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Kalyan Singh : सदन में माइक फेंके..जूता-चप्पल चला..हाथापाई हुई..बावजूद कल्याण सिंह ने बहुमत साबित किया

Kalyan Singh : मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को बहुमत साबित करना था। उस दिन सदन की गरिमा तार-तार हो गई।

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Written By amanPublished By Shraddha
Published on: 28 Sep 2021 1:55 AM GMT
सदन में माइक फेंके..जूता-चप्पल चला..हाथापाई हुई
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कल्याण सिंह (फाइल फोटो - सोशल मीडिया)

Kalyan Singh : भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का उत्तर प्रदेश में कमल खिलाने वाले, राम भक्ति का सजीव उदाहरण, हिन्दू ह्रदय सम्राट जैसे कई विशेषण सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (Former Chief Minister Kalyan Singh) के लिए दिए जाते हैं। कल्याण सिंह की छवि राम मंदिर (Ram Mandir) आंदोलन के प्रणेता के अलावा एक ईमानदार और सख्त प्रशासक के तौर पर भी रही।

लेकिन उनके राजनीतिक जीवन में कई विवाद और किस्से भी जुड़े रहे। आज हम ऐसी घटना का जिक्र करेंगे जिसमें सीधे रूप से कल्याण सिंह की कोई भूमिका नहीं थी मगर उनके शासनकाल में हुआ था। इसे यूपी विधानसभा (UP Vidhan Sabha) के इतिहास का काल दिन कहा जाता है। बाद के समय में जब भी किसी अन्य राज्य के विधानसभा में इससे मिलती-जुलती घटना हुई, तब यूपी के सदन को एक बार याद जरूर किया जाता है।

सदन में विधायकों ने फेंका माइक, जूता-चप्पल


सदन में विधायकों ने फेंका माइक (कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)

वह दिन था 21 अक्टूबर, 1997 का। जब यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को बहुमत साबित करना था। उस दिन सदन की गरिमा तार-तार हो गई। जब विधानसभा के भीतर विधायकों के बीच माइकें फेंकी जाने लगी। लात-घूंसे और चप्पल-जूते सब चले। हालांकि विपक्ष की गैरमौजूदगी में कल्याण सिंह ने बहुमत साबित कर दिया था। तब कल्याण को बीजेपी के समर्थक विधायकों की कुल संख्या से ज्यादा 46 और विधायकों का वोट प्राप्त हुआ था। कल्याण सिंह को 222 विधायकों का वोट मिला था।


बीजेपी-बसपा में हुआ था 6-6 महीने का करार


दरअसल, विधानसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन का दौर था। तब एक समझौते के तहत बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी में 6-6 महीने सरकार चलने का करार हुआ था।शुरुआती छह महीने मायावती के बीतने के बाद बीजेपी नेता कल्याण सिंह ने 21 सितंबर, 1997 को मुख्यमंत्री का पद संभाला। कल्याण सिंह ने मायावती सरकार के अधिकतर फैसले बदल दिए, जिससे बसपा नाराज थी। आखिरकार, दोनों पार्टियों के मतभेद खुलकर सामने आ गए।

ये थी पूरी कहानी


कल्याण सिंह के सत्ता संभाले अभी महीना भर ही बीता था कि बसपा नेता मायावती ने 19 अक्टूबर, 1997 को कल्याण सिंह की सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह सरकार को मात्र दो दिन का समय बहुमत साबित करने के लिए दिया था। राज्यपाल के अनुसार, 21 अक्टूबर को कल्याण सिंह को अपना बहुमत साबित करना था। 21 अक्टूबर को बहुमत साबित करने कल्याण सिंह विधायकों के साथ सदन में मौजूद थे। तब कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने सदन में वोटिंग की मांग रखी। तिवारी की इस मांग पर बसपा के विधायक भी हंगामा करने लगे। इसी बीच सदन में एक विधायक ने स्पीकर केशरीनाथ त्रिपाठी की तरफ माइक फेंक द‍िया। इसके बाद सदन में हंगामा मच गया। बीजेपी और विपक्ष के विधायकों में जमकर हाथापाई हुई। बता दें, कि इस घटना में 40 से अधिक विधायकों को गंभीर चोटें आई थीं। तब बसपा, जनता दल और कांग्रेस में बड़ी टूट हुई । इन पार्टियों के कई विधायक पाला बदलकर बीजेपी के साथ हो गए।


नहीं मिला था किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत

17 अक्टूबर , 1996 को 13वीं विधानसभा के नतीजे आए थे। परिणामों से स्पष्ट था कि किसी भी दल को सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत नहीं मिला था। 425 सीटों वाली विधानसभा (तब उत्तराखंड अलग नहीं हुआ था) में बीजेपी 173 सीटें हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। समाजवादी पार्टी को 108 तो बहुजन समाज पार्टी को 66 सीटें मिली थी। इस चुनाव में कांग्रेस को 33 सीटें हासिल हुई थी। तब राज्यपाल रोमेश भंडारी ने राष्ट्रपति शासन को छह महीने बढ़ाने के लिए केंद्र को सिफारिश भेजी थी। हालांकि, राष्ट्रपति शासन का पहले ही एक वर्ष पूरा हो चुका था। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए राष्ट्रपति शासन छह महीने बढ़ाने के केंद्र के फैसले को मंजूरी दे दी।

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