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स्वामी प्रसाद मौर्य बोले- मायावती दलितों को पिटवाकर वोट पक्का करती हैं
अनुराग शुक्ला
लखनऊ: कुछ दिन पहले तक विधानसभा में बसपा की आवाज रहे स्वामी प्रसाद मौर्य अब हाथी से उतर चुके हैं। बसपा प्रमुख मायावती के खिलाफ बीजेपी के पूर्व उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह की बयानबाजी और बसपा के पलटवार पर newztrack.com से उन्होंने सनसनीखेज खुलासा किया।
उन्होंने कहा, 'बसपा प्रमुख मायावती ने एक बार कहा था कि दलित जितना पीटे जाएंगे, उतने ही हमारे पक्के वोट बनेंगे।' मौर्या ने सवाल उठाया कि अगर उन्हें दलित देवी मानते हैं तो देवी भक्तों पर कृपा क्यों नहीं करती। स्वामी प्रसाद मौर्य से newztrack.com की एक्सक्लूसिव बातचीत :
बसपा प्रमुख मायावती खुद को देवी कहती हैं। आप क्या कहेंगे ?
-ये मायावती का घमंड है। वैसे भी self praise has no recommendation। यह अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने वाली बात है। मायावती का घमंड सिर चढ़कर बोल रहा है। यह ओछापन है।
पर मायावती तो कहती हैं कि दलित उन्हें देवी की तरह पूजते हैं ?
-अगर दलित उन्हें देवी की तरह पूजते हैं तो देवी की कृपा दलितों पर क्यों नहीं हो रही है। यह तो दलितों की महानता है कि वह उन्हें देवी की तरह पूजते हैं। इसमें मायावती की क्या भूमिका है। यह कांशीराम जी के कर्मों का फल है कि वह अपने वर्ग के नेता को देवता और देवी की तरह पूजते हैं। पर देवी तो दलितों को सिर्फ कूड़ा-करकट से ज्यादा कुछ नहीं समझती हैं। उन्हें लेकर सिर्फ घडियाली आंसू बहाती हैं।
आप इतना दावे के साथ यह कैसे कह सकते हैं ?
-पिछले साढ़े चार साल में देश में लाखों दलित महिलाओं के साथ बलात्कार, दुराचार, बदसलूकी हुई। दलितों की हत्या हुई। जिंदा जलाने जैसी घटनाएं हुई। उनके घर जला दिए गए। उनकी जमीनों पर कब्जा हुआ। उनके साथ लूट, डैकैती, रेप हुआ। तब देवी कहां थी। इस तरह की हजारों घटनाओं के बाद भी एक भी धरना-प्रदर्शन नहीं हुआ। मायावती के खुद के खिलाफ सिर्फ अपशब्द से इतना पहाड़ खडा हो गया। इसे लेकर एक बार भी बसपा सड़क पर नहीं आई। देवी को दलितों पर दया नहीं आई। देवी को अपने भक्तों की याद नहीं आई।
तब तो आप भी बसपा में ही थे ?
-मैंने तो बार-बार कहा। बार-बार अनुरोध किया। एक बार मैं और नसीमुद्दीन सिद्दीकी खुद एक घटना को लेकर मायावती के पास गए। उनसे अनुरोध किया कि दलितों पर इतना अत्याचार हो रहा है हमें प्रदर्शन धरना कुछ तो करना चाहिए। मैंने तो यह भी कहा कि आपके पास दो-दो नेता विरोधी दल हैं। कहीं मुझे तो कहीं नसीमुद्दीन जी को भेज दीजिए। उनका जवाब था कि 'तुम समझते नहीं हो, तुम्हें कोई समझ नहीं है। दलित जितना पीटा जाएगा उतना ही हमारा पक्का वोट बैंक बनेगा। तुम लोगों को क्या जरूरत है जाने की। कानून को हाथ में लेने की। धरना-प्रदर्शन करने की। वहां जाने की जरुरत नहीं है। ज्यादा लगे तो कोर्ट से इंसाफ दिला दो।'
पर मैंने बार-बार अनुरोध किया कि हमें इस तरह की घटनाओं पर कम से कम जाना तो चाहिए वरना चुनाव में अगली बार किस मुंह से वोट मांगेगे। बहुत विनती करने पर उन्होंने कहा कि अच्छा ठीक हैं मैं कोआर्डिनेटरों को बोलती हूं कि जिसके क्षेत्र का मामला है वह एक बार दलित के घर चला जाए इससे ज्यादा कुछ नहीं।
बसपा से आप निकले तो आपने टिकट बेचने का आरोप लगाया था ?
-हां, मायावती कहती हैं कि वो देवी हैं। एक मायने में यह सच है कि उनका तो सारा काम चढावे से होता है। पुराने से पुराने कार्यकर्ता को बिना पैसे के टिकट नहीं मिलता है। विधानसभा चुनाव के टिकट की बोली लगी है। कम से कम डेढ करोड़ का है एक टिकट। इसके बिना किसी को टिकट नहीं मिल रहा है। अब तो काडर को भी नहीं बख्शा जाता है। स्तर तो इतना नीचे हो गया है कि पंचायत चुनाव में सदस्य के लिए भी ढाई-ढाई लाख रुपए लिए जा रहे हैं। न तो काडर, न कार्यकर्ता । मायावती को किसी से मतलब नहीं। पैसे से मतलब है वो समाज की आंख में धूल झोंक रही हैं।
मायावती तो कहती हैं कि वो मिशन चला रही है ?
-मायावती को न तो दलितों से मतलब है न ही पिछडों से। दलित और पिछडे भी समझ चुके हैं कि उन्हें न तो बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर से मतलब है न ही कांशीराम जी से। इन्हें सिर्फ पैसों से मतलब है। अपनी व्यक्तिगत शानो शौकत से मतलब है। अपनी सुरक्षा और अपना सम्मान ही इनके लिए महत्वपूर्ण है। दलित समाज के सम्मान की तो इन्हें चिंता ही नहीं है।
सुना है अब पार्टी में काडर को बहुत अपमानित भी किया जाता है। क्या सच्चाई है?
-काडर को बेइज्जत करना मायावती की बसपा की पुरानी परंपरा है। यहां पर सभी पदाधिकारी काडर को बेइज्जत करते हैं। जब तक मैं था तब तक गनीमत थी। आपने तो खुद देखा है कि कार्यकर्ताओं का सबसे ज्यादा तांता मेरे ही घर और ऑफिस में लगता था। हर दिन दर्जनों की तादाद में अपमानित हुए कार्यकर्ता मेरे पास आते थे। मैं सबसे सम्मान से मिलता था और उनकी बात सुनकर उनका काम कराने की कोशिश करता था।
बसपा के वर्तमान कोआर्डिनेटर को आप क्या कहेंगे ?
-वे सिर्फ कलेक्शन एजेंट हैं। 'संग्रह अमीन' बल्कि यूं कहें कि 'कुर्क अमीन'। उन्हें सिर्फ बता दिया जाता है कि उन्हें पैसा लाना है। वह सिर्फ इसी में दिन-रात लगे रहते हैं। उनका टारगेट पूरा करने की चिंता उन्हें और कोई दूसरा काम या दलित समाज की भलाई करने ही नहीं देता।
बसपा के प्रदर्शन में भीड़ आई थी पर उतनी नहीं जितना दावा था ?
-दरअसल यह भीड़ टिकटार्थियों की थी। इसमें काडर के लोग थे ही नहीं। रातों-रात टिकट चाहने वालों की संदेश पहुंचा कि इतनी भीड़ लानी है। वही लोग भीड़ लेकर पहुंच गए।
हालिया घटनाक्रम पर क्या कहेंगे?
-गाली गलौज और हिंसा का लोकतंत्र मे कोई स्थान नहीं है। अपशब्द सही नहीं है। किसी के खिलाफ नहीं बोला जाना चाहिए। न तो मायावती जी के खिलाफ और न ही दयाशंकर या उनके परिवार के खिलाफ। इसे किसी भी तरह औचित्यपूर्ण नहीं ठहराया जा सकता। इसकी सभ्य समाज में कोई जगह नहीं है।