×

निकाय चुनाव 2017: पहले चुनाव में जीतने वाले की भी नहीं बच सकती थी जमानत

By
Published on: 2 Nov 2017 3:12 PM IST
निकाय चुनाव 2017: पहले चुनाव में जीतने वाले की भी नहीं बच सकती थी जमानत
X

गोरखपुर: गोरखपुर निकाय चुनाव एक बार फिर होने जा रहे हैं। जिले में इस बार एक नई नगर पंचायत उनवल जुड़ी है। इसे मिलाकर नगर पंचायत की संख्या 8 हो गई है। गोरखपुर नगर निगम व नगर पंचायतों के गठन व चुनाव का रोचक इतिहास रहा है। नगर निगम में किन्नर की जीत जहां दुनिया भर में चर्चा का केंद्र बनी थी। वहीं नगर पंचायत बांस गांव में तो पहले चुनाव में जीते व निकटतम प्रतिद्वंदी के रूप में हारे दोनों प्रत्याशियों की जमानत नहीं बच सकती थी।

यह भी पढ़ें: हिमाचल चुनाव : पीएम मोदी ने कांग्रेस को बताया ‘लाफिंग क्लब’

गोरखपुर में नगरपालिका की स्थापना 1869 में हुई थी। मुगल शासन काल में यह नगर काफी प्रसिद्ध रहा है। लेकिन आवागमन स्वास्थ्य उद्योग शिक्षा के नए विकास की शुरुआत ब्रिटिश काल में हुई।

1994 में नगर निगम बनने के बाद 70 वार्ड वाले इस शहर में कई उतार चढ़ाव देखे हैं। खासतौर से किन्नर आशा देवी का 1999 में यहां का मेयर बनना अविस्मरणीय घटना थी। नगर निगम के पहले मेयर राजेंद्र शर्मा थे। इससे पहले 1982 में गठित नगर महापालिका के पहले नगर प्रमुख बनने का गौरव पवन बाथवाल को हासिल है।

यह भी पढ़ें: UP: निकाय चुनाव की नामांकन प्रक्रिया आज से शुरू

सबसे पुरानी है गोला नगर पंचायत: जिले की नगर पंचायतों में से एक गोला नगर पंचायत सबसे पुरानी नगर पंचायत है। इस नगर को सर 1864 में टाउन एरिया का दर्जा मिला था। ब्रिटिश शासनकाल में यहां के चेयरमैन मनोनीत होते थे। सन 1972 में आम चुनाव शुरू होने से पहले लंबे समय तक लाल वीरेंद्र बहादुर चंद यहां के चेयरमैन रहे। नगर की बसावट पुराने टाउन एरिया कि आज भी याद दिलाती है।

यादगार बन गया बांस गांव का पहला चुनाव: पहला चुनाव बांसगांव नगर पंचायत के गठन के बाद हुआ। पहला चुनाव कम यादगार नहीं है। अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1995 में हुए पहले चुनाव में विजय श्री हासिल करने वाले विवेकानंद सिंह और उनके प्रतिद्वंदी मदन मोहन सिंह दोनों जमानत के लिए जरूरी वोट हासिल नहीं कर सके थे। नगर पंचायत का दर्जा इसे 1989 में मिला और इससे पहले 1995 तक उप जिलाधिकारी प्रशासक रहे।

9 साल तक करना पड़ा इंतजार: पीपीगंज को नगर पंचायत का दर्जा तो 1979 में मिल गया था। लेकिन प्रतिनिधि चुनने के लिए यहां के लोगो को पूरे 9 साल तक इंतजार करना पड़ा। 1979 में फरेंदा तहसील का हिस्सा होने के कारण वहां के उपजिलाधिकारी लंबे समय तक प्रशासक बने रहे। कुंवर बहादुर शाही यहां के पहले पंचायत अध्यक्ष चुने गए।

बड़हलगंज सन 1872 में टाउन एरिया घोषित हुई 1995 में यहां नगर पंचायत का पहला चुनाव हुआ। इस चुनाव में दलसिंगार सोनकर पहले अध्यक्ष चुने गए थे। पिपराइच भी जिले की पुरानी नगर पंचायतों में से एक है। इस नगर को 1869 में टाउन एरिया का दर्जा मिला था। मियां साहब लंबे समय तक यहां के चेयरमैन रहे। बाद में 1956 में पहली बार हुए चुनाव में शिव पूजन गुप्ता को पहला अध्यक्ष बनने का गौरव हासिल हुआ था।

सहजनवा को नगर पंचायत का दर्जा सन 2000 में मिला खास बात यह है कि अध्यक्ष पद के लिए अब तक हुए दोनों चुनाव में निर्दल प्रत्याशी को ही जीत हासिल हुई है। पहले अध्यक्ष बृजेश यादव थे और दो बार से कमलेश फौजी हैं।

मुंडेरा बाजार को नगर पंचायत का दर्जा 1971 में मिला था और 1928 में यहां पहला चुनाव हुआ। इस चुनाव में बांकेलाल जायसवाल को हराकर डॉक्टर जेपी जायसवाल यहां के पहले अध्यक्ष बने।



Next Story