आगरा-मथुरा तक कहीं त्रिकोण तो कहीं चौकोर लड़ाई में फंसे घुरंधर, BSP और RLD बिगाड़ रही खेल

आगरा से लेकर मथुरा तक सपा-कांग्रेस गठबंधन और बीजेपी मुकाबले में भले ही एक दूसरे को मानकर चल रहे हैं, लेकिन असलियत में बसपा और राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार इन दोनों प्रमुख दावेदारों के चुनावी समीकरणों को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं।

tiwarishalini
Published on: 10 Feb 2017 10:52 PM GMT
आगरा-मथुरा तक कहीं त्रिकोण तो कहीं चौकोर लड़ाई में फंसे घुरंधर, BSP और RLD बिगाड़ रही खेल
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आगरा-मथुरा तक कहीं त्रिकोण तो कहीं चौकोर लड़ाई में फंसे घुरंधर, BSP और RLD बिगाड़ रही खेल

आगरा-मथुरा तक कहीं त्रिकोण तो कहीं चौकोर लड़ाई में फंसे घुरंधर, BSP और RLD बिगाड़ रही खेल

उमाकांत लखेड़ा

आगरा/मथुरा: ताज नगरी आगरा डिवीजन के अधीन आने वाली सभी मुख्य सड़कों और राष्ट्रीय राजमार्ग आगरा-लखनऊ-दिल्ली से जोड़ने वाले यमुना एक्सप्रेस-वे से जुड़ी सभी सड़कों के दोनों ओर जगह-जगह अखिलेश यादव और राहुल गांधी के बड़े़ चित्रों वाले साझा होर्डिंग हैं। जिसमें लिखा है "यूपी को ये साथ पंसद है"। एक लाइन के नारे का होर्डिंग आने-जाने वालों का ध्यान खींच रहा है।

आगरा से लेकर मथुरा तक सपा-कांग्रेस गठबंधन और बीजेपी मुकाबले में भले ही एक दूसरे को मानकर चल रहे हैं, लेकिन असलियत में बसपा और राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार इन दोनों प्रमुख दावेदारों के चुनावी समीकरणों को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं।

इसकी एक बानगी है आगरा की उत्तर और दक्षिण क्षेत्र की दो अहम सीटें। वैश्य बहुल सीट बीजेपी के कई बार के विधायक जगन गर्ग के पास है। यहां सपा ने इसी समुदाय के अतुल गर्ग को मैदान में उतारकर बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दीं हैं, लेकिन बसपा ने यहां एक ब्राह्मण चेहरे ज्ञानेंद्र गौतम को मैदान में उतारकर अपना ठोस दलित-ब्राह्मण कार्ड खेला है तो चौधरी अजित सिंह ने रालोद के टिकट पर एक रिटायर्ड कर्नल उमेश वर्मा को मैदान में उतार कर सभी महारथियों के चुनावी गणित बिगाड़ डाले हैं।

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कमोबेश यही हालत आगरा दक्षिण सीट पर है। जहां बसपा के ताकतवर मुस्लिम उम्मीदवार जुल्फीकार भुट्टो ने सपा-कांग्रेस के उम्मीदवार नजीर अहमद की राह मुश्किल कर रखी है। हालांकि यहां नोटबंदी से नाराज व्यापारी वर्ग ने कांग्रेस के सपा समर्थित नजीर अहमद को पूरा समर्थन देने का फैसला किया है।

यहां स्टेशनरी की दुकान चला रहे 28 साल के युवा व्यापारी रवि कुमार गुप्ता कहते हैं कि इस प्रदेश को अगर कोई आगे ले जा सकता है तो इसका एकमात्र जवाब है अखिलेश यादव को पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने का मौका देना। लेकिन उनकी बगल में ही उन्हीं की तरह युवा श्याम अग्रवाल कहते हैं कि लोग सपा सरकार की गुंडागर्दी से परेशान रहे हैं।

पांच साल तक दोबारा इन्हीं लोगों को सत्ता की चाभी सौंपने का मतलब है कि एक ही जाति-बिरादरी के लोगों का राज कायम करना। आगरा शहर के शूज कारोबार की सबसे बड़ी मंडी हींग बाजार में काम करने वाले राजकिशोर शर्मा कहते हैं कि मेरा वोट सपा को कभी नहीं गया, लेकिन वे यह कहने से नहीं हिचकते कि इस प्रदेश में पहली बार ऐसा हुआ है कि पांच साल तक राज करने वाले सीएम अखिलेश यादव के खिलाफ लोगों को आमतौर पर कोई निजी शिकायत नहीं है। उनका वोट बीजेपी को जाएगा भले ही सीएम के तौर पर उनकी पंसद अखिलेश यादव हैं।

बसपा ने पश्चिमी यूपी में 11 फरवरी को पहले चरण और 15 फरवरी को दूसरे चरण के मतदान में अपनी बढ़त बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। लोकसभा चुनाव में पूरे प्रदेश में सूपड़ा साफ होने के बाद मायावती ने आगरा से लेकर मथुरा और बाकी सीटों पर एक-एक सीट पर जातीय और सामाजिक समीकरणों को साधकर टिकट दिए हैं। जाहिर है कि बसपा के लिए शहरी और ग्रामीण सभी सीटों पर इस बार करो या मरो की लड़ाई है।

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चमड़ा और शूज निर्माण कारोबार के मामले में आगरा पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है, लेकिन नोटबंदी के बाद आई भारी मंदी के बावजूद पीएम मोदी की नीयत में किसी तरह का खोट मानने को कोई बड़ा शूज व्यापारी तैयार नहीं दिखता।

फ्रीगंज आगरा में स्थित विरोला इंटरनेशनल के वाइस प्रेसीडेंट इशान सचदेव कहते हैं कि नकदी व्यवस्था को खत्म करके देश को पूर्ण डिजिटल इकॉनमी की ओर ले जाने का मोदी सरकार का फैसला बहुत ही दूरगामी और सार्थक है, लेकिन इसके साथ ही चुनाव में अखिलेश यादव का ही पलड़ा भारी दिखता है।

उच्च जातियों खासकर ब्राह्मण और सीमित मात्रा में मुस्लिमों में कांग्रेस का परंपरागत जनाधार लौटने की कोई सूरत नहीं दिख रही, लेकिन बेबाकी से यह सच स्वीकार करने वालों की कमी नहीं है। जो मानते हैं कि अखिलेश और राहुल गांधी के आपस में हाथ मिलाने से कांग्रेस और राहुल की अपनी रेटिंग बढ़ी है।

कई युवा मतदाताओं को लगता है कि अखिलेश के राज में जो कुछ भी गलत काम सरकार और शासन में बैठे लोगों ने किए थे या अपराधियों को सरंक्षण मिला, वह सब कुछ अब गुजरे जमाने की बात हो जाएगी।

आगरा में कई युवा अखिलेश के चाचा शिवपाल ही नहीं मुलायम सिंह की पुरानी कार्यशैली को भी यूपी की जर्जर कानून व्यवस्था को जिम्मेदार मानते हैं, लेकिन साथ ही उन्हें अब भरोसा होता है कि जब सरकार की पूरी कमान अखिलेश यादव के हाथ में आएगी तो सरकार पर आम लोग अब गुंडों को सरंक्षण देने के आरोप नहीं लगा सकेंगे।

यूपी में बीजेपी ने सीएम का चेहरा घोषित करने से परहेज किया है, लेकिन सपा के खिलाफ एंटी इन्कंबेंसी फैक्टर इस बार काम क्यों नहीं कर रहा? इस सवाल पर आगरा के प्रमुख बुद्धीजीवी और एक बड़े व्यवसायी पूरन डावर मानते हैं कि पिछले एक साल में सरकार, प्रशासन और यहां तक कि सपा के भीतर चलाए गए सफाई अभियान ने अखिलेश की रेटिंग को बाकी नेताओं के मुकाबले काफी बढ़ा दिया।

डावर यह भी मानते हैं कि पहली बार अखिलेश की स्वीकार्यता राज्य के उन लोगों में भी बढ़ी है जो कभी सपा को वोट नहीं देते थे। बकौल उनके सपा के सपोर्ट बेस के बाहर लोगों की उम्मीदें जगाने की इस कला ने अखिलेश की निजी छवि को पार्टी के ऊपर पहुंचा दिया।

अगली स्लाइड में पढ़ें आगरा से लेकर मथुरा तक कैसे अजित सिंह फैक्टर ने उड़ा रखी है सबकी नींद

आगरा से लेकर मथुरा तक कैसे अजित सिंह फैक्टर ने उड़ा रखी है सबकी नींद

मथुरा: श्रीकृष्ण जन्मस्थली के निकट बीजेपी उम्मीदवार और राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा के समर्थक जन संपर्क में जुटे हैं। शर्मा समर्थक इस आरोप को बीजेपी के ही भीतर बैठे लोगों की साजिश मानते हैं कि यह उनका बाहरी प्रत्याशी है और दिल्ली में रहता है।

चुनाव के बाद लोग उन्हें दिल्ली कहां ढूंढ़ने जाएंगे। शर्मा समर्थकों को शिकायत है कि हमारे अपने ही लोग बताकर शुरू से ही भारी भ्रम फैलाया जा रहा है जबकि चुनाव जीते तो वे दिल्ली नहीं बल्कि लखनऊ और मथुरा में रहेंगे।

विधायक बनने के बाद उनका दिल्ली में क्या काम। शर्मा की उम्मीदवारी को स्थानीय बीजेपी नेता नगर पालिका अध्यक्ष मनीषा गुप्ता समेत और भी लोगों ने चुनौती दी थी।

मथुरा के पेड़ों (मिठाई), शुगर बेल्ट और रिफाएनरी के लिए मशहूर यह इलाका कभी चौधरी चरण सिंह का गढ़ माना जाता था। साल 2014 में यहां बीजेपी की हेमा मालिनी ने अजित सिंह के बेटे रालोद के जयंत चौधरी को पराजित किया था।

कई लोगों की नजर में सांसद बनने के बाद हेमा मालिनी इस क्षेत्र में ईद का चांद बन चुकी हैं। हेमा के क्षेत्र से गायब रहने का मुद्दा बीजेपी को परेशान कर रहा है।

मथुरा में ऐसे करीब दो दर्जन से ज्यादा मतदाताओं से बात हुई। जिन्होंने पिछली बार लोकसभा में बीजेपी को वोट दिया था, लेकिन इस बार उनमें से ज्यादातर का वोट यहां से रालोद उम्मीदवार डॉ. अशोक अग्रवाल के खाते में जाएगा।

डॉ. अग्रवाल पेशे से बच्चों के डॉक्टर हैं। वह पिछले कई सालों से गरीब तबकों खास तौर मुस्लिम मोहल्लों में नि:शुल्क इलाज कर रहे हैं। इस बार मुस्लिम वोटर भी प्रचार में उनके साथ हैं।

यहां राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि अजित सिंह के उम्मीदवार यूपी में कम से कम 40 से 50 सीटों पर बाकी विरोधी पार्टियों के समीकरणों को बिगाड़ रहे हैं। यह अलग बात है कि अजित सिंह खुद कितनी सीटें जीत पाएंगे इस पर अभी कुछ भी दावा नहीं किया जा रहा।

कांग्रेस-सपा के लिए यह सीट राज्य में प्रतिष्ठा का प्रश्न इसलिए बनी हुई है क्योंकि कांग्रेस विधायक दल के नेता और लगातार तीन बार विधायक रह चुके प्रदीप माथुर यहां से चौथी बार किस्मत आजमा रहे हैं, लेकिन बीजेपी और रालोद के बाद बसपा के योगेश द्विवेदी ने इस बार माथुर की राह कठिन बना दी है।

बहुकोणीय लड़ाई के इस घालमेल के बीच 75 साल के बृजमोहन सारस्वत कहते हैं कि इंदिरा गांधी नसबंदी की वजह से हारी थीं और यूपी में बीजेपी इस बार नोटबंदी की वजह से चुनाव हारेगी।

मथुरा में सबसे बड़ा फैक्टर यह भी है कि इस बार जाट वोट बैंक पूरी तरह बीजेपी से विमुख हो चुका है इसलिए भी यहां इस बार रालोद के टिकट पर मैदान में डटे डॉ. अशोक अग्रवाल को बढ़त दिख रही है क्योंकि वैश्य समाज के साथ ही उन्हें जाट समुदाय का एकतरफा समर्थन मिल रहा है।

जाटों की बीजेपी से पैदा हुई नाराजगी पर राधिका स्वीट्स के मालिक गोपाल चौधरी कहते हैं कि हमारी शिकायत बीजेपी से तो है ही साथ में सपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों से भी है, क्योंकि कोई भी अजित सिंह से समझौते को तैयार नहीं हुआ।

अजित सिंह को सबने अकेला छोड़ा इसलिए जाट समुदाय पूरी तरह रालोद के साथ है। उनका दावा है कि रालोद यूपी में इस बार 35 से ज्यादा सीटें जीतेगी।

उनका दावा है कि किसी भी पार्टी को सरकार बनाने के लिए अपने बल पर बहुमत नहीं मिलने जा रहा। ऐसी सूरत में अजित सिंह नई सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाकर किसानों और व्यापारियों के हितों की लड़ाई लडे़ंगे।

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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