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यूपी विधानसभा अध्यक्ष ने परंपरा तोड़कर बनाई नई लीक, अब नहीं खोजा जाएगा स्पीकर

कहते हैं लीक-लीक कायर चलें, लीकहिं चले कपूत...लीक छोड़ तीनों चलें, शायर, सिंह, सपूत....। 17 वीं विधानसभा के स्पीकर बने हृदय नारायण दीक्षित ने पहले ही दिन गुरुवार (30 मार्च) अपनी छाप विधानसभा पर छोड़ दी। उन्होंने हमेशा से चली आ रही स्पीकर को खोजने की परंपरा को अब समाप्त कर दिया है।

tiwarishalini
Published on: 30 March 2017 5:30 PM IST
यूपी विधानसभा अध्यक्ष ने परंपरा तोड़कर बनाई नई लीक, अब नहीं खोजा जाएगा स्पीकर
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परंपरा तोड़कर नई लीक बनाई यूपी विधानसभा अध्यक्ष ने, अब नहीं खोजा जाएगा स्पीकर

लखनऊ: कहते हैं लीक-लीक कायर चलें, लीकहिं चले कपूत...लीक छोड़ तीनों चलें, शायर, सिंह, सपूत....। 17 वीं विधानसभा के स्पीकर बने हृदय नारायण दीक्षित ने पहले ही दिन गुरुवार (30 मार्च) अपनी छाप विधानसभा पर छोड़ दी। उन्होंने हमेशा से चली आ रही स्पीकर को खोजने की परंपरा को अब समाप्त कर दिया है।

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दरअसल जिस दिन स्पीकर का चुनाव होता है। स्पीकर विधायकों के बीच कहीं बैठ जाते हैं। नेता सदन, नेता प्रतिपक्ष और दूसरे दलों के नेता उन्हें खोजकर आसन तक पहुंचाते है। विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने इसे यूरोपीय परंपरा बताते हुए आज से खत्म करने का निर्देश दे दिया।

अगली स्लाइड में जानिए क्या है परंपरा

निर्विरोध विधानसभा अध्यक्ष चुने गये ह्रदय नारायण दीक्षित, सभी दलों ने किया स्वागत

क्या है परंपरा, क्या है इसका इतिहास ?

उत्तर प्रदेश की विधानसभा में स्पीकर का चुनाव होने के बाद विधानसभा अध्यक्ष विधायकों के बीच बैठ जाते हैं। अपने नियत स्थान से अलग बाद में उन्हें सभी दलों के नेता खोजकर आसन तक पहुंचाते हैं। दरअसल यह परंपरा ब्रिटेन से शुरू होती है। यहां पर 11वीं से लेकर 14वीं शताब्दी तक राजा और संसद के बीच में संबंध बहुत खराब थे।

ऐसे में संसद की तरफ से बोलने के लिए स्पीकर चुने जाते और एक के बाद एक छह स्पीकर की हत्या हो गई। ऐसे में जिस स्पीकर को चुना गया तो वह कहीं गांव में छिप गए उन्हें खोजकर लाया गया। यहीं से इस परंपरा की शुरुआत हुई।

अब नहीं खोजा जाएगा स्पीकर

17वीं विधानसभा के नए अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने पद संभालते ही इस परंपरा को खत्म करने का ऐलान कर दिया। उन्होंने कहा कि यह यूरोपीय परंपरा है और इसे अब नहीं चलना चाहिए। साथ ही यह भी कहा कि हमारे यहां सभा बहुत महत्वपूर्ण है। सभा कमजोर होती है तो महाभारत होता है वरना वैदिक युग रहता है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि पुराणों में यह भी कहा गया है कि सभा ही शिव है। ऐसे में इस परंपरा को अब आगे नहीं चलना चाहिए।



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