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राजनीति: जानिए कब और कितनी बार फेल हुई विपक्षी एकता?
भारतबंद, ईवीएम और भाजपा नेतृत्व राजग गठबंधन से दोचार होने के नाम पर विपक्षियों का एक बड़ा झुंड दिल्ली के जंतर-मंतर से लेकर झुंड में शामिल नेताओं के घरों में लंबी-लंबी बैठके कर चुका है। लेकिन नतीजा सिफर ही रहा।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 2014 में सत्ता संभालने के बाद उनके खिलाफ विपक्षी एकता की कोशिशे हर बार नाकाम साबित हो रही है।
हाल ही में काफी मशक्कत के बाद विपक्षी दलों का एक प्रतिनिधिमंडल कश्मीर के हालात जानने वहां गया लेकिन वहां से वापस किए जाने के बाद विपक्ष को एक बार फिर मुंह की खानी पडी और विपक्षी एकता तार तार होते दिखी।
भारतबंद, ईवीएम और भाजपा नेतृत्व राजग गठबंधन से दोचार होने के नाम पर विपक्षियों का एक बड़ा झुंड दिल्ली के जंतर-मंतर से लेकर झुंड में शामिल नेताओं के घरों में लंबी-लंबी बैठके कर चुका है। लेकिन नतीजा सिफर ही रहा।
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अनुच्छेद -370 पर जम्मू- कश्मीर से खाली हाथ लौट
हाल ही में जम्मू कश्मीर से धारा-370 और 35 ए हटाए जाने के बाद वहां उत्पन्न स्थिति का जायजा लेने के लिए विपक्षियों का फिर एक झुंड बीते शनिवार को जम्मू- कश्मीर पहुंचा।लेकिन उसे एयरपोर्ट से ही बैरंग लौटा दिया गया।
इस झुंड की अगुवाई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सांसद राहुल गांधी,राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद कर रहे थे। इसके अलावा इस प्रतिनिधिमंडल में सीपीआई (एम), सीपीआई, तूणमूल कांग्रेस,राष्ट्रवादी कांग्रेस, जनता दल (लोकतांत्रिक),जनता दल(सेक्युलर),राष्ट्रीय जनता दल समेत कुछेक और छुटभैय्ये क्षेत्रीय दल शामिल थे।
इस प्रतिनिधि मंडल को रोके जाने के पीछे तर्क यह दिया गया कि इन सबके वहां जाने से स्थितियां बिगड़ सकती है जबकि इन नेताओं का कहना था कि यदि वहां सब कुछ सामान्य है तो उन्हे वहां जाने से क्यों रोका जा रहा है।
ईवीएम पर सवाल उठाना भी नहीं आया काम
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ईवीएम पर सवाल उठाते हुए इसी तरह राजनीति दलों का एक प्रतिनिधि मंडल चुनाव आयोग पहुंचा था जिसमें कांग्रेस,टीडीपी, बीएसपी, सीपीआई, सीपीआई(एम), आप, टीएमसी, सपा,डीएमके, आरजेडी, एनसीपी शामिल थी।
इन दलों और उसके नेताओं ने ईवीएम पर सवाल उठाते हुए बैलेट पेपर से चुनाव कराए जाने की मांग की थी लेकिन चुनाव आयोग ने विपक्षी दलों की इस तरह की आशंकाओं को सिरे से खारिज कर दिया था।
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जिस समय विपक्षी दलों द्वारा यह मांग की जा रही थी। तभी राजनीतिक विश्लेषकों ने यह घोषणा कर दी थी मुद्दा विहीन विपक्ष को इस बार फिर मात मिलने वाली है। और फिर वही हुआ जिसकी संभावना व्यक्त की जा रही थी विपक्ष के लाख प्रयास के बाद भी विपक्ष इस चुनाव में भी औंधे मुुंह गिरा।
2014 में लोकसभा चुनाव से पहले ही गठबंधन की निकल गई थी हवा
2014के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 11 गैर कांग्रेसी और गैर भाजपा दलों ने मिलकर एक गठबंधन तैयार किया था जिसमें सीपीआई, सीपी आई (एम),फारवर्ड ब्लाक,रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी,जेडीयू, बीजद, अन्नाद्रमुक, झारखंड विकास मोर्चा, जेडीएस, और असमगण परिषद ने हिस्सा लिया था।
गैर कांग्रेस और गैर भाजपा दलों के नाम पर बने इस गठबंधन में शामिल चुनाव आने तक कुछ दल भाजपा के साथ कुछ कांग्रेस के साथ खड़े हो गए और राष्ट्रीय दलों को हाशिए पर रखने के सारे दावों की हवा निकल गयी।
2014के लोकसभा चुनाव में राजग बहुमत मिलने के बाद हताश-निराश विपक्ष ने एक बार फिर नए जोशोखरोश के साथ वर्ष 2015 में 15 अप्रैल को जनता दल के दोनों धड़ों के अलावा राजद,इनेलो,सजपा,सपा ने एक होने का निर्णय लिया था।
11 सिंतबर 2018 को महंगाई के खिलाफ किया था भारत बंद
इसी तरह लोकसभा चुनाव से करीब छह माह पूर्व वर्ष 2018 सिंतबर की 11 तारीख को सारे विपक्षी दलों ने महंगाई के खिलाफ दिल्ली में व्यापाक स्तर पर भारत बंद का आयोजन किया।
जंतर-मंतर पर राहुुल गांधी सहित विभिन्न राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दलों ने हिस्सा लिया। विपक्ष के अथक प्रयासों के बावजूद भी भारत बंद का यह आयोजन मेगा शो नहीं बन पाया।
हालांकि लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष का इसे बड़ा शो माना जा रहा था लेकिन इसमें शामिल दलों और उसके नेताओं के सारे दावे हवा-हवाई साबित हुए।
ऐसा नहीं कि विपक्षी एकता के सारे प्रयास आजकल में शुरू हुए हो। हर बार के लोकसभा चुनाव में इस तरह के प्रयोग होते रहे है। लेकिन मौके पर इक-ड्ढे नेताओं ने हर बार सारे मतभेदों को भुलाकर भाजपा को सबक सिखाने की बात कही लेकिन चुनाव आने तक सब तीन-तेरह हो गए।
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2016 में लखनऊ में इन प्रमुख विपक्षी दलों ने दिखाई थी एकता
इस बैठक में पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा,शरद यादव,नीतीश,लालू मुलायम सहित क्षेत्रीय दलों के बाकी दिग्गज भी जुटे थे इसी तरह का एक बड़ा जुटान यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पांच नवंबर 2016 को समाजवादी पार्टी के रजत जयंती के मौके पर लखनऊ में हुआ था जिसमें लोकदल,जनता दल,इनेलों सहित कुछेक अन्य क्षेत्रीय दल शामिल थे।
इस साल और अगले साल चार-पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने को है। इन राज्यों में कहीं भाजपा तो कहीं भाजपा गठबंधन की सरकार है।
विपक्ष के सामने एक बार फिर अपनी एकता दिखाने की चुनौती है। देखना होगा कि राज्यों में होने वाले इन चुनावों को लेकर कौन-कौन दल कहां एक साथ आते और कहां अपनी एकता का परचम लहराते है।