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Politician Balkavi Bairagi Biography: साहित्य मेरा धर्म और राजनीति मेरा कर्म है, मैं सिर्फ साधारण से साधारण एक इंसान हूं - बाल कवि बैरागी

Balkavi Bairagi Biography: आज हम आपको बाल कवि बैरागी के शुरूआती जीवन से लेकर उनके राजनैतिक जीवन के हर पहलु के बारे में आपको बताने जा रहे हैं आइये विस्तार से जानते हैं।

Jyotsna Singh
Published on: 9 Feb 2025 12:44 PM IST
Famous Hindi Poet And Former MP Politician Balkavi Bairagi Biography
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Famous Hindi Poet And Former MP Politician Balkavi Bairagi Biography (Image Credit-Social Media)

Balkavi Bairagi Biography in Hindi: साहित्य मेरा धर्म और राजनीति मेरा कर्म है। मैं मूलतः आस्थावान व्यक्ति हूँ। धर्म निरपेक्षता का अनुयायी हूँ। मैं सिर्फ साधारण से साधारण एक इंसान हूं और इसी रूप में अपनी पहचान कायम रखना चाहता हूं। ये शब्द हैं राजनेता और साहित्यकार बाल कवि बैरागी के, जिन्होंने दोनों ही क्षेत्र में एक मुकाम हासिल किया। राजनीति के साथ-साथ बाल कवि बैरागी कवि सम्मेलनों के मंच पर भी काफी लोकप्रिय रहे। बाल कवि बैरागी ने आम आदमी से लेकर संसद तक लोगों के बीच अपने सरल स्वभाव से एक अलग पैठ बनाई। एक राजनेता होते हुए भी उनके हर किसी के साथ बेहद आत्मीय संबंध थे। लोकप्रिय रूप से राष्ट्रकवि बालकवि बैरागी के लिखे कई गीतों को फिल्मों में भी शामिल किया गया। वह उन कई लोगों में से एक थे जिन्हें राष्ट्रकवि के रूप में सम्मानित किया गया है। वह 1998 से 2004 तक मध्य प्रदेश से राज्यसभा के सांसद थे। वे एक स्वाभिमानी व्यक्तित्व के स्वामी थे. इस बात का पता उनकी इस कविता से भी चलता है- चाहे सभी सुमन बिक जाएं चाहे ये उपवन बिक जाएं चाहे सौ फागुन बिक जाएं पर मैं गंध नहीं बेचूंगा- अपनी गंध नहीं बेचूंगा।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

हिन्दी कवि और लेखक बालकवि बैरागी जी का जन्म 10 फरवरी 1931को मंदसौर की मनासा तहसील के रामपुरा गाँव में एक वैष्णव ब्राह्मण (बैरागी) परिवार में हुआ था। मूल नाम नंद रामदास बैरागी, वे लोकप्रिय रूप से “बालकवि“ बैरागी के रूप में जाने जाते थे। वे बालपन से ही कविता लिखने लगे थे। बताते हैं कि, जब बाल कवि बैरागी चौथी कक्षा में थे तो उन्होंने व्यायाम के ऊपर एक कविता लिखी। इस कविता पर उन्हें पुरस्कार भी मिला था। उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय , उज्जैन से हिंदी में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। साहित्यकार बैरागी ने कई हिंदी कविताएं लिखीं और बच्चों के लिए खूब लिखा। उनकी कविता “झर गए पात, बिसर गई तेहनी“ को हिंदी कवियों द्वारा एक उत्कृष्ट कृति माना जाता है। उन्होंने कम से कम एक दर्जन हिंदी फ़िल्मों के लिए गीत लिखे, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध फ़िल्में रेशमा और शेरा और अनकही हैं।

उनकी इन उपाधियों की पीछे एक कठिन संघर्ष छिपा हुआ था। अपने इस संघर्ष को छिपाने की जगह उन्होंने इसे अपना मील का पत्थर माना। एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने बताया कि, हाईस्कूल तक शिक्षा मैंने ननिहाल रामपुरा में 1944 से 1947 तक पूरी की। रामपुरा मेरा जन्मस्थान-नगर है। मनासा से 32 कि.मी. दूर। यहीं से मैंने बमुश्किल मैट्रिक (10वीं) पास की। परीक्षा देने इन्दौर-होल्करों की राजधानी जाना होता था। भिक्षावृत्ति एकमात्र सहारा था। रामपुरा-मनासा की दूरी प्रायः पैदल तय करता था। मनासा में परिवार के लिए और रामपुरा में खुद के लिए भीख मांगता था। भीख में आटा, रोटी और कपड़ों के साथ कापियाँ, पुस्तकें, कलमें, सब मांगना पड़ता था। यही कलमें और कापियां किताबें मेरी शिक्षा का एक मात्र सहारा बनीं थीं।

पारिवारिक पृष्ठभूमि

इनके माता-पिता अच्छे गायक थे। घर में संगीत का वातावरण था। परिवार का पारम्परिक व्यवसाय था मन्दिर में पूजा और भिक्षावृत्ति। पिता जन्म से ही विकलांग और लाचार थे। वे गर्भ से ही अपने दोनों पैरों और दाहिने हाथ से विकलांग हो चुके थे। पिताजी छोटी सारंगी (चिकारा) अच्छा बजाते थे। मां के पास एक बेहतरीन आवाज के साथ लोकगीत और सन्त गीत थे। सारा घर का माहौल सुरमय था। बैरागी भी कभी पिताजी और माँ के साथ गाया करते थे।

बैरागी जी की पत्नी का नाम सुशील चन्द्रिका बैरागी, 7 मई, 954 को इनका विवाह सम्पन्न हुआ। बड़ा पुत्र है सुशील नन्दन बैरागी (मन्ना बैरागी)। पुत्र वधू है-सौ. कृष्णकान्ता बैरागी (उज्जैन)। पोती रौनक बैरागी-उसकी शिक्षा है बी.एस. सी./एम. ए. (लोक प्रशासन) प्रथम श्रेणी, गोल्ड मेडलिस्ट, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, नेट परीक्षा उत्तीर्ण। (राजस्थान प्रशासन सेवा की परीक्षा भी उसने पास की है)। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से विनिवेश विषय में पी.एच.डी. हासिल की है। पोता है-नमन बैरागी, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इन्दौर से बी. ई. पास किया है। वर्तमान में एच. एस. बी. सी. मल्टीनेशनल कम्पनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और फिलहाल अमेरिका में बफेलो में पदस्थ। दूसरा बेटा है-सुशील वन्दन बैरागी (गोर्की बैरागी) और पुत्रवधू का नाम है श्रीमती नीरजा (सक्सेना) भोपाल। उसकी दो बेटियाँ हैं -बड़ी बेटी-कुमारी अभिसार बैरागी, जो कोलकाता विश्वविद्यालय, कोलकाता में एल. एल. बी. (कानून) की पढ़ाई है और दूसरी-कुमारी अनमोल बैरागी हैं। बैरागी जी द्वारा अपनी पारिवारिक स्थिति को लेकर दिए गए एक वक्तव्य में बताया गया था कि, उनके परिवार में कुल 12 भाई-बहन पैदा हुए। मैं सबसे बड़ा (जेठा) हूँ। हम दो भाई और दो बहनें इस समय जीवित हैं। मेरे भाई-बहन कुपोषण और अकाल मृत्यु से मरे। उपचार का सवाल ही नहीं था। मैंने खुद कई जगह कहा और लिखा है कि ‘गरीब के घर में बच्चा पैदा नहीं होता-हमेशा बूढ़ा जनम लेता है।’ मैं भी वही हूँ।

इस तरह शुरू हुआ राजनीतिक सफर

बैरागी जी की राजनीति से जुड़ने के प्रसंग बेहद रोचक है। वे बताते हैं कि, सन् 1945 में मेरे जन्म नगर रामपुरा में इन्दौर राज्य प्रजा मण्डल का प्रान्तीय अधिवेशन था। मैं 8वीं पास कर चुका था। 9वीं का विद्यार्थी था। इन्दौर के सुप्रसिद्ध कवि गीतकार, स्वतन्त्रता सेनानी श्री नरेन्द्र सिंहजी तोमर (ईश्वर की कृपा से वे अब भी स्वस्थ-प्रसन्न हमारे बीच में हैं) इस सम्मेलन में आने वाले थे, पर किसी कारणवश वे नहीं पधार सके। बस! श्री माणकलालजी अग्रवाल, श्री स्व. रामलालजी पोखरना, स्व. हकीम अब्बास अली जी, स्व. श्री लक्ष्मणसिंह जी चौहान जैसे बड़े सेनानियों ने रामपुरा के अधिवेशन स्थल ‘छोटे तालाब’ में तोमरजी की भूमिका मुझे सौंप दी। उस दिन कांग्रेस में मेरा सीधा प्रवेश हुआ। अपनी आयु के 14वें वर्ष से ही मैं कांग्रेस में सक्रिय रहा हूं। सन् 1945 से मैं पार्टी में निष्ठा, ईमानदारी, कर्मठता, मेहनती और कर्त्तव्यपरायण कार्यकर्ता के रूप में प्रतिबद्धता से जुड़ा हूं। सन् 1967 के निर्वाचन में पार्टी के प्रति मेरी प्रतिबद्धता की वजह से ही शायद मुझे इस क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए उपयुक्त समझा गया हो। मेरे राजनीतिक जीवन के निर्माताओं के आशीष का ही मैं इसे प्रतिफल मानता हूँ।तब से आज तक मैं अटल, अडिग, अविचल, अनवरत, तिरंगा थामे अपना समर्पित जीवन जी रहा हूं।

बालकवि“ बैरागी की राजनीतिक उपलब्धियां

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े एक राजनेता के रूप में , वे 1968 में मनासा से और फिर 1980 में मध्य प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए। विभिन्न समय पर, उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार में सूचना राज्य मंत्री, भाषा और पर्यटन मंत्री और खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री के रूप में कार्य किया। वे 1984 और 1989 के बीच मंदसौर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए लोकसभा के सदस्य थे । वे 1998 से 2004 तक राज्यसभा के सदस्य रहे।

राजनीतिक और साहित्यिक उद्देश्यों से बाल कवि बैरागी ने अनेक देशों की यात्राएं की। उनकी यात्राओं के संस्मरण पर एक पुस्तक “बर्लिन से बब्बू को बालकवि बैरागी के पत्र विष्णु बैरागी को” प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक में उन पत्रों का संकलन है जो बाल कवि बैरागी ने अपनी बर्लिन यात्रा के दौरान अपने पुत्र विष्णु बैरागी को लिखे थे।

अभावों से भरा हुआ था बैरागी का बचपन

बाल कवि बैरागी ने अपने शुरूआती दिन काफी अभाव में बिताए। उनके परिवार के लोग मांग-खाकर अपना जीवन बसर करते थे। नवीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान बाल कवि अपने घर मनासा से 32 किलोमीटर दूर रामपुरा पढ़ने जाते थे और वे इतनी दूरी वे पैदल ही पूरी करते थे। हर सोमवार को वे मनासा ने रामपुर पैदल जाते थे और शनिवार को पैदल ही घर वापस लौटते थे। उनके पिता दिव्यांग थे और मां घरों से रोटियां मांग कर लाती थीं। जब वे मंत्री बने तो बाल कवि ने अपनी मां से घरों में रोटियां मांगकर लाना बंद करवा दिया। इस बात की चर्चा होती है कि घर की परंपराओं का निर्वाह करते हुए बाल कवि बैरागी ने कभी भी कपड़े खरीदकर नहीं पहने, बल्कि जब उन्हें कपड़ों की जरूरत होती तो वे किसी से भी मांग लेते थे। हालांकि, उनके चाहने वाले इस बात ख्याल रखते और बिन मांगे ही उन्हें खादी के कपड़े दे देते। जब कुछ लोगों ने बाल कवि से कपड़े मांग कर पहनने की बात पूछी तो इस पर उन्होंने कहा कि इससे उनका दिमाग दुरुस्त रहता है। बाल कवि बैरागी भीख मांगने के काम पर कभी शर्मिंदा नहीं हुए, बल्कि अक्सर मंचों पर इस बात का उल्लेख करते थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘मंगते से मिनिस्टर’ नाम से ही लिखी। लेकिन यह पुस्तक प्रकाशित नहीं हुई। क्योंकि इसमें राजनीति के कुछ स्याह पक्षों को बड़ी स्पष्टता से प्रस्तुत किया गया था, जिसके कारण प्रकाशकों ने इस प्रकाशित करने से मना कर दिया। एक साक्षात्कार के दौरान बालकवि“ बैरागी ने अपने बचपन की यादों को ताजा करते हुए बताया था कि “ मेरा लालन-पालन भिक्षान्न पर हुआ। जब मैं मात्र साढ़े चार वर्ष का था, तब मेरी माँ ने मुझे जो पहला खिलौना खेलने के लिए दिया, वह था भीख माँगने का बर्तन। इससे आप अनुमान लगा लें कि ‘लालन-पालन’ शब्द मुझे कैसे लगते रहे होंगे।“

बालकवि“ बैरागी की साहित्यिक विरासत

प्रतिनिधि कविताएं

  • झर गये पात, बिसर गयी तेहनी
  • अपनी गंध नहीं बेचूंगा
  • दीवात पर गहरा
  • जो कुटिलता से जियेंगे
  • मेरे देश के लालनौजवान आओ रे
  • सारा देश हमारा
  • बाल कविताओं में
  • विश्वास
  • चांद में ढाबा
  • चाय बनाओ
  • आकाश
  • खुद सागर बन जाओ आदि
  • फिल्मी गीत
  • हिंदी फिल्मों के लिए इनके कई गीतों को चुना गया है जिसमें -
  • फिल्म अनकही 1985 में मुझको भी राधा बना ले नंदलाल,
  • फिल्म, जादू टोना 1977 में हर सन्नाटा कुछ कहता है, फिल्म वीर छत्रसाल 1971 में
  • निम्बुआ पे आओ मेरे आम्बुआ पे आओ आदि गीतों को फिल्माया गया है।

ऐसा सोए कि फिर कभी नहीं उठे

वो दिन जब बैरागी जी चिर निद्रा में सोए फिर कभी नहीं उठे। 13 मई 2018 को 87 वर्ष की आयु में उनकी नींद में ही मृत्यु हो गई। उनकी विरासत को उनके दो बेटे और कई पोते-पोतियां आगे बढ़ा रहे हैं। उन्हें हिंदी भाषा के सबसे लोकप्रिय और प्रतिष्ठित कवियों में से एक बालकवि बैरागी को इनकी सादगी और महानता के लिए हमेशा याद किया जाएगा।



Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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