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हिमाचल चुनाव : आज हमारी कल तुम्हारी, देखो बच्चों बारी-बारी

raghvendra
Published on: 27 Oct 2017 9:17 AM GMT
हिमाचल चुनाव : आज हमारी कल तुम्हारी, देखो बच्चों बारी-बारी
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शिमला। आज हमारी कल तुम्हारी, देखो बच्चों बारी-बारी। हिमाचल प्रदेश के चुनावी नतीजे कुछ ऐसी ही पटकथा बीते 40 साल से लिखते चले आ रहे हैं। अगर कभी जनता ने यहां राजनीतिक दलों - भाजपा और कांग्रेस में से किसी एक को स्पष्ट बहुमत का जनादेश नहीं सुनाया तब भले ही यह फार्मूला उलट गया हो, लेकिन एक बार के बाद से जनता स्पष्ट बहुमत देने लगी है।

इस फॉर्मूले के आईने में अगर हिमाचल प्रदेश के चुनाव को देखा जाय तो वहां कमल का खिलना तय माना जाना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी को हिमाचल की जनता स्पष्ट बहुमत की सरकार देने का मन बना चुकी है। इसे वहां की फिज़ा में पढ़ा जा सकता है।

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कांग्रेस बनाम भाजपा

हिमाचल में इस बार लड़ाई कांग्रेस बनाम भाजपा ही है। भाजपा की कोशिश वीरभद्र सिंह के भ्रष्टाचार का कीचड़ पूरे हिमाचल में इस तरह फैला देने की है ताकि उसे कमल खिलाने के लिए उपजाऊ जमीन मिल सके। 68 सदस्यों वाली यहां की विधानसभा में भाजपा के हाथ 40 से 50 सीट लग सकती हैं और उसके पक्ष में 38 से 42 फीसदी मत आने की उम्मीद जगती है। बीते 2012 के विधानसभा चुनाव में यहां 74.42 फीसदी वोट पड़े थे। कांग्रेस को 36 और भाजपा को 26 सीटें मिलीं। 6 निर्दलीय उम्मीदवार जीते। कांग्रेस ने वीरभद्र सिंह की अगुवाई में सरकार बनाई।

2007 में भाजपा को 41 सीट और 43.78 फीसदी वोट मिले थे। कांग्रेस के हाथ 23 सीट लगी थी। उसे 38.9 फीसदी वोट मिले थे। निर्दलीयों ने 7.97 फीसदी वोट पाये थे लेकिन सिर्फ तीन निर्दलीय जीते थे। बसपा वोट तो 7.26 फीसदी पा गयी थी लेकिन उसे सिर्फ एक सीट मिली थी।

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2003 में कांग्रेस के हाथ 43 सीट और 41 फीसदी वोट लगे थे। भाजपा को 35.38 फीसदी वोट व 16 सीटें मिलीं। 6 निर्दलीय जीते और उन्हें 12.60 फीसद वोट मिले। हिमाचल विकास कांग्रेस को एक सीट और 5.87 फीसदी वोट मिले। इतनी ही सीट लोकतांत्रिक मोर्चा हिमाचल प्रदेश (2.17 फीसदी वोट) को मिली।

1998 में 39 फीसदी वोट पाकर बीजेपी 28 सीट पा सकी जबकि कांग्रेस को 32 सीट और 43.5 फीसदी वोट मिले। हिमाचल विकास कांग्रेस को 9.6 फीसदी वोट मिले थे और उसके 5 विधायक जीते थे। 7.8 फीसद वोट निर्दलीयों को मिले जबकि सिर्फ एक निर्दलीय रमेश धवाला जीते थे। इस साल तीन सीटों पर चुनाव नहीं हुए थे। कांग्रेस ने सरकार बनाई पर वह 6 दिन ही रह सकी क्योंकि भाजपा ने हिमाचल विकास कांग्रेस के 3 और एक स्वतंत्र उम्मीदवार को तोडक़र सरकार गिरा दी थी। इस काम को अंजाम हिमाचल के तत्कालीन भाजपा प्रभारी नरेंद्र मोदी ने दिया था।

हिमाचल विकास कांग्रेस के दो विधायक कांग्रेस का समर्थन नहीं कर सकते थे यह बात मोदी जानते थे। उन्होंने मुख्यमंत्री के घर में रह रहे निर्दल विधायक रमेश धवाला को अर्दली के मार्फत एक नैपकिन पर लिखकर संदेश भिजवाया कि वह बाहर आ जायें तो हम लोग तुम्हें ले लेंगे और बीजेपी की सरकार बनने पर उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलेगी। मोदी का संदेश पाकर धवाला बाहर आ गये और मोदी ने उन्हें अपनी गाड़ी में बिठाकर तत्कालीन राज्यपाल रमादेवी के सामने पेश कर दिया।

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  • 1993 में कांग्रेस को 52, भाजपा को 8, निर्दलीयों को 7 सीट मिली और इन्हें क्रमश: 48.82, 36.14 और 9.67 फीसदी वोट मिले।
  • 1990 के चुनाव में भाजपा को 46 सीट और 41.78 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस को 9 सीट व 36.54 फीसदी वोट मिले। जनता दल भी इस चुनाव में उतरा था। उसके 17 में से 11 उम्मीदवार जीत गए थे और 10.8 फीसदी वोट मिले। एक निर्दल और एक सीपीआई प्रत्याशी जीतने में कामयाब हुआ।
  • 1985 में कांग्रेस के हाथ 55.86 फीसदी वोट लगे व 58 सीटें मिलीं। भाजपा को 7 सीटें और 35.87 फीसदी वोट मिले। दो निर्दल और एक लोकदल का उम्मीदवार जीतने में कामयाब हुआ।
  • 1982 में कांग्रेस को 31, भाजपा को 29, जनता पार्टी को 2 और निर्दलीयों को 6 सीटें मिलीं।
  • 1977 में भारतीय जनता पार्टी थी ही नहीं। लड़ाई जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच थी। जनता पार्टी को 53 सीट हाथ लगी व करीब 49 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस को 9 सीट व 27.36 फीसदी वोट मिले। चुनाव में 6 निर्दल जीते थे। निर्दल के खाते में 21 फीसदी वोट आये थे।
  • 1972 में कांग्रेस को 53 सीट और तकरीबन इतने फीसदी वोट मिले। जनसंघ ने 31 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से 5 जीते। 17.15 फीसदी वोट मिले। 20 फीसदी से थोड़ा अधिक वोट पाने वाली लोक राज पार्टी को केवल दो विधायक मिले थे। उसने 16 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। निर्दल उम्मीदवारों को 28.27 फीसदी वोट मिले थे। सात निर्दल उम्मीदवार विधायक बन भी गये।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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