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यूपी राजकीय निर्माण निगम में गड़बड़ी, अब CM योगी को साधने की कोशिश
बसपा सरकार में स्मारक घोटाले को लेकर चर्चा में आए उप्र राजकीय निर्माण निगम (यूपीआरएनएन) के कामों में गड़बडिय़ों का सिलसिला जारी है।
राजकुमार उपाध्याय
लखनऊ: बसपा सरकार में स्मारक घोटाले को लेकर चर्चा में आए यूपी राजकीय निर्माण निगम (यूपीआरएनएन) के कामों में गड़बडिय़ों का सिलसिला जारी है।
घोटालेबाज इंजीनियरों के कारनामों से तंग आकर दूसरे प्रदेशों की सरकारों ने भी निगम से काम न कराने का मन बनाया है।
उत्तराखंड राज्य मंत्रिपरिषद ने बीते मई महीने में बाकायदा इस बाबत प्रस्ताव भी पास किया था। निगम के काम में घपलों की ताजी नजीर यह है कि हाल ही में प्रदेश में नवनिॢमत लोकभवन यानी मुख्यमंत्री कार्यालय का एक कुंतल वजनी गेट गिर गया।
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इसमें घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया था। इसकी चपेट में आने से एक सात साल की बच्ची किरन की मौत हो गई।
खास यह है कि घपले और घोटालों के लगातार खुलासे के बावजूद जिम्मेदारों पर अखिलेश राज में लगाम नहीं लग सकी थी। अब वही घोटालेबाज योगी सरकार से संतुलन साधने में जुटे हैं।
चाहे बसपा की सरकार रही हो या सपा का शासन, निगम के निर्माण के कामों में जमकर लूट हुई। निगम के प्रबंध निदेशक आरके गोयल ने दोनों ही सरकारों के कार्यकाल में जमकर मलाई काटी। बसपा सरकार में वह प्रबंध निदेशक रहे सीपी सिंह के दाहिने हाथ कहे जाते थे।
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उनके बाद सपा के वरिष्ठ मंत्री रहे शिवपाल सिंह यादव के खासमखास आरएन यादव को यह जिम्मेदारी मिली मगर वे ज्यादा समय तक इस कुर्सी पर नहीं टिक सके। 15 नवम्बर 2014 को आरके गोयल को निगम का प्रबंध निदेशक बनाया गया। उन्हीं के कार्यकाल में 600 करोड़ की लागत वाले लोकभवन का निर्माण हुआ।
अक्टूबर 2016 में इसके कामों में गड़बडिय़ों को लेकर तत्कालीन प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री अनीता सिंह ने गोयल को फटकार भी लगाई थी। उन्होंने मुख्यमंत्री कार्यालय में लगी टाइल्स पर सवाल खड़े किए थे। इसके बाद रातों-रात गोयल ने उसे दुरुस्त कराया।
ऐसा नहीं कि गोयल के कारनामों की आवाज ऊपर तक नहीं पहुंची पर तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें अभयदान दे दिया। निगम में चर्चा है कि अपने इन्हीं कारनामों पर पर्दा डालने के लिए ही सरकार बदलने के बाद गोयल योगी सरकार से संतुलन साधने में जुटे हैं।
नहीं रखा नियमों का लिहाज
उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम की स्थापना साल 1975 में राज्य सरकार के उपक्रम के तौर पर की गई थी। निगम ने पांच लाख की शेयर पूंजी के साथ काम शुरू किया। साल 1977-78 में सरकार ने निगम को फिर 100 लाख की शेयर पूंजी दी। निगम ने मुनाफा भी हुआ। निगम की नियमावली में सभी काम विभागीय निर्माण प्रणाली से कराए जाने का प्रावधान है।
गुणवत्तायुक्त सामग्री सीधे उत्पादकों से खरीदी जाए और श्रमिकों से काम पूरा कराया जाए। शुरूआती दौर में निगम ने इन नियमों का लिहाज रखते हुए काम भी कराए।
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जिससे एक कार्यदायी संस्था के तौर पर निगम की एक बेहतरीन साख बनी और आईएसओ 9001-2008 का प्रमाण पत्र हासिल हुआ। पर बाद के सालों में जिम्मेदारों ने इसका ख्याल नहीं रखा। निगम के अफसरों ने अपने चहेते ठेकेदारों को ‘विथ मैटेरियल‘ यानि ‘बैक टू बैक‘ काम बांटने शुरू कर दिए।
तमाम कामों में भ्रष्टाचार उजागर हुआ। इस तरह भ्रष्टाचारी अफसरों ने निगम की साख को धूल में मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
हाईकोर्ट भवन को भी नहीं बख्शा
निर्माण निगम के इंजीनियर हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के नवनिर्मित भवन में भी घपलों की सेंधमारी करने से नहीं चूके। नवम्बर 2016 में भवन के निर्माण में गड़बड़ी उस समय उजागर हुईं जब 15 सौ करोड़ की लागत से बने इस भवन के सी-ब्लाक की दीवार का एक पत्थर 40 फीट की ऊंचाई से गिर गया।
उस समय वकील ब्लाक की गैलरी से कोर्ट रूम की तरफ जा रहे थे। हालांकि इसमें कोई जख्मी नहीं हुआ पर एक बड़ा हादसा होते-होते बचा। ध्यान देने की बात यह है कि इसके एक माह पहले ही भवन में कामकाज शुरू हुआ था।
इन राज्यों में काम कर रहा निर्माण निगम
कार्यदायी संस्था के तौर पर उप्र निर्माण निगम का कार्यक्षेत्र सिर्फ प्रदेश ही नहीं है बल्कि यह दिल्ली, उत्तरांचल, चंडीगढ़, उड़ीसा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा,मध्य प्रदेश और आंध्रप्रदेश में भी काम करती है। एमडी आरके गोयल के मुताबिक निगम को पूरे देश भर में 11 काम मिले हैं। टेंडर डालकर काम लिए गए हैं।
जिन ठेकेदारों को काम नहीं मिलता, वह कर रहे दुष्प्रचार
प्रबंध निदेशक आर.के.गोयल का कहना है कि निर्माण निगम की साख मजबूत करने के लिए निगम के कामों में पारदर्शी प्रक्रिया अपनायी जा रही है, ई-टेंडरिंग की जा रही है ताकि अच्छे ठेकेदारों का चयन हो सके। जिन ठेकेदारों को काम नहीं मिलता है वे दुष्प्रचार कर रहे हैं। विभागीय नियमावली से ही हाईकोर्ट, लोकभवन और स्मारक बने हैं। पूरे उत्तराखंड में इसी नियमावली से काम हुआ।
हाईकोर्ट में जब करोड़ों पत्थर लगे हैं और उसमें से एक पत्थर गिर गया तो ऐसा नहीं कि हाईकोर्ट की क्वालिटी खराब हो गई। इसकी प्रशंसा भी सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश ने की है। लोकभवन में जो गेट गिरा है वह जेनरेटर रूम का गेट है। उस पर पांच-छह बच्चे चढ़ गए थे। तब वह गेट गिरा है। राजकीय मेडिकल कालेज, उरई में कई लोगों ने आरोप पत्र के जवाब दे दिए हैं। कुछ लोगों का जवाब मंगाया जा रहा है।
मेडिकल कॉलेज, उरई की दो साल तक लटकी रही जांच
राजकीय मेडिकल कालेज, उरई (जालौन) के निर्माण में करोड़ों का घोटाला हुआ। आरोप है कि ऑडिटोरियम भवन के निर्माण में स्वीकृत दरों से अधिक दाम पर काम कराए गए। आर्म स्ट्रोंग वॉल पेनलिंग, फाल सीलिंग आर्म स्ट्रोंग, कारपेट फ्लोरिंग यूनिटेक और कुर्सी की आपूॢत अधिक दरों पर की गई।
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शिकायत होने पर 12 फरवरी 2015 को प्रबंध निदेशक आर.के.गोयल ने अनियमितताओं की जांच के लिए एक कमेटी गठित कर दी। जांच समिति को अगस्त 2012 से जुलाई 2014 तक कराए गए कामों की गहनता से जांच करने को कहा गया। तय हुआ कि एक माह में जांच कर कमेटी अपनी रिपोर्ट पेश करेगी पर यह रिपोर्ट दो साल तक लटकी रही।
इसके बाद फिर एक जांच कमेटी बनी पर वह भी जांच को अंजाम तक नहीं पहुंचा पाई। अंत में जब मामले ने तूल पकड़ा तब फिर आरके गोयल ने एक कमेटी गठित की। इस कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट में तत्कालीन इकाई प्रभारी श्रवण कुमार समेत आठ अधिकारियों को आरोपी बनाया है। वैसे विभागीय जानकारों का कहना है कि गोयल इस घोटाले की जांच को अंतिम समय तक टरकाते रहे।