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कांग्रेस के इस कछुए से होगा आरएसएस का मुकाबला, जानिए सेवादल का सफरनामा

Rishi
Published on: 10 Jun 2018 1:39 PM GMT
कांग्रेस के इस कछुए से होगा आरएसएस का मुकाबला, जानिए सेवादल का सफरनामा
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संजय तिवारी

लखनऊ। कभी कांग्रेस सेवादल जैसे संगठन से सीख लेकर स्थापित हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अब कांग्रेस को इतना चिंतित कर दिया है की कांग्रेस को अचानक अपने सेवादल की याद आ गयी है। उसे सेवादल का महत्त्व भी समझ में आ चुका है। संघ और कांग्रेस सेवादल के आपसी सम्बन्धो को बहुत कम लोग ही जानते हैं। संघ की स्थापना से एक वर्ष नौ महीने पूर्व एक जनवरी 1924 को कांग्रेस सेवादल की स्थापना की गयी थी। इसके संस्थापक नारायण सुब्बाराव हार्डिकर थे। सेवादल के बाद 27 सितम्बर 1925 को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अस्तित्व में आया था। इसके संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार थे। अब कांग्रेस पार्टी ने अपने इस पुराने संगठन के विस्तार की योजना भी बना ली है। इसका ऐलान सोमवार को राहुल गाँधी कर सकते हैं।

सहपाठी थे संघ और सेवादल के संस्थापक

यह भी बहुत कम लोग जानते होंगे कि डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और डॉ. नारायण सुब्बाराव हार्डिकर क्लास फेलो थे। शुरुआती दिनों में साथ-साथ सक्रिय थे. लेकिन, हार्डिकर पर गांधीजी का प्रभाव था तो हेडगेवार ‘हिंदू राष्ट्र’ का सपना देख रहे थे। डॉ. हेडगेवार ने अपना अलग रास्ता बनाते हुए संघ का गठन किया. वे हिंदू महासभा से जुड़े हुए थे और जब तक जीवित रहे संघ हिंदू महासभा के यूथ विंग की तरह की काम करता रहा. जबकि, सेवादल ब्रिटिश हुक़ूमत के ख़िलाफ़ संघर्ष के रास्ते पर बढ़ता चला गया. डॉ. राजेंद्र प्रसाद और सुभाषचंद्र बोस से लेकर क्रांतिकारी राजगुरू तक इसके पदाधिकारी रहे।

कांग्रेस से ज़्यादा सेवादल से घबराते थे अंग्रेज

ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान के संगठन लाल कुर्ती का विलय भी सेवादल में करा दिया गया था. आज़ादी के आंदोलन में सेवादल की भूमिका का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि 1931 में सेवादल का स्वतंत्र स्वरूप ख़त्म करते हुए इसे कांग्रेस का हिस्सा बना दिया गय़ा. ऐसा सरदार बल्लभ भाई पटेल की सिफ़ारिश पर किया गया, जिसमें उन्होंने गांधीजी से कहा था कि ‘यदि सेवादल को स्वतंत्र छोड़ दिया गया तो वह हम सबको लील जाएगा’. इसके एक साल बाद ही अंग्रेज़ों ने 1932 में कांग्रेस और सेवादल पर प्रतिबंध लगा दिया. बाद में कांग्रेस से तो प्रतिबंध हटा पर हिंदुस्तानी सेवादल से नहीं।

यात्रा खरगोश और कछुए जैसी

सेवादल और संघ की कहानी भी ‘खरगोश और कछुआ’ जैसी कही जा सकती है. आज़ादी के बाद सेवादल के पास अपना कोई लक्ष्य नहीं रहा. कांग्रेस में यह उपेक्षित हो गया और पिछली पंक्ति में बैठा दिया गया. जबकि, संघ अपने हिंदू राष्ट्र के सपने को साकार करने की दिशा में कछुआ गति से आगे बढता रहा। ऐसे समय जब शिद्दत से यह महसूस किया जा रहा है कि कांग्रेस अपनी जड़ों से उखड़ गई है और अन्य पार्टियां भी यह महसूस कर रही हैं कि संघ के जैसा ही कैडर आधारित संगठन मुक़ाबले के लिए ज़रूरी है, सेवादल का इतिहास उसे रास्ता दिखा सकता है।

ऐसे हुई सेवादल की स्थापना

1923 से पहले आज़ादी के आंदोलन में शामिल कांग्रेस के कार्यकर्ता जेल जाते और माफ़ीनामा लिखकर बाहर आ जाते थे. झंडा सत्याग्रह के दौरान 1921 में हार्डिकर और उनके मित्रों की राष्ट्र सेवा मंडल ने जब माफ़ी मांगने से मना कर दिया तो उनपर कांग्रेस के बड़े नेताओं की निगाह गई. तभी यह सोचा गया कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण की ज़रूरत है। नागपुर सेंट्रल जेल में उन्होंने एक ऐसा संगठन बनाने का निश्चय किया जो कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित कर उनमें फ़ौजी अनुशासन और लड़ने का माद्दा पैदा कर सके. हार्डिकर जेल से बाहर आने के बाद इलाहाबाद जाकर नेहरू जी से मिले और सत्य व अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले लड़ाका संगठन की स्थापना पर चर्चा हुई. इसके बाद 1923 में कर्नाटक में आयोजित कांग्रेस सम्मेलन में सरोजनी नायडू ने हिंदुस्तानी सेवादल बनाने का प्रस्ताव रखा. इसके पहले चेयरमैन नेहरू बनाए गए. इसी संगठन को बाद में कांग्रेस सेवादल के रूप में जाना गया।

बाल्टी में मैला ढोया कार्यकर्ताओ ने

कांग्रेस के बेलगाम सम्मेलन (1924) में पहली बार सेवादल को सैनिटेशन और सिक्युरिटी की व्यवस्था का काम दिया गया था. तब बाल्टियों में मैला उठाया जाता था. सेवादल से जुड़े सभी वर्ग के लोगों ने, चाहे वे ब्राह्मण ही क्यों न हों, सम्मेलन में आए लोगों का मैला साफ़ किया था. इसी सम्मेलन में महात्मा गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था. तब गांधी जी ने कहा था कि हार्डिकर और उनके संगठन के बग़ैर कांग्रेस का अधिवेशन सफल नहीं हो पाता।

हर परेशानी से पार्टी को उबारा

कांग्रेस जब-जब परेशानी में रही है, सेवादल के सिपाही आगे आते रहे हैं। ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार के बाद पंजाब में कांग्रेस के लिए काम करना एकदम मुश्किल था, तब सेवादल ने बंदूकों और गोलियों के बीच रहकर वहां संगठन का काम किया. जब 1977 में सत्ता से बाहर होते ही इंदिरा गांधी की सुरक्षा कम कर दी गई तो सेवादल ने चौबीसों घंटे उनकी सुरक्षा की. राजीव गांधी के सत्ता से बाहर होने पर भी सेवादल की ज़िम्मेदारी बढ़ गई थी। लेकिन हर बार सत्ता मिलते ही संगठन को भूल जाना कांग्रेस की शैली बन गई है. जबकि, भाजपा-संघ के साथ ऐसा नहीं है. सत्ता में रहते हुए भी संगठन पर उनका पूरा ध्यान है. सत्ता मिलते ही भाजपा संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों से जुड़े लोगों को खोज-खोजकर ज़िम्मेदारी का काम सौंप रहे हैं. इससे सत्ता में रहते हुए संगठन और मज़बूत हो रहा है। अब जब कि संघ कांग्रेस मुक्त भारत की तरफ कदम बढ़ा चुका है तब इस संगठन की याद आ गयी है।

संघ की तर्ज पर ध्वज वंदना हर आखिरी रविवार को

अब खबर आ रही है कि महीने के आखिरी रविवार को संघ की तर्ज पर सेवा दल के स्वयंसेवक देशभर में 1 हजार शहरों में ध्वज वंदना कार्यक्रम आयोजित करेंगे। इस दौरान राष्ट्रवाद को लेकर महात्मा गांधी और पंडित नेहरू के सिद्धांतों पर चर्चा होगी। सेवा के मेकओवर की इस योजना पर राहुल गांधी की मुहर लगना बाकी है। कांग्रेस अध्यक्ष सोमवार को सार्वजनिक तौर पर इसका ऐलान कर सकते हैं।सेवा दल के वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि संगठन को दोबारा सक्रिय करने के लिए योजना का ब्लू प्रिंट तैयार कर लिया है। कांग्रेस अध्यक्ष की हरी झंडी मिलने के बाद इसे आगे बढ़ाया जाएगा। सेवा दल के मुख्य आयोजक लालजी भाई देसाई ने कहा- ''कुछ सालों से सेवा दल पहले की तरह सक्रिय नहीं है और हमें कांग्रेस के कार्यक्रमों की जिम्मेदारी सौंपने से भी किनारा किया गया। हम संगठन को फिर मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। सेवा दल को दोबारा खड़ा कर देश सेवा में पार्टी का सहयोग करेंगे।''

मेकओवर के लिए सेवा दल की योजना

लालजी देसाई ने बताया कि अगले 3 महीने तक देशभर में सेवा दल के ट्रेनिंग कैंप लगाए जाएंगे। पहला कैंप 11 जून से मणिपुर में शुरू होगा, जिसमें सेवा दल के स्वयंसेवक और पूर्वोत्तर में कांग्रेस के पदाधिकारी शामिल होंगे। हर महीने के आखिरी रविवार को देश के 1 हजार जिला मुख्यालयों और शहरों में 'ध्वज वंदना' कार्यक्रम कराया जाएगा। इस दौरान स्वयंसेवकों को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और प. जवाहरलाल नेहरू के राष्ट्रवाद, असहिष्णुता, धर्मनिरपेक्षता, बहुसंख्यकवाद के सिद्धांतों पर चर्चा होगी।

देशभर में युवा ईकाई की शुरुआत करेगा सेवा दल

देसाई के मुताबिक, फिलहाल देश के 700 जिले और शहरों में सेवा दल की ईकाई सक्रिय हैं। यहां हमारे स्वयंसेवकों की संख्या 20 से 200 तक है। लोगों को जोड़ने के साथ सेवा दल की एक युवा ईकाई भी शुरू करने की योजना है।

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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