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देवभूमि में बम्पर वोटिंग : राज्य के चुनावी नतीजों का ऐलान 18 दिसम्बर को

Newstrack
Published on: 10 Nov 2017 4:02 PM IST
देवभूमि में बम्पर वोटिंग : राज्य के चुनावी नतीजों का ऐलान 18 दिसम्बर को
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शिमला/नई दिल्ली : हिमाचल विधानसभा की 68 सीटों के लिए गुरुवार को हुए मतदान में शाम पांच बजे तक 7५' वोटिंग हुई। इस बार पिछले चुनाव की अपेक्षा करीब एक फीसदी ज्यादा मतदान हुआ है। 2012 के चुनाव में राज्य में 73.4' फीसदी वोटिंग हुई थी। 68 सीटों के लिए 337 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे हैं। 62 मौजूदा विधायक इस बार भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। राज्य के चुनावी नतीजों का ऐलान 18 दिसम्बर को होगा।

भाजपा की ओर से प्रेम कुमार धूमल व कांग्रेस की ओर से मौजूदा सीएम वीरभद्र सिंह सीएम पद का चेहरा हैं। दोनों ही नेता इस बार नई सीटों पर किस्मत आजमा रहे हैं। मतदान के बाद धूमल ने दावा किया कि हमारा लक्ष्य 50+ सीटें जीतने का है मगर जिस तरह पार्टी को हर तबके का समर्थन मिला है उसे देखते हुए लगता है कि हम 60 से ज्यादा सीटें जीत जाएंगे। इस चुनाव में एक सीट ऐसी है, जहां पर चार बार के पूर्व विधायक पांचवीं बार चुनाव मैदान में जीत के इरादे से उतरे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ मौजूदा विधायक अपना दबदबा बरकरार रखना चाहते हैं। यह सीट है धर्मशाला की। कांगड़ा जिले का यह विधानसभा क्षेत्र अनारक्षित है। इस क्षेत्र की कुल आबादी 1,36,586 है, जिसमें मतदाता हैं 71,359।

धर्मशाला को अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। साथ ही 1960 में जब दलाई लामा ने धर्मशाला में अपना अस्थायी मुख्यालय बनाया तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह क्षेत्र भारत के ‘छोटे ल्हासा’ के रूप में जाना जाने लगा। 1905 में एक विनाशकारी भूकंप से तबाह होने के बाद इस क्षेत्र का पुनर्निर्माण किया गया और यह स्थान एक सुंदर हेल्थ रिसॉर्ट और पर्यटन का महत्वपूर्ण आकर्षण का केंद्र बन गया। धर्मशाला में विशाल तिब्बती बस्तियां होने के कारण इस क्षेत्र को ‘लामाओं की भूमि’ के रूप में जाना जाता है। यहां हिंदू और जैन मंदिरों के साथ साथ अनेक मठ और शिक्षण केंद्र हैं। यहां के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम ने नगर की शान को काफी हद तक बढ़ाने का काम किया है। साथ ही इसे स्मार्ट सिटी भी घोषित किया जा चुका है। धर्मशाला को राज्य की दूसरी राजधानी भी कहा जाता है। इस विधानसभा क्षेत्र में कभी जाति समीकरण अपना प्रभाव नहीं छोड़ सके हैं।

इस विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा रहा है। 1977 के बाद से अब तक हुए नौ विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इस सीट पर छह बार जीत हासिल की है, जबकि तीन बार क्षेत्र की सत्ता कांग्रेस के हाथ आई है। पिछले छह चुनाव में भाजपा के किशन कपूर अकेले ऐसे नेता हैं, जिन्होंने लगातार इस सीट से चुनाव लड़ा और चार चुनाव में जीत दर्ज की। इस बार भी वो मैदान में ताल ठोक रहे हैं। 1990 में पहली बार चुनाव जीतने वाले कपूर ने क्षेत्र में अपनी पैठ बना रखी है। वो भाजपा नीत सरकार में मंत्री रह चुके हैं। कपूर ने 1990, 1993, 1998 और 2007 में हुए विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की थी।

वहीं मौजूदा विधायक कांग्रेस नेता सुधीर शर्मा ने किशन कपूर को 2012 विधानसभा चुनाव में पटखनी देकर पार्टी में अपना वर्चस्व कायम किया, जिसका फायदा भी उन्हें मिला और सरकार में उन्हें शहरी विकास, आवास एवं नगर नियोजन मंत्री का पद दिया गया। सुधीर शर्मा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पंडित संत राम के बेटे हैं और मूल रूप से बैजनाथ के रहने वाले हैं।

पंडित संत राम अतीत में कांग्रेस सरकार में मंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे थे। शर्मा ने बाहरी होते हुए भी किशन कपूर के खिलाफ आसानी से चुनाव जीत लिया था। सुधीर 2003 और 2007 में बैजनाथ से विधायक चुने गये थे।

धर्मशाला सीट की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं, जिनमें से बहुजन समाज पार्टी के पवन चौधरी, बहुजन मुक्ति पार्टी के अश्विनी काजल, स्वाभिमान पार्टी की निशा कटोच के साथ सात निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं।

क्या मंडी में परिवार के आगे टिकेगी पार्टी?

प्रदेश विधानसभा चुनाव मुख्य रूप से दो दिग्गज नेताओं - कांग्रेस के वीरभद्र सिंह और भाजपा के प्रेम कुमार धूमल के बीच माना जा रहा है। दोनों नेता अपनी पिछली जीती हुईं सीटें शिमला (ग्रामीण) और हमीरपुर को छोडक़र दूसरी सीटों से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इन दोनों सीटों के बजाय एक ऐसी सीट भी है, जिस पर पूरे हिमाचल की नजरें टिकी रहने वाली है। यह है मंडी विधानसभा क्षेत्र। यह सीट अनारक्षित है। यहां की आबादी 1,12,238 है और मतदाता हैं 69,270। मंडी को ‘छोटी काशी’ या ‘हिमाचल की काशी’ के रूप में जाना जाता है। मंडी में 81 मंदिर हैं, जिनकी संख्या वाराणसी (80) से 1 अधिक है। यह नगर अपने प्राचीन मंदिरों और उनमें की गई शानदार नक्काशियों के लिए मशहूर है।

बात करें क्षेत्र की राजनीति की, तो यहां हमेशा से ही कांग्रेस का बोलबाला रहा है। 1990 में हुए विधानसभा चुनाव को छोड़ दें तो 1977 से हुए अब तक विधानसभा चुनावों में बाजी कांग्रेस के हाथ ही लगी है। मंडी सीट पर 1977 से एक ही परिवार का कब्जा है। वर्तमान में इस क्षेत्र से विधायक अनिल शर्मा हैं। वे पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री पंडित सुखराम के बेटे हैं। अनिल ने पिछले एक दशक से मंडी पर कब्जा किया हुआ है।

पिछले चुनावों में उन्होंने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस के हाथ के साथ ही चुनाव लड़ा और जीते। इस सरकार में पंचायती राज मंत्री अनिल शर्मा ने पिछले दिनों हुई पार्टी में खटपट के बाद कांग्रेस को अलविदा कह दिया और फिलहाल भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं कांग्रेस नेचंपा ठाकुर को मैदान में उतारा है। चंपा राज्य के स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह की बेटी हैं और जिला परिषद की अध्यक्ष हैं। चंपा के नामांकन के बाद इस सीट पर जंग दोनों नेताओं के बीच तेज हो गई है। इनके अलावा बहुजन समाज पार्टी के नरेंद्र कुमार और साथ ही चार अन्य निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में जनता के बीच अपनी किस्मत आजमाने उतरे हैं।

बिलासपुर बचा पाएगी कांग्रेस?

बि लासपुर की पहनाच दुनिया में भाखड़ा बांध से है। पिछले महीने पीएम मोदी ने यहां एम्स की आधारशिला रख कर इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने का वादा किया है। बिलासपुर सीट हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र और बिलासपुर जिले के अंतर्गत है। यहां की आबादी है 1,22,630 और मतदाता हैं 75,360। बिलासपुर विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक पृष्ठभूमि के लिहाज से राजपूत बहुल क्षेत्र है। केंद्रीय मंत्री जे.पी. नड्डा यहीं के हैं। नड्डा ने 1993,1998 और 2007 में इस सीट पर जीत हासिल की थी। बिलासपुर में 1967 के बाद से हुए अब तक के 11 चुनाव में 5 बार कांग्रेस और 5 बार भाजपा को जीत हाथ लगी है। एक बार इस सीट पर जनता ने निर्दलीय उम्मीदवार को चुना था।

इस मर्तबा कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक बंबर ठाकुर पर दोबारा दांव लगाया है। बंबर ने जे. पी. नड्डा को 2012 में पटखनी दी थी। बंबर ठाकुर को हिमाचल के दबंग विधायकों में से एक गिना जाता है। बंबर पर सरकारी कर्मचारियों की पिटाई का आरोप लग चुका है। कुछ दिनों पहले उन्हीं की पार्टी के एक नेता ने उन पर घोटाले का आरोप लगाकर उनकी मुश्किलें खड़ी कर दी थी। ठाकुर के बेटे अनिल पर भी क्षेत्र में गुंडागर्दी के आरोप लगते रहे हैं। छवि साफ नहीं होने के बावजूद उनकी लोकप्रियता जनता के बीच बरकरार है। बहरहाल, नड्डा के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद भाजपा ने वरिष्ठ नेता और पूर्व जिला अध्यक्ष सुभाष ठाकुर पर दांव खेला है। इसके अलावा लोकगठबंधन पार्टी के अमर सिंह और निर्दलीय बसंत राम संधु चुनावी मैदान में हैं।

दून में भाजपा की चुनौती

हिमाचल प्रदेश की दून विधानसभा सीट पर मुकाबला दिलचस्प है। इस सीट को कांग्रेस का ‘पुश्तैनी’ गढ़ कहा जाता है। यहां 1967 में पहला चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार लेख राम ने जीता था लेकिन उनकी मदद से कांग्रेस ने इस क्षेत्र पर अपना कब्जा इस कदर जमाया कि राज्य में विपक्षी भारतीय जनता पार्टी का कोई नेता उस नींव को हिलाने में कामयाब नहीं हो पाया। अब तक कुल 11 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सात बार जीत दर्ज की है। साथ ही पिछले पांच विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने चार बार 1993, 1998, 2003 और 2012 में जीत हासिल कर भाजपा को इस क्षेत्र से दूर ही रखा है। चौधरी बिरादरी का दबदबा और भाजपा के पास कोई बड़ा नाम न होने के कारण भाजपा इस सीट पर जीत के लिए तरसती दिखाई दे रही है। 2007 में भाजपा की विनोद कुमारी इसका अपवाद रही हैं। भाजपा के पास चौधरी बिरादरी का मजबूत जनाधार वाला नेता न होना पार्टी के लिए सिरदर्द बना हुआ है।

1990 में जनता दल के टिकट पर चुनाव जीतने वाले चौधरी लज्जा राम ने 1993 में कांग्रेस का हाथ थामा और अगले तीन चुनाव में लगातार कांग्रेस की झोली में ये सीट आती गई। 2007 में भाजपा की टिकट पर लज्जा राम को हराया। लेकिन जनता ने 2012 के चुनाव में फिर से कांग्रेस नेता और लज्जा राम के बेटे राम कुमार को जीत दिलाई। राम कुमार इस बार फिर चुनाव मैदान में हैं। राम कुमार को एक विवादास्पद नेता के रूप में जाना जाता है। राम का नाम बहुचर्चित ज्योति मर्डर केस में आया था लेकिन बाद में उन्हें अदालत ने बरी कर दिया था।

हालांकि इस मामले को लेकर राम बहुत आलोचना झेल चुके हैं। वहीं भाजपा ने इस बार परमजीत सिंह पर दांव आजमाया है। 52 वर्षीय परमजीत सिंह ने पिछला चुनाव कांग्रेस पार्टी से टिकट न मिलने के कारण निर्दलीय लड़ा था और तीसरे स्थान पर रहे थे। क्षेत्र में एक जाति विशेष का दबदबा होने के कारण सिर्फ एक ही निर्दलीय उम्मीदवार इंद्र सिंह ठाकुर मैदान में हैं। शिमला लोकसभा क्षेत्र और सोलन जिले के हिस्से दून की आबादी 99,238 है जिसमें से 61,269 मतदाता हैं। दून क्षेत्र में मुख्य रुप से पंजाबी भाषा का प्रभाव है और चौधरी बिरादरी का दबदबा है।



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