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Sharad Yadav: जेपी ने पहली बार सियासी अखाड़े में उतारा,जेल से लड़कर जीता था पहला लोकसभा चुनाव
Sharad Yadav Death News: 1974 में पहली बार लोकसभा के सदस्य चुने गए थे। उस समय जेपी के नेतृत्व में देशभर में छात्र आंदोलन चल रहा था और लोकनायक जयप्रकाश नारायण के निर्देश पर ही वे चुनाव मैदान में उतरे थे।
Sharad Yadav: लंबे समय तक देश की संसद में मुखर रहने वाले समाजवादी नेता शरद यादव का गुरुवार को निधन हो गया। शरद यादव लंबे समय तक संसद के दोनों सदनों के सदस्य रहे। वे सात बार लोकसभा और तीन बार राज्यसभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे। सियासी मैदान में शरद यादव का उतरना भी एक नाटकीय की घटना की तरह ही था।
वे 1974 में पहली बार लोकसभा के सदस्य चुने गए थे। उस समय जेपी के नेतृत्व में देशभर में छात्र आंदोलन चल रहा था और लोकनायक जयप्रकाश नारायण के निर्देश पर ही वे चुनाव मैदान में उतरे थे। अपने पहले चुनाव में ही उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे सेठ गोविंद दास के बेटे रवि मोहनदास को हराने में कामयाबी हासिल की थी। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और देश की सियासत में अहम भूमिका निभाई।
जेपी के निर्देश पर लड़ा पहला चुनाव
सेठ गोविंद दास को कांग्रेस का कद्दावर नेता माना जाता था और जबलपुर लोकसभा सीट पर वे 1952 से ही जीत हासिल करते आ रहे थे। सेठ गोविंद दास के निधन पर 1974 में जबलपुर लोकसभा सीट खाली हो गई थी और वहां उपचुनाव कराया गया। उस समय देश का सियासी माहौल काफी बदला हुआ था और लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में देश के विभिन्न राज्यों में छात्र आंदोलन शबाब पर था।
शरद यादव उन दिनों जबलपुर विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के अध्यक्ष थे। चुनाव आयोग की ओर से जबलपुर उपचुनाव की अधिसूचना जारी किए जाने के बाद लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने शरद यादव को जबलपुर संसदीय सीट से उपचुनाव लड़ने को कहा। जेपी के निर्देश पर शरद यादव चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गए। अन्य विपक्षी दलों की ओर से भी शरद यादव को समर्थन हासिल हुआ। दूसरी ओर कांग्रेस ने सेठ गोविंद दास के बेटे रवि मोहनदास को चुनाव मैदान में उतारा।
जेल से हासिल की उपचुनाव में जीत
छात्र आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने के कारण शरद यादव उन दिनों जेल में बंद थे और उन्होंने जेल से ही अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा। शरद यादव को इस उपचुनाव के दौरान जबलपुर के लोगों का व्यापक समर्थन हासिल हुआ और वे अपने पहले लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने में कामयाब रहे।
27 साल की उम्र में वे पहली बार लोकसभा के सदस्य बन गए। हालांकि उन्होंने जल्द ही लोकसभा से इस्तीफा भी दे दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा का कार्यकाल 5 साल से बढ़ाकर 6 साल कर दिया था। इंदिरा गांधी के इस कदम के खिलाफ विरोध जताते हुए शरद यादव ने जबलपुर लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था।
बाद में बिहार को बनाया राजनीतिक कर्मभूमि
जेल से निकलने के बाद शरद यादव लगातार सियासी मैदान में कामयाबी हासिल करते रहे। 1977 में देश में बड़ा सियासी बदलाव हुआ था और जनता पार्टी ने बहुमत हासिल करके इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल कर दिया था। 1977 के चुनाव में भी शरद यादव जबलपुर संसदीय सीट से चुनाव जीतने में कामयाब हुए थे। बाद में उन्होंने उत्तर प्रदेश के बदायूं और बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट से भी जीत हासिल की।
मध्यप्रदेश से जुड़ा होने के बावजूद शरद यादव ने बाद के दिनों में बिहार को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाया। 1990 में लालू प्रसाद यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनवाने में भी शरद यादव ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। शरद यादव आपातकाल के दौरान उपजे उन नेताओं में शामिल थे जिन्होंने गैर कांग्रेसवाद का समर्थन करते हुए राष्ट्रीय राजनीति में अपने लिए अहम जगह बनाई। वे संसद में विभिन्न मुद्दों पर पूरी बेबाकी के साथ अपनी राय रखते थे। लोकसभा और राज्यसभा में आज भी उनके भाषणों को याद किया जाता है।