TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

Gandhi Nehru Parivar: नेतृत्व के नाम पर सिर्फ़ सवाल पर सवाल

Gandhi Nehru Parivar: भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना 28 दिसम्बर, 1885 को बंबई में हुई थी। सन 64 में नेहरू के निधन के बाद कांग्रेस में आंतरिक मतभेद उभरने लगे।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal / Yogesh MishraPublished By Vidushi Mishra
Published on: 23 Nov 2021 5:18 PM IST (Updated on: 23 Nov 2021 5:31 PM IST)
sonia rahul priyanka
X

गांधी-नेहरू परिवार (फोटो- सोशल मीडिया)

Gandhi Nehru Parivar: कांग्रेस इन दिनों बहुत बुरे दौर से गुजर रही है। कांग्रेस के कई नेताओं ने गांधी नेहरू परिवार (Gandhi Nehru Parivar) के नेतृत्व पर ही सवाल खड़ा करना शुरू कर दिया है। कभी यह सवाल विपक्षी ओर से खड़ा किया जाता था। लेकिन जब किसी बड़े दल के दिग्गज नेता विपक्ष की बोली बोलने लगें। विपक्ष के सवाल उठाने लगें।

जब कांग्रेस संसद में एक महत्वहीन विपक्ष गयी हो, तब तो इन पर गौर करना ज़रूरी हो जाता है। यह पता करना ज़रूरी हो जाता है कि क्या सचमुच गांधी नेहरू परिवार अपनी प्रासंगिकता खो बैठा है? आख़िर इनकी जगह कांग्रेस (Congress Ka Chehra Kaun) का चेहरा कौन होगा? किसे होना चाहिए? लोकसभा में अपनी पराजय के बाद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया। सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष बनीं।

कांग्रेस फिर टूटी

भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना 28 दिसम्बर, 1885 को बंबई में हुई थी। सन 64 में नेहरू के निधन के बाद कांग्रेस में आंतरिक मतभेद उभरने लगे। जब इंदिरा गांधी ने सत्ता संभाली, उसके बाद से कांग्रेस के कई नेताओं ने अपने अलग दल बना लिए। ऐसे दल थे - उड़ीसा जन कांग्रेस (Orissa Jan Congress), बांग्ला कांग्रेस (bangla congress), भारतीय क्रांति दल(Revolutionary Socialist Party), उत्कल कांग्रेस(Utkal Congress) और केरल कांग्रेस(Kerala Congress)।

1969 में इन्दिरा गांधी को इंडियन नेशनल कांग्रेस(Indian National Congress) से निकाल दिया गया। उन्होंने कांग्रेस (आर) बना कर 1971 का लोकसभा चुनाव लड़ा। यहां आर का मतलब था रूलिंग। कांग्रेस का दूसरा धड़ा कांग्रेस (ओ) नाम से जाना गया। ओ यानी ओऑर्गनाइजेशन या ओल्ड।


इसके नेता थे कामराज (Kamaraj), निजलिंगप्पा (nijalingappa), मोरारजी देसाई (Morarji Desai) और एसके पाटिल (SK Patil)। कांग्रेस (आर) ने 1971 में लोकसभा चुनाव भारी बहुमत से जीता ।इमरजेंसी के बाद 1977 के चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई।

2 जनवरी, 1978 को कांग्रेस फिर टूटी। इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के नेतृत्व में कांग्रेस (आई) की स्थापना हुई। यहां आई के मायने था इन्दिरा।1984 में चुनाव आयोग ने इसी पार्टी को असली कांग्रेस घोषित किया। लेकिन पार्टी के नाम से आई शब्द कई साल बाद 1996 में हटाया गया।

आज जब कांग्रेस हाशिये पर है तब यह आवाज़

आज तक जो भी विपक्षी ध्रुवीकरण हुआ है, उसका लक्ष्य कांग्रेस की मुख़ालिफ़त तथा कांग्रेस को अपदस्थ करना ही रहा है। अपने तरकश से विपक्ष हमेशा गांधी नेहरू परिवार से पार्टी को मुक्त करने का तीर छोड़ता रहा है।

पूरे देश की राजनीति मुख्यत: एनडीए(NDA) व यूपीए(UPA) के आसपास लंबे समय से घूमती आ रही है। इन दोनों गठबंधनों में नेतृत्व भाजपा व कांग्रेस (BJP-Congress) के हाथ ही रहा है। जब भाजपा हाशिये पर थी। अटल व आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा ने बेहद ख़राब प्रदर्शन किया ।तब तो कहीं से इन्हें हटाने की माँग नहीं उठी। आज जब कांग्रेस हाशिये पर है तब यह आवाज़?

वह भी तब जब बिना गांधी नेहरू परिवार की अगुवाई में पार्टी चुनाव लड़ी तो उसका प्रदर्शन बेहद ख़राब रहा। यह बात दीगर है कि इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी सबके नेतृत्व में कांग्रेस को हार का स्वाद भी चखना पड़ा। पर राहुल को छोड़ गांधी नेहरू परिवार के हर शख़्स ने कांग्रेस की वापसी का भी काम करके दिखाया। राहुल गांधी को ज़रूर अभी अग्निपरीक्षा से गुजरना होगा। लेकिन जो लोग अग्निपरीक्षा चाहते हैं, उनके बारे में भी जानना ज़रूरी हो जाता है।

कांग्रेस एक बार फिर टूट के कागार पर

कांग्रेस के असंतुष्ट नेता हैं- ग़ुलाम नबी आज़ाद, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, शशि थरूर, विवेक तनखा, मुकुल वासनिक, पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र सिंह हुडा, राजेंद्र कौर भट्टल, एम वीरप्पा मोईली, पृथ्वीराज चव्हाण, पीजे कूरियन, अजय सिंह, रेणुका चौधरी, मिलिंद देवड़ा, पूर्व पीसीसी चीफ़ राज बब्बर, अरविंदर सिंह लवली, कौल सिंह ठाकुर, बिहार में चुनाव प्रचार प्रमुख अखिलेश प्रसाद सिंह, हरियाणा के पूर्व स्पीकर कुलदीप शर्मा, दिल्ली के पूर्व स्पीकर योगानंद शास्त्री, पूर्व सांसद संदीप दीक्षित।


जिस तरह कांग्रेस के दिग्गज नेता नेतृत्व का सवाल उठा कर लगातार बैठकें जारी रखे हुए हैं, उससे यह भान होने लगा है कि कांग्रेस एक बार फिर टूट के कागार पर है। क्योंकि एक ऐसे समय जब नरेंद्र मोदी ने पॉलिटिक्स के एजेंडे को बहुसंख्यकों के इर्द गिर्द लाकर खड़ा कर दिया हो तब सलमान ख़ुर्शीद को अपनी किताब में हिंदुत्व में बोकोहरम का दिखना क्या कहा जायेगा।

फिर हिंदुत्व व हिंदू में अंतर बताकर खुद को जायज़ ठहराना? मनीष तिवारी का मुंबई हमले के बाद पाकिस्तान पर आक्रमण न करने को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की गलती बताना। अलग लाइन खींचने या अलग लाइन में खड़े होने की किसी तैयारी का संदेश कहा जाना चाहिए ।

पर बाग़ी नेताओं में से ज्यादातर का कोई बड़ा जनाधार नहीं है। पैन इंडिया इनमें से किसी की पहचान नहीं है। इनके भरोसे कांग्रेस ज़्यादा ताकतवर हो पाएगी या ज्यादा सीटें जीत जाएंगी, इसका दावा भी नहीं किया जा सकता। इन सबको अपनी जीत के लिए गांधी नेहरू परिवार के चेहरे की ज़रूरत पड़ती रही है। फिर इन के कहे पर गांधी नेहरू परिवार भरोसा कैसे करे? वह भी तब जब आज़ादी के बाद से कांग्रेस की लीडरशिप नेहरू परिवार में रही है। 1951-52 में हुए पहले आम चुनावों में कांग्रेस का नारा था - 'नेहरु को वोट यानी कांग्रेस को वोट।'

तभी से कांग्रेस और नेहरू गाँधी परिवार का वजूद बना हुआ हैं। नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी के कार्यकाल को छोड़ दें तो कांग्रेस पार्टी की लीडरशिप हमेशा से नेहरु-गाँधी के पास रही है। कांग्रेस का इतिहास देखें तो अब तक कुल 19 कांग्रेस अध्यक्ष बने हैं, पहले अध्यक्ष जेबी कृपलानी थे।

कांग्रेस को अपने इतिहास की सबसे कम सीटें

कांग्रेस की चुनावी जीत का इतिहास देखा जाए तो इन 74 साल में हुए 17 आम चुनावों में 7 बार गैर नेहरू-गांधी नेता कांग्रेस अध्यक्ष रहा, उनमें 4 बार चुनाव जीते। जबकि नेहरू-गांधी परिवार के रहते हुए 10 चुनावों में से चार में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।

आज़ादी के बाद से 14 गैर नेहरू-गांधी कांग्रेसी अध्यक्ष रहे हैं और उनकी सफलता की दर 57 फीसदी रही है। पर यह नहीं भूलना चाहिए कि ये अध्यक्ष भी इनकी कृपा से बने। 2009 लोकसभा चुनाव मनमोहन सिंह के पांच साल के कार्यकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस ने अपने बूते पर 206 सीटें जीतीं।

1996 का चुनाव नरसिम्हा राव की अगुवाई में हुआ जिसमें कांग्रेस ने 140 सीटें जीतीं। गांधी परिवार से राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही ऐसे हैं, जिनके अध्यक्ष रहते पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।


राजीव गांधी 1985 में अध्यक्ष बने और पार्टी 1989 का चुनाव हार गई। 1998 में सोनिया गांधी अध्यक्ष बनीं और अगले ही साल 1999 का चुनाव कांग्रेस हार गई। इसके बाद 2014 के चुनाव में भी सोनिया गांधी ही अध्यक्ष थीं। इस चुनाव में कांग्रेस को अपने इतिहास की सबसे कम 44 सीटें ही मिलीं। सोनिया के बाद दिसंबर 2017 में राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने। अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने पहला चुनाव 2019 में लड़ा। इस चुनाव में कांग्रेस सिर्फ 52 सीटें ही जीत सकीं।

पर राहुल गांधी के लेखा जोखा पर नज़र दौड़ाई जाये तो नतीजे कुछ और कहानी भी कहते हैं। वह यह कि 2018 में हुए मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ चुनाव में कांग्रेस जीती । हालाँकि मिजोरम व तेलंगाना में कांग्रेस हारी। राहुल गांधी को जिस तरह पप्पू कहा गया, उससे उबरने में वह जिस तरह कामयाब रहे, वह कम क़ाबिले तारीफ़ नहीं है।

नरेंद्र मोदी को छोड़कर देश में कोई ऐसा नेता नहीं है जो परिवारवादी से अछूता

किसी आदमी को इतना कोसा जाता तो शायद वह राहुल की तरह फ़ैसले लेने की स्थिति में भी नहीं रह जाता। कांग्रेस से निकलकर जो भी नेता गये , उन्हें दोबारा कांग्रेस की शरण ही गहनी पडी।यदि बाहर रह कर अपनी पार्टी चलाई तब भी ईलाकाई लीडर से आगे नहीं बढ़ पाये। सारे दलों के एजेंडे के केंद्र में कांग्रेस व नेहरू परिवार ही रहते हैं।

यदि ये इतने ग़ैर महत्व के लोग हैं तो आख़िर सबके निशाने पर यही क्यों हैं? क्या यह सच नहीं है कि देश में नरेंद्र मोदी व राहुल गांधी ही दो ऐसे नेता हैं, जिनकी कम या ज़्यादा हर जगह फालोइंग है? यह भी सच है कि दोनों की फालोइंग में ज़मीन आसमान का अंतर है। इस अंतर को भरने के लिए असंतुष्ट नेताओं के पास नाम व चेहरा कौन है , यह भी बताना होगा।

उत्तर प्रदेश की कमान बड़े बड़े दिग्गज कांग्रेस नेताओं के पास रही है, पर कांग्रेस कभी चर्चा में भी बीते तीन दशकों से नहीं आ पायी। प्रियंका ने कम से कम चर्चा में तो कांग्रेस को ला ही दिया है। राजनीति के लिए चर्चा, खर्चा व पर्चा तीनों ज़रूरी है। प्रियंका एक कदम आगे तो बढ़ीं।

परिवारवादी राजनीति में ही नहीं, कहीं भी बेहद ख़राब है। इसका समर्थन नहीं किया जा सकता है। पर इस हक़ीक़त से मुँह नहीं चुराया जा सकता है कि नरेंद्र मोदी को छोड़कर देश में कोई ऐसा नेता नहीं है जो परिवारवादी से अछूता हो।

कांग्रेस से टूट कर अलग धड़े बने

1923 : स्वराज पार्टी : चितरंजन दास, मोतीलाल नेहरू : बाद में कांग्रेस में विलय।

1939 : आल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक् : सुभाषचंद्र बोस : अभी सक्रिय।

1951 : किसान मजदूर प्रजा पार्टी : जीवतराम कृपलानी : प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में विलय।

1951 : हैदराबाद स्टेट प्रजा पार्टी : एनजी रंगा : किसान मजदूर प्रजा पार्टी में विलय।

1951 : सौराष्ट्र खेदुत संघ : नरसिंहभाई धधनिया : स्वतंत्र पार्टी में विलय।

1956 : इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक कांग्रेस : सी राजगोपालाचारी : स्वतंत्र पार्टी में विलय।

1959 : स्वतंत्र पार्टी : सी राजगोपालाचारी, एनजी रंगा : 1974 में भारतीय क्रांति दल में विलय।

1964 : केरल कांग्रेस : के एम जॉर्ज : अब भी सक्रिय।

1966 : उड़ीसा जन कांग्रेस : हरेकृष्ण महताब : जनता पार्टी में विलय।

1967 : बांग्ला कांग्रेस : अजय मुखर्जी : कांग्रेस में विलय।

1967 : विशाल हरियाणा पार्टी : बीरेंद्र सिंह : कांग्रेस में विलय।

1967 : भारतीय क्रांति दल : चरण सिंह : भारतीय लोकदल में विलय।

1968 : मणिपुर पीपुल्स पार्टी : मोहम्मद अलीमुद्दीन : अभी सक्रिय।

1969 : इंडियन नेशनल कांग्रेस (आर) : इंदिरा गांधी : अब नाम हो गया है इंडियन नेशनल कांग्रेस।

1969 : इंडियन नेशनल कांग्रेस (ओ) : के कामराज, मोरारजी देसाई : जनता पार्टी में विलय।

1969 : उत्कल कांग्रेस : बीजू पटनायक : जनता पार्टी में विलय।

1969 : तेलंगाना प्रजा समिति : एम सी रेड्डी : कांग्रेस में विलय।

1971 : बिपलबी बांग्ला कांग्रेस : सुकुमार रॉय : सक्रिय।

1977 : कांग्रेस फ़ॉर डेमोक्रेसी : जगजीवन राम : जनता पार्टी में विलय।

1978 : इंडियन नेशनल कांग्रेस (आई) : इंदिरा गांधी : अब इंडियन नेशनल कांग्रेस

1979 : इंडियन नेशनल कांग्रेस (उर्स) : देवराज उर्स : समाप्त।

1980 : कांग्रेस (ए) : एके एंथोनी : कांग्रेस में विलय।

1981 : इंडियन नेशनल कांग्रेस (सोशलिस्ट) : शरद पवार : कांग्रेस में विलय।

1981 : इंडियन नेशनल कांग्रेस (जगजीवन) : जगजीवन राम : समाप्त।

1984 : इंडियन नेशनल कांग्रेस (सोशलिस्ट) शरत चन्द्र सिन्हा : शरत चंद्र सिन्हा : कांग्रेस में विलय।

1986 : राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस : प्रणव मुखर्जी : कांग्रेस में विलय।

1988 : तमिझगा मुन्नेत्र मुन्नानि : शिवाजी गणेशन : जनता दल में विलय।

1990 : हरियाणा विकास पार्टी : बंसी लाल : कांग्रेस में विलय।

1994 : आल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) : एनडी तिवारी, नटवर सिंह, अर्जुन सिंह, रंगराजन कुमारमंगलम : कांग्रेस में विलय।

1994 : कर्नाटक कांग्रेस पार्टी : बंगरप्पा : कांग्रेस में विलय।

1994 : तमिझगा राजीव कांग्रेस : वी राममूर्ति : कांग्रेस में विलय।

1996 : कर्नाटक विकास पार्टी : बंगरप्पा : कांग्रेस में विलय।

1996 : अरुणाचल कांग्रेस : गेगोंग अपांग :कांग्रेस में विलय।

1996 : तमिल मनिला कांग्रेस : जी के मूपनार : कांग्रेस में विलय। 2014 में फिर टूट हुई और अब फिर अस्तित्व में।

1996 : मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस : माधवराव सिंधिया : कांग्रेस में विलय।

1997 : तमिलनाडु मक्कल कांग्रेस : वी राममूर्ति : समाप्त।

1997 : हिमाचल विकास कांग्रेस : सुखराम : कांग्रेस में विलय।

1997 : मणिपुर स्टेट कांग्रेस पार्टी : निपमचा सिंह : राजद में विलय।

1998 : आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस : ममता बनर्जी : सक्रिय।

1998 : गोआ राजीव कांग्रेस पार्टी : फ्रांसेस डिसूजा : एनसीपी में विलय।

1998 : अरुणाचल कांग्रेस (मिठी) : मुकुट मिठी : कांग्रेस में विलय।

1998 : आल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (सेक्युलर) : सीसराम ओला : कांग्रेस में विलय।

1998 : महाराष्ट्र विकास अघाड़ी : सुरेश कलमाडी : कांग्रेस में विलय।

1999 : भारतीय जन कांग्रेस : जगन्नाथ मिश्र : एनसीपी में विलय।

1999 : नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी : शरद पवार, पी ए संगमा, तारिक अनवर : सक्रिय

1999 : जम्मू कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी : मुफ़्ती मोहम्मद सईद : सक्रिय।

2000 : गोया पीपुल्स कांग्रेस : फ्रांसिस्को सरदीन्हा : कांग्रेस में विलय।

2001 : कांग्रेस जननायक पेरावई : पी चिदंबरम : कांग्रेस में विलय।

2001 : थोन्दर कांग्रेस : कुमारी अनंत : कांग्रेस में विलय।

2001 : पॉन्डिचेरी मक्कल कांग्रेस : पी कानन : समाप्त।

2002 : विदर्भ जनता कांग्रेस : जम्बुवन्तराव धोते : सक्रिय।

2002 : इंडियन नेशनल कांग्रेस (शेख हसन) : भाजपा में विलय।

2002 : गुजरात जनता कांग्रेस : छबीलदास मेहता : एनसीपी में विलय।

2003 : कांग्रेस (डोलो) : कामेंग डोलो : भाजपा में विलय।

2003 : नागालैंड पीपुल्स फ्रंट : नीफू रियो : सक्रिय ।

2005 : पॉन्डिचेरी मुन्नेत्र कांग्रेस : पी कानन : कांग्रेस में विलय।

2005 : डेमोक्रेटिक इंदिरा कांग्रेस (करुणाकरण) : के करुणाकरण : एनसीपी में विलय। बाद में करुणाकरण समेत ढेरों नेता कार्यकर्ता कांग्रेस में शामिल हो गए।

2007 : हरियाणा जनहित कांग्रेस (बीएल) : कुलदीप बिश्नोई : कांग्रेस में विलय।

2008 : प्रगतिशील इंदिरा कांग्रेस : सोमेंद्र नाथ मित्रा : तृणमूल कांग्रेस में विलय।

2011 : वाई इस आर कांग्रेस पार्टी : जगनमोहन रेड्डी : सक्रिय ।

2011 : आल इंडिया एनआर कांग्रेस : एन रंगास्वामी : सक्रिय।

2014 : जयसमयक आंध्र पार्टी : नल्लारी किरण : कांग्रेस में विलय।

2016 : छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस : अजित जोगी : निधन।

2021 : पंजाब लोक कांग्रेस : अमरिंदर सिंह : सक्रिय।

Lok Sabha elections, Ghulam Nabi Azad, Anand Sharma, Kapil Sibal, Manish Tewari, Shashi Tharoor, Vivek Tankha, Mukul Wasnik, former Chief Minister and Union Minister Bhupinder Singh Hooda, Rajendra Kaur Bhattal, M Veerappa Moily, Prithviraj Chavan, PJ Kurien. , Ajay Singh, Renuka Choudhary, Milind Deora, former PCC chief Raj Babbar, Arvinder Singh Lovely, Kaul Singh Thakur, Bihar election campaign chief Akhilesh Prasad Singh, former Haryana speaker Kuldeep Sharma, Orissa Jana Congress, Bangla Congress, Bharatiya Kranti Dal, Utkal Congress, Kerala Congress, NDA, UPA, Narasimha Rao, Sitaram Kesari, Rajiv Gandhi, Sonia Gandhi, Rahul Gandhi , Gandhi family, priyanka gandhi, up elections, up politics, up political news, latest news up, trending news, up politics news today in hindi, up news, Indian National Congress, Congress Ka Chehra Kaun, Gandhi Nehru Parivar, Indira Gandhi , Punjab Lok Congress, Janta Congress Chhattisgarh, Jayasamayak Andhra Party, Pondicherry Munnetra Congress, Pragatisheel Indira Congress, Haryana Janhit Congress, Democratic Indira Congress (Karunakaran), Pondicherry Makkal Congress, Bharatiya Jan Congress, sonia rahul priyanka photo



\
Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

Next Story