोराट, मुख्यमंत्री पद की आंतरिक होड़ में एक-दूसरे को कम दिखाने में व्यस्त रहे। लेकिन यह विफलता कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की रणनीतिक कमजोरी की ज्यादा है।
शुरू से ही कांग्रेस का प्रचार अभियान भर्मित था। न तो कोई स्पष्ट नेतृत्व दिखा और न ही कोई ठोस मुद्दा। राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार में संविधान बचाओ जैसे मुद्दों को उठाया, जिसका अधिकतम लाभ पहले ही लोकसभा चुनावों में मिल चुका था। बीजेपी ने हरियाणा के बाद महाराष्ट्र में भी इस नैरेटिव को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। जहां बीजेपी ने हरियाणा चुनाव के तुरंत बाद महाराष्ट्र में अपनी पूरी ताकत झोंक दी, वहीं कांग्रेस अंतिम समय तक सहयोगी दलों के साथ टिकट बंटवारे में उलझी रही। इसके अलावा राहुल गांधी महाराष्ट्र में सक्रिय और आक्रामक प्रचार करते हुए नजर नहीं आए। इसके विपरीत, उन्होंने वायनाड जैसी जीती हुई सीट पर तीन बार दौरा किया, जबकि महाराष्ट्र में जमीन पर अभियान को मजबूती देने की जरूरत थी।
आज महाराष्ट्र की जीत के बाद बीजेपी के लिए सबसे अहम सवाल यह है कि मुख्यमंत्री कौन होगा। क्या पार्टी इतनी बड़ी जीत के बाद भी शिंदे को मुख्यमंत्री बनाए रखेगी, या फिर अपने नेता को आगे लाएगी? झारखंड में, हेमंत सोरेन के मजबूत नेतृत्व के बावजूद, कल्पना सोरेन के उभरने की संभावनाएं बढ़ती दिख रही हैं। हाँ ये जरुर है कि इस चुनाव ने बीजेपी को उसका खोया हुआ आत्मविश्वास लौटा दिया है। हरियाणा में अप्रत्याशित सफलता और महाराष्ट्र में निर्णायक जीत ने लोकसभा में कुछ सीटें गंवाने के अफसोस को कम कर दिया है। ये तो साफ है कि इन नतीजों का असर दिल्ली विधानसभा चुनावों पर भी दिखेगा, जहां बीजेपी लंबे समय से सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही है। इस चुनाव में भी बीजेपी ने यह भी साबित किया है कि वह हर चुनाव को पूरी ताकत और रणनीति के साथ लड़ती है। प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी के आक्रामक प्रचार अभियान और पार्टी की मजबूत संगठनात्मक क्षमता ने उसे चुनावी मैदान में लड़ाकू योद्धा बना दिया है।
दूसरी ओर, कांग्रेस आज न तो सशक्त नेतृत्व के साथ खड़ी है और न ही कोई स्पष्ट रणनीति के साथ। पार्टी के भीतर गहराई तक जड़ें जमा चुकी गुटबाजी, कमजोर प्रचार तंत्र और दिशाहीनता ने उसे लगातार राजनीतिक हाशिये पर धकेल दिया है। यह स्थिति कांग्रेस के लिए आत्ममंथन और सुधार का अंतिम मौका है। यदि अब भी पार्टी अपनी कमजोरियों को दूर नहीं करती, तो शेष राज्यों में भी उसका भविष्य क्षेत्रीय दलों की छत्रछाया में सिमट सकता है। झारखंड इसका स्पष्ट उदाहरण है। वहां कांग्रेस एक सहायक दल बनकर रह गई है, जहां झामुमो के बिना उसका कोई स्वतंत्र राजनीतिक अस्तित्व नहीं है। यह स्थिति कांग्रेस के लिए एक चेतावनी है।
(लेखक राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, राउरकेला में शोधार्थी और फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल के संस्थापक एवं अध्यक्ष हैं।)