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'राजनीति'..औरों के लिए उन्नति का रास्ता, भारत के लिए सिर्फ बिजनेस

किसी भी राज्य या फिर राष्ट्र की उन्नति अथवा अवनति में राजनीति की एक अह्म भूमिका होती है। मजबूत विपक्ष एवं सकारात्मक विरोध की राजनीति विकास के लिए आवश्यक भी हैं। लेकिन के

tiwarishalini
Published on: 3 Jun 2017 10:34 AM GMT
राजनीति..औरों के लिए उन्नति का रास्ता, भारत के लिए सिर्फ बिजनेस
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डॉ. नीलम महेंद्र

लखनऊ: किसी भी राज्य या फिर राष्ट्र की उन्नति अथवा अवनति में राजनीति की एक अह्म भूमिका होती है। मजबूत विपक्ष एवं सकारात्मक विरोध की राजनीति विकास के लिए आवश्यक भी हैं। लेकिन केवल विरोध करने के लिए विरोध एवं नफरत की राजनीति जो हमारे देश में आज कुछ लोग कर रहे हैं काश वो एक पल रुक कर सोच तो लेते कि इससे न तो देश का भला होगा और न ही स्वयं उनका।

मोदी ने जिस प्रकार देश की नब्ज अपने हाथ में पकड़ ली है उससे हताश विपक्ष आज एक दूसरे के हाथ पकड़ कर सब मिलकर भी अति उतावलेपन में केवल स्वयं अपना ही नुकसान कर रहे हैं। अपने ही तरकश से निकलने वाले तीरों से खुद को ही घायल कर रहे हैं। जिस निर्लज्जता के साथ यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने केरल के कुन्नूर में बीच सडक़ में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ नारेबाजी करते हुए एक बछड़े का वध कर वीडियो डाला, खून के इन छीटों को कांग्रेस कभी अपने दामन से हटा नहीं पाएगी क्योंकि यह काम किसी एक व्यक्ति ने नहीं किया बल्कि इस घटना को अंजाम दिया है कांग्रेस के झंडे तले उस यूथ कांग्रेस के पदाधिकारी ने जिस यूथ कांग्रेस का नेतृत्व कुछ सालों पहले स्वयं राहुल गांधी ने किया था।

सम्पूर्ण विश्व में अहिंसा के पुजारी के रूप में पूजे जाने वाले जिस गांधी के नाम के सहारे कांग्रेस आज तक जीवित है वही पार्टी जब आज अपने विरोध प्रदर्शन के लिए हिंसा का सहारा ले रही है तो समय आ गया है कि इस देश के नागरिक होने के नाते हम सभी सोचें कि हमारा देश कहां जा रहा है और ये राजनीतिक पार्टियां इस देश की राजनीति को किस दिशा में ले जा रही हैं। सत्ता की राजनीति आज नफरत की राजनीति में बदल चुकी है और सभी प्रकार की सीमाएं समाप्त होती जा रही हैं।

गाय के नाम पर राजनीति करने वाले शायद यह भूल रहे हैं कि गाय को माता मान कर पूजना इस देश की सभ्यता और संस्कृति में शामिल है यह हमारे देश के संस्कार हैं आधारशिला है वोट बैंक नहीं। लेकिन दुर्भाग्यवश आज हमारे देश की राजनीतिक पार्टियों की नजर में इस देश का हर नागरिक अपनी जाति सम्प्रदाय अथवा लिंग के आधार पर उनके लिए वोट बैंक से अधिक और कुछ भी नहीं है। राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए हम गोहत्या करने से भी परहेज नहीं करते गोहत्या के नाम पर एक दूसरे की हत्या भी हमें स्वीकार है और हम मानव सभ्यता के विकास के चरम पर हैं?

हम सभी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और हम जीने के लिए न सिर्फ दूसरे पर लेकिन प्रकृति पर भी निर्भर हैं तो एक दूसरे के प्रति इतने असंवेदनशील कैसे हो सकते हैं। वो भी उस गाय के प्रति जिसे हमारी संस्कृति में मां कहा गया है? क्या ये असंवेदनशील लोग इस प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं कि क्यों सम्पूर्ण दुधारु पशुओं में से केवल गाय के ही दूध को वैज्ञानिक अनुसंधानों के बाद मां के दूध के तुल्य माना गया? क्यों अन्य पशुओं जैसे भैंस, बकरी व ऊंटनी के दूध में मातृत्व के पूरक अंश नहीं पाए जाते? क्या गाय के अलावा किसी अन्य जीव के मल मूत्र में औषधीय गुण पाए जाते हैं?

जब ईश्वर ने स्वयं गाय का सृजन मनुष्य का पालन करने योग्य गुणों के साथ किया है और आधुनिक विज्ञान भी इन तथ्यों को स्वीकार कर चुका है तो फिर वह गाय जो जीते जी उसे पोषित करती है तो क्यों हम उसे मां का दर्जा नहीं दे पा रहे? राजस्थान हाई कोर्ट की सलाहानुसार अपने पड़ोसी देश नेपाल की तरह क्यों नहीं हम भी गाय को अपना राष्ट्रीय पशु घोषित कर देते उसे मारकर उसके ही मांस से पोषण प्राप्त करने की मांग कहां तक उचित है?

भारत में लोगों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए बीफ की परिभाषा में से गोमांस को हटा दिया जाए तो मांसाहार का सेवन करने वाले लोगों को भी कोई तकलीफ नहीं होगी और भारतीय जनमानस की भावनाओं को भी सम्मान मिल जाएगा। हमारे पास गाय के दूध, गोबर और मूत्र के कोई विकल्प नहीं है लेकिन मांस के तो अन्य भी कई विकल्प हैं तो फिर ये कैसी राजनीति है जिसमें गोमांस से ही कुछ लोगों की भूख मिटती है?

शायद यह भूख पेट की नहीं, सत्ता की है, ताकत की है, नफरत की है, साजिश की है। नहीं तो जिस देश के लोग पेड़ पौधे ही नहीं पत्थर की भी पूजा करते हैं जिस देश में सभी के मंगल की कामना करते हुए कहा जाता हो 'सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया: सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् तु भाग्भवेत्'

उसी देश में कुछ लोग विरोध करने के लिए इस स्तर तक गिर रहे हैं और जिस प्रकार कुतर्कों का सहारा ले रहे हैं, यही कहा जा सकता है कि विनाश काले विपरीत बुद्धि क्योंकि खून अकेले उस बछड़े का नहीं बहा खून उस पार्टी का भी बह गया जिसके झण्डे के नीचे यह कृत्य हुआ एवं अन्त केवल उस बछड़े का नहीं हुआ बल्कि उस पार्टी के भविष्य का भी हुआ कमजोर अकेले वो पार्टी नहीं हुई समूचा विपक्ष हो गया और बछड़े के प्राण आगे आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा में एक बार फिर से नए प्राण फूंक गए।

फिलहाल विरोध के इस तरीके को किसी भी सूरत में सही नहीं ठहराया जा सकता और शायद यही कारण है कि कांग्रेस नेतृत्व ने इसकी निंदा करते हुए घटना में शामिल यूथ कांग्रेस के पदाधिकारियों को पार्टी से निलंबित भी कर दिया है। यहां बात केवल निलंबन का नहीं है, इस घटना की वजह से पूरे देश में जो आक्रोश उमड़ा हैं उसका शिकार कहीं निर्दोष न हो जाएं। देश में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनको शुरुआती दौर में मामूली समझा गया लेकिन उसका प्रतिशोध दूसरे प्रदेशों में काफी व्यापक हो गया, जिसमें कई निर्दोश लोगों की जानें भी गईं।

अच्छा हो कि विरोध करने वाले भी अपनी जिम्मेदारी समझे और विरोध के नाम पर ऐसी गलती न करें कि जिससे राजस्व का नुकसान हो व निर्दोश लोगों की जानमाल की हानि से बचा जा सके। अपनी निम्न स्तर की सोच के चलते ऐसा करने वालों को भी यह सोचना होगा कि उनकी वजह से जो हिंसा के शिकार बनते हैं वह भी इसी देश के नागरिक हैं, अपने हैं।

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Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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