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...तो क्या पीएम मोदी ने सोची समझी रणनीति के तहत दिया था 'अर्बन नक्सलवाद' पर ये बयान!
आदित्य मिश्र
रायपुर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को छतीसगढ़ के दौरे पर थे। यहां पहले चरण को वोटिंग के लिए चुनाव प्रचार की आखिरी तारीख 10 नवम्बर है। 12 नवम्बर को यहां वोट डाले जायेंगे। ये दोनों दिन इस बार के चुनाव के लिए बेहद ही खास दिन माने गये है। यहीं वजह है कि जहां एक तरफ पीएम मोदी छतीसगढ़ का दौरा कर रहे है तो वहीं राहुल गांधी भी यहां पर पहले से डेरा जमाए हुए है।
पीएम ने अपने दौरे के दौरान जगदलपुर में एक जनसभा को संबोधित करते नक्सलवाद पर हमला बोला था। नक्सलवादियों के हाथों मारे गये दूरदर्शन के कैमरामैन का जिक्र करते हुए कहा कि जिन बच्चों के हाथों में कलम और किताब होनी चाहिए थी। उनके हाथों में बंदूक(नक्सलवादी) थमा गई है। ऐसी है नक्सलवाद की मानसिकता। आज शहरी नक्सली एयर कंडीशनर कमरों में रहते है और उनके बच्चे विदेशी यूनिवर्सिटी में पढ़ते है।
लेकिन रिमोट सिस्टम के जरिये वो आदिवासी बच्चों का जीवन तबाह करते रहते है। कांग्रेस इस तरह के लोगों का बचाव करती है। साथ में पीएम ने ये भी कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी ने ही केंद्र में अलग से आदिवासी मंत्रालय बनवाया था। उन्होंने आदिवासियों के कल्याण के लिए काफी काम भी किये थे।
पीएम के इस बयान के आने के बाद राजनीति गर्म हो गई है। सियासत को करीब से देखने वाले जानकार इसे सियासी नफा नुकसान से जोड़कर दिए गये बयान के तौर पर भी देख रहे है। उनका मानना है कि पीएम ने सोची समझी रणनीति के तहत ‘अर्बन नक्सलवाद’ शब्द का इस्तेमाल किया है। इस बयान को देने के पीछे पीएम की शायद ये बताने को मंशा रही होगी कि इतने सालों तक सत्ता में रहने के बाद भी कांग्रेस ने यहां के लोगों के विकास के लिए जो भी जरुरी कदम उठाये जाने चाहिए थे वो नहीं उठाये।
इसी के चलते यहां के लोग पिछड़ते चले गये। बाद में मजबूरी में बंदूक(नक्सली) थामनी पड़ी। कुल मिलाकर पीएम ने कांग्रेस की नाकामियों और बीजेपी सरकार की उपलब्धियों को बताने की कोशिश की। उनका इशारा इस बार के चुनाव में फिर से रमन सरकार को चुनने और कांग्रेस को सत्ता में आने से रोकने की तरफ था। जानकारों का ये भी मानना है कि छतीसगढ़ में चुनाव होने में अब कम समय ही शेष रह गया है। ऐसे में पीएम का ये बयान बीजेपी को सत्ता में लाने में काफ्री मददगार साबित हो सकता है।
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