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यहां जानें, पीएम बनने के बाद मोदी आखिर सबसे पहले मालदीव ही क्यों जा रहे हैं?

सामरिक तौर पर मालदीव भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है पिछले कुछ सालों में यहां हालात बदले थे। पूर्व राष्ट्रपति यमीन का रवैया भारत से गैर दोस्ताना हो गया था, जिससे यहां चीन को पैर जमाने का खासा मौका मिला।

Aditya Mishra
Published on: 7 Jun 2019 5:29 PM IST
यहां जानें, पीएम बनने के बाद मोदी आखिर सबसे पहले मालदीव ही क्यों जा रहे हैं?
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नई दिल्ली: सामरिक तौर पर मालदीव भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है पिछले कुछ सालों में यहां हालात बदले थे। पूर्व राष्ट्रपति यमीन का रवैया भारत से गैर दोस्ताना हो गया था, जिससे यहां चीन को पैर जमाने का खासा मौका मिला।

लेकिन पिछले दिनों हुए चुनाव में इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की पार्टी को जीत मिली। अब उनके राष्ट्रपति बनने के बाद मालदीव और भारत के संबंध फिर बेहतर हो गए हैं।

आम चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया जीत के बाद वो अपने दूसरे कार्यकाल में इसी छोटे से देश का पहला आधिकारिक दौरा कर रहे हैं। आइए जानते हैं मालदीव के बारे में

1. मालदीव करीब 1200 द्वीपों का समूह है। ये हिंद महासागर में स्थित एक द्वीप देश है। ये भारत के बहुत करीब है। मालदीव के 200 द्वीपों पर ही स्थानीय आबादी रहती है जबकि 12 द्वीप सैलानियों के लिए हैं, जहां रिसोर्ट, होटल और सैलानियों के घूमने के लिहाज से सुविधाएं हैं।

यहां हर साल करीब छह लाख सैलानी आते हैं। मालदीव में सात प्रांत हैं। हर द्वीप का प्रशासकीय प्रमुख, द्वीप मुख्याधिकारी (कथीब) होता है, जिसे राष्ट्रपति नियुक्त करता है।

2. मालदीव हिंद महासागर में सामरिक रूप से काफी महत्वपूर्ण जगह पर स्थित है। यह हमारे देश के लक्षद्वीप समूह से महज 700 किमी। दूर है। मालदीव एक ऐसे महत्वपूर्ण जहाज मार्ग से सटा हुआ है जिससे होकर चीन, जापान और भारत जैसे कई देशों को ऊर्जा की आपूर्ति होती है। भारत का करीब 97 फीसदी अंतरराष्ट्रीय व्यापार हिंद महासागर के द्वारा ही होता है।

3. हिंद महासागर इलाके में 40 से ज्यादा देश और दुनिया की करीब 40 फीसदी आबादी रहती है। चीन ने एंटी पायरेट्स अभियान के नाम पर 10 साल पहले हिंद महासागर में अदन की खाड़ी तक अपने नौसैनिक जहाज भेजने शुरू किए। जिससे मालदीव का महत्व बढ़ता गया। अब ये अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीति का केंद्र बन गया है।

(माले में भारतीय दूतावास की तस्वीर) पिछले कुछ सालों में चीन के साथ मालदीव की नजदीकियां बढ़ीं थीं। तब चीन का मालदीव के साथ बढ़ता आर्थिक सहयोग भारत के लिए चिंता की बात है। मालदीव के विदेशी कर्ज में करीब 70 फीसदी हिस्सा चीन का हो गया है। चीन का दूतावास भी मालदीव में 2011 में ही खुला। भारत 1972 में ही वहां अपना दूतावास खोल चुका था।

4. हाल के बरसों में जब चीन का दखल बढ़ा तो मालदीव की पिछली सरकार में उसने बड़े पैमाने पर निवेश किया और कई बड़े प्रोजेक्ट्स के लिए देश को कर्ज भी दिए। इस समय मालदीव पर चीन का काफी ज्यादा कर्ज है। हालांकि नई सरकार चीन के प्रोजेक्ट्स को सीमित कर रही है। साथ ही फिर से भारत से दोस्ती को बहाल कर रही है। इसी परिप्रेक्ष्य में मोदी का अपने दूसरे कार्यकाल में सबसे पहले वहां की यात्रा करना अहम है।

5. चीन ने पिछली सरकार में मालदीव के 10 द्वीपों को लीज पर ले रखा है, जहां वो बड़े पैमाने पर अपने जहाजों के रुकने के साथ सैन्य गतिविधियां भी विकसित कर रहा है।

6. मालदीव को 1965 में अंग्रेजों से आजादी मिली। सबसे पहले इस देश को मान्यता भारत ने ही दी थी। यूं भी सदियों से धार्मिक, सांस्कृतिक तौर पर मालदीव भारत के करीब रहा है। मालदीव में करीब 25,000 भारतीय रहते हैं, जो दूसरा सबसे बड़ा विदेशी समुदाय है। मालदीव में हर साल जाने वाले पर्यटकों का करीब छह फीसदी भारत का है। लेकिन हाल के बरसों में चीन के पर्यटक भी बड़े पैमाने पर वहां जाने लगे हैं।

7. मालदीव एक सुन्नी मुसलमान बहुल देश है। पिछले राष्ट्रपति यमीन ने देश में धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा दिया। यहां से काफी नौजवान सीरिया जाकर आईएसआईएस में भर्ती हुए।

8. बारहवीं शताब्दी तक मालदीव हिंदू राजाओं के अधीन रहा। बाद में ये बौद्ध धर्म का भी केंद्र बना। यहां तमिल चोला राजा भी शासन कर चुके हैं। लेकिन उसके बाद ये धीरे धीरे मुस्लिम राष्ट्र में बदलता चला गया। इस्लाम ही मालदीव का शासकीय धर्म है। "एक गैर मुस्लिम मालदीव का नागरिक नहीं बन सकता"।

10. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मालदीव जाना निश्चित तौर पर दोनों देशों के बीच संबंधों को निश्चित तौर पर बेहतर करेगा।



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Aditya Mishra

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