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भारत किसी फतवे से नहीं बल्कि बाबा साहेब के संविधान से चलेगा: सीएम योगी आदित्‍यनाथ

sudhanshu
Published on: 28 Sep 2018 12:05 PM GMT
भारत किसी फतवे से नहीं बल्कि बाबा साहेब के संविधान से चलेगा: सीएम योगी आदित्‍यनाथ
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गोरखपुर: युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 49वीं एवं राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज की चतुर्थ पुण्यतिथि समारोह के युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज की श्रद्धान्जलि सभा को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि जगद्गुरू रामानन्दाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य महाराज ने कहा कि महन्त दिग्विजयनाथ जी ने राजनीति को धर्म के खूंटे से बाँधा। महन्त दिग्विजयनाथ जी, महन्त अवेद्यनाथ जी और सीएम योगी आदित्यनाथ वैश्विक क्षितिज पर राजनीति और धर्म के द्वन्द्व के उत्तर हैं।

धर्म और राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू

जगद्गुरू रामानन्दाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य महाराज ने कहा कि दुनिया के राजनीतिक इतिहास में इस पीठ ने उस विशिष्ट परम्परा को प्रतिष्ठित किया है, जो धर्म और राजनीति को सिक्के का एक पहलू मानती है। जो परम्परा राजनीति को भी लोक कल्याण का साधन मानती है। भारत की इस सनातन परम्परा के वैचारिक अधिष्ठान को इस पीठ ने वर्तमान युग में व्यवहारिक धरातल पर प्रतिष्ठित किया है। मध्य युग से लेकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम तक व्याप्त धर्म, राष्ट्र और राजनीति को एक साथ साधने का प्रयत्न करने वाले ऋषियों की एक लम्बी परम्परा है। किन्तु वह परम्परा वर्तमान युग में आकर श्रीगोरक्षपीठ में आकार पाती है।

राष्‍ट्रधर्म ही सबसे बड़ा धर्म

जगद्गुरू रामानन्दाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य महाराज ने कहा कि इस मठ के पीठाधीश्वर सीएम महन्त योगी आदित्यनाथ आज राजनीति और धर्म के एकाकार होने के यदि प्रतिमान बने हैं तो उसका श्रेय युगपुरुष महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज एवं राष्ट्रसन्त महन्त महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज उन दृढ़ संकल्पों को जाता है। जहां उन्होंने राष्ट्रधर्म को ही धर्म माना।

उन्‍होंने कहा कि महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज एक क्रान्तिकारी थे। उन्होंने भारत की आजादी के संघर्ष में आधात्मिक पुट दिया। वे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रबल समर्थक थे। जब देश में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को स्वीकार करने अथवा उस पर स्पष्ट मत रखने में शासन सत्ता संकोच कर रही थी, उन्होंने इस बात की स्पष्ट घोषणा की कि हिन्दुत्व ही भारत की राष्ट्रीयता है।

हिंदुत्‍व के वैचारिक अधिष्‍ठान पर भारत का विकास संभव

जगद्गुरू रामानन्दाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य महाराज ने कहा कि भारत का विकास हिन्दुत्व के वैचारिक अधिष्ठान पर ही सम्भव है। आजाद भारत का पुनर्निमार्ण उसकी सांस्कृतिक विरासत पर ही करना होगा। तभी स्वाभिमानी, स्वावलम्बी और सम्प्रव भारत खड़ा होगा। उन्होंने ज्ञान को कर्म में ढालने और कर्म को ज्ञान में ढालने की वह अद्भुत परम्परा प्रारम्भ की। जिसे उनके उत्तराधिकारी पीठाधीश्वरों ने लोक मत का परिष्कार कर लोक जागरण कर भारत में जन-जन तक पहुंचाया। महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज द्वारा जन अभियान चलाकर महन्त दिग्विजयनाथ जी के वैचारिक अधिष्ठान को जनान्दोलन बना दिया गया और महन्त योगी आदित्यनाथ आज उसी जनान्देालन के प्रतिफल है।

युगों-युगों से चला आ रहा द्व्‍ंद

जगद्गुरू रामानन्दाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य महाराज ने कहा कि उन्होंने आगे कहा कि मुहम्मद बिन कासिम से लेकर अंग्रेजी राज तक समाज के प्रबुद्धजनों एवं ब्रिटिशों के बीच यह द्वन्द्व बना रहा कि राजनीति में कार्य करते हुए क्या धर्म की बात की जा सकती है तथा धर्म में राजनीति की जा सकती है। राजनीति के लिए भारतीय प्रतीकों का प्रयोग हो सकता है। यह द्वन्द्व आध्यात्मिक क्षेत्र में भी रहा है। योग और सांख्य एक है या अलग-अलग। भक्ति और योग में दोनों दो धाराये हैं या एक। यह द्वन्द्व आधुनिक युग के प्रबुद्धों में सर्वाधिक प्रभावशाली बना और अब बात-बात पर यह बात कही जाती है कि संवेदनात्‍मक मुद्दों पर राजनीति न की जाय। यह इसलिए कहना पड़ता है कि राजनीति छुट्टा हो गई। वह धर्म और नैतिकता विहिन हो गई। इस पीठ ने इस समस्या का समाधान प्रस्तुत किया।

राष्‍ट्र के नायक रहे हैं महंत दिग्विजयनाथ

उन्होंने आगे कहा कि ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज राष्ट्र के उन नायकों में से हैं। जिन्होंने न केवल अध्यात्मिक क्षेत्र से भारत को उन्नत किया अपितु भारत को स्वतंत्रता दिलाने में अपनी महती भूमिका निभाई। इनके अन्दर सिद्धान्त के प्रति जबरदस्त आक्रामकता दिखती थी। कभी भी सिद्धान्तों के प्रति इन्होंने समझौता नहीं किया। राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज सैद्धान्तिक विनयशीलता के प्रतिमूर्ति थे। किसी भी प्रकार की समस्या लेकर जो भी व्यक्ति उनके पास आता था वे उसकी समस्या का बिना किसी भेद-भाव के त्वरित निदान करते थे। यह एक सन्त ही कर सकता है। दोनों ब्रह्मलीन महाराज को सच्ची श्रद्धान्जलि उनके वैचारिक अभियान को निरन्तर बढ़ाते रहना ही है।

लोकसभा एवं विधानसभा में निष्पक्ष, नीडर आवाज बनी है श्रीगोरक्षपीठ। राजनीति का शुद्धिकरण करने का अभियान महन्त दिग्विजयनाथ जी ने चलाया जो अनवरत अबतक श्रीगोरक्षपीठ की महन्त परम्परा का हिस्सा बन चुकी है।

भारत के विकास की कुंजी हिंदू धर्म और संस्‍कृति के पास

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोरक्षपीठाधीश्वर महन्त योगी आदित्यनाथ ने कहा महन्त दिग्विजयनाथ महाराज एवं महन्त अवेद्यनाथ महाराज ने राष्ट्रधर्म को सभी धर्मो से ऊपर माना। उन्होंने माना कि भारत को यदि भारत बने रहना है तो इसकी कुन्जी सनातन हिन्दू धर्म एवं संस्कृति में है। महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज आनन्दमठ की सन्यासी परम्परा के वे साक्षात् प्रतिमूर्ति थे। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भी तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का आरोप लगा। चैरी-चैरा काण्ड में महन्त दिग्विजयनाथ जी को आरोपित किया गया। ये घटनायें इस बात की प्रमाण है कि गोरक्षपीठ ने उस सन्यासी परम्परा का अनुशरण किया जो मानती रही है। जो राष्ट्रधर्म ही हमारा धर्म है। राष्ट्र की रक्षा भी सन्यासी का प्रथम कर्तव्य है। गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वरों द्वारा प्रारम्भ की गई यह परम्परा आगे भी निरन्तर चलती रहेगी। श्रीगोरक्षपीठ द्वारा संचालित सभी संस्थायें जहाॅ भी जो भी अच्छा हो उसके साथ खड़ी हो और उसके साथ चलें।

महन्त योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हमारे पूर्व के पीठाधीश्वरों में यह स्पष्ट संदेश दिया है कि व्यक्तिगत धर्म से राष्ट्रधर्म बड़ा है। यदि व्यक्ति का विकास चाहिए तो राष्ट्र का विकास उसकी अनिवार्य शर्त है। समर्थ भारत और समृद्धि की पूरी परिकल्पना भारत के संविधान में निहित है। भारत के अनेक मनीषियों एवं बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने भारत का जो संविधान हमें दिया है वह उसी भारत के निर्माण का आधार है जैसा भारत हम चाहते है। इसलिए भारत और भारत की व्यवस्था भारत के संविधान से चलेगी किसी फतवें से नहीं । भारत की ऋषि परम्परा एवं भारत के संत परम्परा ने जिस भारत की परिकल्पना प्रस्तुत की है उसे हमे भारत के संविधान में देख सकते है। भारतीय संस्कृति में छुआछूत, ऊॅचनीच जैसी किसी भेदभाव को स्थान प्राप्त नही है और यही बात भारत का संविधान भी कहता है। श्रीगोरखनाथ मन्दिर में सभी पंथों के योगी-महात्मा रहते है। दोनों ब्रह्मलीन महन्त जी महाराज ने हिन्दुत्व को ही श्रीगोरखनाथ मन्दिर का वैचारिक अधिष्ठान बनाया।

उन्होंने आगे कहा कि श्रीगोरक्षपीठ एवं गोरखपुर के वर्तमान स्वरूप के शिल्पी योगिराज बाबा गम्भीरनाथ और उनके तपस्या से पले बढ़े महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज थे। उन्होंने हर क्षेत्र की अपूर्णता को पूर्णता प्रदान की। नाथ सम्प्रदाय के बिखरे योगी समाज को एक किया और उन्हें धर्म, आध्यात्म के साथ-साथ राष्ट्रोन्मुख किया। हिन्दुत्व के मूल्यों और आदर्शो की पुनस्र्थापना के लिए वे राजनीतिक दलदल में कूदे। हिन्दुत्व को राष्ट्रीयता मानने का उन्होंने जो मंत्र दिया यदि वह मान लिया गया होता तो आज पूर्वोत्तर राज्यों में अलगाववाद और जलता हुआ काश्मीर न होता। वे जानते थे कि वृहद हिन्दू समाज ही राष्ट्रीय एकता की गारन्टी है और हिन्दू समाज की एकता सामाजिक समरसता के बगैर असम्भव है। अतः उन्होंने हिन्दू समाज में सभी के लिए प्रवेश का द्वार खोल दिया था।

उन्होंने कहा कि भारत-नेपाल सम्बन्ध पर नेहरू सरकार को बार-बार ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की सहायता लेनी पड़ी थी। ब्रह्मलीन महाराज के धर्म, राजनीति, शिक्षा, समाज के सन्दर्भ में विचार आज भी प्रासंगिक है। शिक्षा और स्वास्थ्य की दृष्टि से अति पिछड़े इस पूर्वी उ0प्र0 में उन्होंने शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थाओं और तकनीकी शिक्षण संस्थाओं की स्थापना कर हिन्दुत्व आधारित सामाजिक परिवर्तन में अपनी सक्रिय भागीदारी निभायी। अपने समय के वे धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में एक सशक्त हस्ताक्षर थे। महात्मा गांधी द्वारा खिलाफत आन्दोलन के बाद कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति के विरूद्ध कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी राजनीति का शंखनाद किया। आज गोरखपुर में जो कुछ भी गौरव प्रदान करने वाली चीजें हैं उनमें पूज्य दोनों ब्रह्मलीन सन्तों का सर्वाधिक योगदान रहा।

वाराणसी में दलितों के लिए चलाया था आंदोलन

सीएम योगी आदित्‍यनाथ ने कहा कि जब वाराणसी में विश्वनाथ जी के मन्दिर में दलितों का प्रवेश वर्जित था तब महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज ने अपने आन्दोलन के माध्यम से मन्दिर का दरवाजा सबके लिए खुलवाया। इसी प्रकार मेरे गुरूदेव परम् पूज्य राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महन्त अवेद्यनाथ जी महाराज ने मीनाक्षीपुरम् में दलितों को सम्मान दिलाने के लिए आन्दोलन किया तथा उनके साथ बैठकर सहभोज कर हिन्दू समाज को जोड़ने का काम किया। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की संस्थाएँ दोनों ब्रह्मलीन महंत जी महाराज के सपनों को साकार करने में अपनी पूर्ण सामथ्र्य का उपयोग करें यही उन्हें वास्तविक श्रद्धान्जलि होगी।

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