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Mayawati News: मायावती का हाथी रोकने की तैयारी

BSP Mayawati Politics: यूपी की राजनीति लंबे समय से बहुजन समाज पार्टी (बसपा)और समाजवादी पार्टी (सपा) के इर्द-गिर्द घूम रही है, और राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियां कांग्रेस तथा भाजपा इन पर अपने अस्तित्व के लिए निर्भर बनी हुई है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 1 Jun 2022 10:00 AM IST
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मायावती का हाथी रोकने की तैयारी (फोटो- कॉन्सेप्ट इमेज)

BSP Mayawati Latest News उत्तर प्रदेश की राजनीति (UP Politics News) लंबे समय से बहुजन समाज पार्टी (बसपा)और समाजवादी पार्टी (सपा) के इर्द-गिर्द घूम रही है, और राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियां कांग्रेस तथा भाजपा इन पर अपने अस्तित्व के लिए निर्भर बनी हुई है। इन्हीं हालातों के मद्देनजर ही कांग्रेस ने दोस्ती का हाथ सपा सुप्रीमों मुलायम की ओर बढ़ाया है। निर्धारित समय से पहले लोकसभाचुनाव कराने की कांग्रेस की कोशिशें महज इसलिए परवान नहीं चढ़ पाई है उसके द्वारा कराए गए एकसर्वे के मुताबिक देश भर में महंगाई के मुद्दे पर उसको 40फीसदी सीटों के नुकसान का अनुमान था।

उत्तर प्रदेश में महज छह सीटें मिलने की बात कहीं गयी थी। सर्वे के बाद कांग्रेस के लिए जरूरी हो गया कि वह एक और हमदम की तलाश करे। भले ही राहुल गांधी पर कांग्रेसी इतरा रहे हों, दलितों के यहां उनके दौरे से मायावती की पेशानी पर बल पड़ रहे हों, लेकिन विधानसभा चुनाव में रोड शो और व्यापक जनसंपर्क के बाद भी सियासी चौसर पर सीटों का घटकर 25 से 22 हो जाना और वोट फीसदी 8.96 से गिरकर 8.61 होने से यह संदेश जा सकता है कि राहुल के करिश्मे को भी अभी मदद की दरकार है।

मायावती के नवरत्नों में नवनीत सहगल ने बनाई जगह

जिस तरह राज्य में मायावती का मदमस्त हाथी बेरोक-टोक दौड़ रहा है। निरंतर वह अपने वोटों में इजाफा करने में कामयाब होती जा रही हैं। बहुजन को सर्वजन बनाते हुए उन्होंने दलितों के साथ जिस तरह ब्राहमणों को साधा और वैश्य और वाल्मीकि समुदाय पर उनकी नजर गड़ी हुई है, उससे उनके निरंतर बढ़ रहे कद से इनकार करना अब विपक्षियों के लिए भी मुश्किल हो रहा है।

केन्द्रीय मंत्रिमंडल से हटाए गए अखिलेश दास ने जब कांग्रेस को अलविदा कहा तभी लोगों को लग गया कि वह लखनऊ की लोकसभा सीट पर हाथी की सवारी करेंगे। इसकी साफ वजहें भी दिख रही थीं कि अखिलेश दास के निजी सचिव रहे नवनीत सहगल ने मायावती के नवरत्नों में जगह बना ली थी।

दूसरे कांग्रेस से अपने गुस्से का इजहार वह मायावती के बिना कहीं जाकर नहीं कर सकते थे । लेकिन मायावती ने उन्हें ब्राहमण प्रतीक पुरूष सतीश मिश्र की तरह राष्ट्रीय महासचिव का पद दिया और कहा कि वैश्य को जोडऩे का काम वह करेंगे। उधर, मायावती के निरंतर बढ़तें कद और कांग्रेस से खराब हुए रिश्तों ने मुलायम की अहमियत बढ़ाई है।

मायावती की नजर दूसरी पार्टियों के उन उम्मीदवारों पर भी है, जो किसी वजह से अपनी पार्टी में उपेक्षित है। 50 हजार से एक लाख के वोट बैंक कीहैसियत वाले इन कद्दावर नेताओं को बसपा के को-आर्डिनेटर और उनकी बिरादरी के लोग संपर्क करने में जुटे हुए हैं। कांग्रेस के बनारस के सांसद और भाजपा के महराजगंज तथा खुर्जा से जीतने वाले उम्मीदवारों के साथ ही बनारस के आसपास के इलाके के दो कट्टर दुश्मन माफिया हाथी पर सवार होकर लोकसभा में घुसने की जुगत करते दिखेंगे तो यह मायावती की रणनीति का हिस्सा ही होगा।

उत्तर प्रदेश फतह के बाद दिल्ली पर कब्जा करने के लिए बसपा प्रमुख और मुख्यमंत्री मायावती कोई कोर-कसर नहीं छोडऩा चाहती है । लेकिन उनकी खास नजर देश की 79 सुरक्षित सीटों पर है। अब इन्हें भी वह सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले से फतह करना चाहती हैं ।

सभी 17 सुरक्षित लोकसभा सीटों पर कब्जा

गौरतलब है कि पिछले लोकसभाचुनाव में बसपा को उत्तर प्रदेश की ही सिर्फ 3 सुरक्षित सीटों पर सफलता मिली थी। बसपा प्रमुख तो राज्य की सभी 17 सुरक्षित लोकसभा सीटों पर इस बार कब्जा चाहती है। इसके लिए खासतौर से अगड़ी और पिछड़ी जातियों की कमेटियों को गठित कर उन्हें अभी सुरक्षित सीटों की ही जिम्मेंदारी दी गई है।

पिछली विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह को भले ही 97 सीटें हाथ लगीं पर उनके खाते में तकरीबन 25.43 फीसदी वोट आए थे, यह भी तब, जब मुलायम सिंह यादव अपने जीवन का सबसे प्रतिकूल चुनाव लड़ रहे थे। मायावती ने भी 1991 की कल्याण सरकार के बाद पहली मर्तबा स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाकर 30.43 फीसदी वोट हासिल किए थे।

उत्तर प्रदेश विधानसभा में सदस्यों की कुल संख्या 403 हैं। मायावती को 206 सीटें हासिल हुई थीं, अब यह संख्या बढ़कर 213 हो गई है। मायावती कांग्रेस के दलित आधार वाले वोट बैंक में सेंध लगातार राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को कमजोर करने में जुटी हैं।

हिमाचल, उत्तराखंड, पंजाब और गुजरात के चुनाव परिणामों ने यह जता दिया है कि मायावती के हिसाब- किताब किए बिना कांग्रेस का भला नहीं होने वाला। मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात और पंजाब के आगामी चुनाव में भी मायावती कांग्रेस में खासी सेंध लगाएंगी। ऐसे में दलित वोटों के बिखराव से निपटने के लिए पिछड़े वर्ग के मतदाताओं पर भरोसा करना कांग्रेस की मंज़ूरी होनी। पिछड़े वर्ग के बड़े नेताओं में मुलायम और लालू आते हैं।

मुलायम सिंह के लिए भी मायावती की पांच साल वाली स्पष्ट बहुमत की सरकार भारी पड़ रही है। आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई और अदालत के पचड़े में फंसे मुलायम सिंह को केन्द्र सरकार की नजर-ए- इनायत की दरकार है। दूसरे दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है, यह कहावत भी दोनों की निकटता की वजह है।

आउट लुक साप्ताहिक को दिए एक साक्षात्कार में मुलायम सिंह ने कांग्रेस से बातचीत का खुलासा किया। कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी भी हालांकि सपा के साथ किसी तरह के समझौते की बातचीत होने की जानकारी से इनकार करती हैं । पर आउटलुक साप्ताहिक से बातचीत में इतना जरूर कहती हैं, राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। फिरकापरस्त ताकतों को बाहर रखने के लिए यूपीए का नया फ्रंट बना सकते हैं।

हमें यह जरूर देखना होगा कि किस मुद्दे पर वोटों का बंटवारा मुलायम सिंह रोकना चाहते हैं। कभी कांग्रेस की रीढ़ रहे संजय सिंह भी आउटलुक साप्ताहिक से बातचीत में कहते हैं धर्म निरपेक्ष वोट न बंटे। हम यह प्रयास करेंगे। बीते लोकसभा चुनाव में सपा 35 सीटों पर विजयी हुई थी और 22 सीटों पर वह दूसरे नंबर पर रही। जबकि कांग्रेस को 9 सीटें हाथ लगी थीं और 6 जगहों पर वह दूसरे पायदान पर थी अगर इन आंकड़ों पर भी गौर किया जाए तो साफ है कि कांग्रेस राज्य कीसभी सीटों पर चुनाव को बहुकोष्णीय कर अपनी बेहतर स्थिति नहीं जता सकती है।

यही नहीं कांग्रेस अ्रौर समाजवादी पार्टी के बीच बढ़ रही पींगे अगर परवान चढ़ती हैं तो राजनीतिक विश्लेषक नीरज राठोर के मुताबिक दोनों दल मिलकर 25 नई सीटें जीतसकते हैं और 4 पर इनकी हैसियत का इजाफा होगा।

अगर कांग्रेस और सपा को मिल रहे वोटों के आंकड़ों पर गौर करें तो साफ होता है कि मुलायम सिंह यादव को पिछले दो विधानसभा चुनाव में25 फीसदी वोट मिले जबकि 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्हें 26.74 और 1999 के लोकसभा चुनाव में 24.06 फीसदी वोट हासिल हुए थे जबकि कांग्रेस को इन दोनों लोकसभा चुनावों में 12.04 और 14.72 वोट हाथ लगे थे ।

सन् 2007 के विधानसभा में कांग्रेस को 8.61 और 2002 में 8.96 फीसदी वोट हाथ लगे थे। अगर इन सियासी दलों को मिल रहे वोटों पर गौर करें तो साफ होता है कि दोनों दलों के मतदाता मिजाज बदलते हुए नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में वोटों के ट्रांसफर करा लेने की स्थिति में सकारात्मक कही जा सकती है।

अल्पसंख्यक और बसपा से मोह भंग की स्थिति में ब्राहमण

सपा और बसपा को मिले बीते दोनों लोकसभा चुनावों के वोट प्रतिशत पर गौर किया जाए तो साफ होता है कि बसपा की बाढ को रोकने में मुलायम कांग्रेस के बेहद मददगार होंगे। सन् 2004 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव को राष्ट्रीय स्तर पर 4.32 फीसदी, जबकि 1999 के चुनाव में 3.76 फीसदी मत मिले।

मुलायम सिंह यादव की कांग्रेस से बातचीत के राजनीतिक अर्थ निकलो जा सकते हैं पर कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के द्वारा सपा महासचिव अमर सिंह के पिता के निधन के एक महीने बाद फोन करके संवेदना व्यक्त करना यह जताता है, अमर सिंह को लेकर जो गतिरोध थे वे अब कम हुए हैं।

गौरतलब है कि अमर सिंह ने अपनी सियासत की शुरूआत कलकत्ता से कांग्रेस पार्टी के मार्फत ही शुरू की थी । यही नहीं, सोनिया और राहुल जिन अभेद्य सुरक्षा वाले क्षेत्रों से आते हैं,उनकी विधानसभा सीटें बसपा और सपा के पास हैं। लोकसभा चुनाव आसानी से जीतने के लिए किसी एक के साथ तालमेल करना जरूरी है। इसे सुधारे बिना केन्द्र की सत्ता से कांग्रेस वंचित रह जाएगी। मुलायम सिंह यादव का कहना है कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाया जाए तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं होगी।

इसी क्रम में मुलायम सिंह यादव के करीबी अमिताभ बच्चन ने भी राहुल गांधी के नेतृत्व के बारे में सकारात्मक टिप्पणी की है। ये सारी बातें स्पष्ट संकेत दे रही हैं कि अपने-अपने राजनीतिक भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए वे करीब आना चाहते हैं। राजनीतिक समीक्षणक नीरज राठौर बताते हैं अगर यह गठबंधन हुआ तो सबसे अधिक फायदा कांग्रेस के ही खातें में दर्ज होगा । क्योंकि अल्पसंख्यक और बसपा से मोह भंग की स्थिति में आ रहे ब्राहमण मतदाताओं को नया मंच मिलेगा।

कल तक कांग्रेस पर फब्तियां कसने वाले और इस गठबंधन में सबसे बड़े अवरोध सपा महासचिव अमर सिंह ने भी अपने एक राज्यसभा सांसद के आवास पर बातचीत में आने वाले लोकसभा चुनाव में गठबंधन के संकेत दिए।सनातन ब्राहमण समाज के अधिवेशन में 11 मई को सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह द्वारा पं. जवाहरलाल नेहरू की तारीफ और लोहिया का उदाहरण देते हुए यह कह

ना , अगर कांग्रेस खुद में सुधार लाए तो समाजवादियों की स्वाभाविक मित्र हो सकती है। जताता है कि कुछ ऐसा चल रहा है कि जिससे मायावती का हाथी रोका जा सके।

( यह मूल रूप से 28, मई,2008 को प्रकाशित हुई है।)

Vidushi Mishra

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