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Aruna Asaf Ali : स्वाधीनता समर की ग्रांड ओल्ड लेडी अरुणा आसफ अली
freedom fighter Aruna Asaf Ali : शुरू से ही आजाद ख्यालों की थीं अरुणा आसफ अली । उन्हें रुढ़िवादिता और परंपराओं के नाम पर सामाजिक जंजालों से मुकाबला करना विरासत में मिला था।
freedom fighter Aruna Asaf Ali: आज की यंग जनरेशन ने शायद ही अरुणा आसफ अली (Aruna Asaf Ali) का नाम सुना होगा। जो कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन (protest) की अगुवा थी और स्वाधीनता संग्राम की ग्रांड ओल्ड लेडी (grand old lady) थी। अरुणा गांगुली जी (Aruna Ganguly) हां जन्म से वह बंगाली ब्राह्मण परिवार से थीं। लेकिन वह शुरू से ही आजाद ख्यालों की थीं। उन्हें रुढ़िवादिता और परंपराओं के नाम पर सामाजिक जंजालों से मुकाबला करना विरासत में मिला था। तभी तो बंगाल के ब्राह्मण परिवार को बंगाल से निकल कर तत्कालीन पंजाब के कालका जी में बसकर प्रवासी होना पड़ा। वैसे अरुणा गांगुल की पढ़ाई लिखाई लाहौर और नैनीताल में हुई। कलकत्ता के गोखले मेमोरियल स्कूल में उन्होंने शिक्षक के रूप में भी कार्य किया। आइये जानते हैं अरुणा के आसफ अली बनने और क्रांति की उनकी विरासत के बारे में।
अरुणा गांगुली के माता पिता अंबालिका और उपेंद्रनाथ गांगुली बंगाली मूल के थे। अंबालिका के पिता यानी अरुणा के नाना त्रैलोक्यनाथ सान्याल पूर्वी बंगाल में बारीसाल के एक जमींदार के पुत्र थे। लेकिन अपनी क्रांतिकारी विचारधारा के कारण ब्रह्म समाज में शामिल हो गए। जिस पर उनके माता पिता ने उन्हें घर से निकाल दिया। वह भक्ति गीत लिखते थे। कुछ दिनों के संघर्ष के बाद उनके गीत लोकप्रिय होने लगे और उनके अच्छे दिन आ गए। वह बंगाल के गिरिडीह में रहे जो अब बिहार में हैं। अरुणा के दादा ब्रह्मचन्द्र गांगुली भी ब्रह्म समाजी थे। उपेंद्र नाथ उनके बड़े पुत्र थे। उन्होंने माता पिता की सहमति से अंबालिका से दीवानी अदालत में रजिस्ट्रार के समक्ष विवाह किया था।
कांग्रेस पार्टी के नेता से किया था प्रेम विवाह
क्रांति की सौगात अरुणा को अपने ददिहाल और ननिहाल दोनों पक्षों से मिली। अरुणा ने अपने से 23 वर्ष बड़े और गैर ब्राह्मण समुदाय से संबंधित आसफ अली (Aruna Asaf Ali husband Asaf Ali ), जो इलाहाबाद में कांग्रेस पार्टी के नेता थे, से परिवार वालों के विरुद्ध जाकर प्रेम विवाह किया। विवाह करने के पश्चात अरुणा सक्रिय तौर पर स्वाधीनता संग्राम से जुड़ गईं।
नमक सत्याग्रह के दौरान अरुणा आसफ अली को गिरफ्तार कर लिया गया। वर्ष 1931 में गांधी-इर्विन समझौते जिसके अंतर्गत सभी राजनैतिक बंदियों को रिहा किया जाना था, के बाद भी अरुणा आसफ अली को मुक्त नहीं किया गया। अरुणा आसफ अली के साथ होने वाले इस भेद-भाव से आहत होकर उनकी अन्य महिला साथियों ने भी जेल से बाहर निकलने से मना कर दिया।
इस लिए की थी भूख हड़ताल
महात्मा गांधी के दखल देने के बाद अरुणा आसफ अली को जेल से रिहा किया गया। वर्ष 1932 में तिहाड़ जेल में बंदी होने के कारण उन्होंने राजनैतिक कैदियों के साथ बुरा बर्ताव करने के विरोध में भूख हड़ताल की। उनके प्रयासों द्वारा तिहाड़ जेल के कैदियों की दशा में तो सुधार हुआ लेकिन अरुणा आसफ अली को अंबाला की जेल में एकांत कारावास की सजा दी गई। जेल से बाहर आने के बाद अरुणा राजनैतिक तौर पर ज्यादा सक्रिय नहीं रहीं।
8 अगस्त, 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के बंबई सत्र के दौरान जब अंग्रेजों को भारत से बाहर करने का संकल्प लिया गया तो अंग्रेजी हुकूमत ने अपने विरुद्ध भारतीय नेताओं को असफल करने के लिए कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं को गिरफ्तार करना शुरू किया। शेष सत्र की अध्यक्षता अरुणा आसफ अली ने की। उन्होंने बंबई के ग्वालिया टैंक में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का ध्वज फहराकर भारत छोड़ो आंदोलन की शुरूआत की। अरुणा को भारत छोड़ो आंदोलन की नायिका के रूप में याद किया जाता है। कोई स्थिर नेतृत्व ना होने के बावजूद देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ कड़े विरोध प्रदर्शन हुए जो यह स्पष्ट कर रहे थे कि अब भारतवासियों को गुलाम बना कर नहीं रखा जा सकता।
भूमिगत रहने लगी थीं
अरुणा आसफ अली को गिरफ्तार करने का निर्देश हुए इससे बचने के लिए अरुणा भूमिगत रहने लगीं। अंग्रेजों ने उनकी सारी संपत्ति अपने अधीन कर उसे बेच दिया। इस बीच राम मनोहर लोहिया के साथ मिलकर वह इंकलाब नामक मासिक समाचार पत्र का संपादन भी करती रहीं। अंग्रेजी सरकार ने अरुणा आसफ अली की सूचना देने पर 5,000 का इनाम रखा। इस बीच अरुणा आसफ अली स्वास्थ्य बहुत अधिक खराब हो गया। महात्मा गांधी ने उन्हें पत्र लिखकर आत्मसमर्पण करने और आत्मसमर्पण के एवज में मिलने वाली धनराशि को हरिजन अभियान के लिए उपयोग करने को कहा। वर्ष 1946 में जब उन्हें गिरफ्तार करने का वारंट रद्द किया गया तब अरुणा आसफ अली ने आत्मसमर्पण किया।
लेकिन ये अरुणा आसफ अली का ही साहस था कि उन्होंने महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और अपने पति आसफ अली से अपने मतभेदों को खुलकर सामने रखा।
वर्ष 1948 में अरुणा आसफ अली कांग्रेस पार्टी छोड़कर सोशलिस्ट पार्टी की सदस्य बन गई लेकिन कुछ समय बाद कम्यूनिस्ट पार्टी में शामिल हो गईं। 1953 में पति आसफ अली के निधन के पश्चात अरुणा आसफ अली मानसिक और भावनात्मक रूप से बहुत कमजोर हो गई थीं। 1958 में अरुणा आसफ अली दिल्ली की पहली मेयर बनीं।
दो समाचार पत्रों का किया प्रकाशन
इसके बाद जयप्रकाश नारायण के साथ मिलकर उन्होंने दैनिक समाचार पत्र, पैट्रियाट और साप्ताहिक समाचार पत्र लिंक का प्रकाशन किया। जवाहर लाल नेहरू, बीजू पटनायक आदि से संबंधित होने के कारण जल्द ही दोनों समाचार पत्रों को स्थापित पहचान मिल गई, लेकिन अंदरूनी राजनीति से आहत होकर उन्होंने कुछ ही समय में प्रकाशन का काम छोड़ दिया। 1964 में वह दोबारा कांग्रेस में शामिल तो हुईं लेकिन सक्रिय राजनीति से दूर रहीं. अरुणा आसफ अली इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी के करीबियों में से एक थीं। 29 जुलाई, 1996 को अरुणा आसफ अली का निधन हो गया।
वर्ष 1975 में अरुणा आसफ अली को शांति और सौहार्द के क्षेत्र में लेनिन प्राइज और 1991 में अंतरराष्ट्रीय ज्ञान के लिए जवाहरलाल नेहरू पुरुस्कार से नवाजा गया. 1992 में उन्हें पद्म विभूषण और 1997 में सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत-रत्न से सम्मानित किया गया.