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कांग्रेस चमत्कारी बाबाओं की पार्टी! नहीं है यकीन तो यहां जानें हकीकत

चंद्रा अपनी किताब में लिखते हैं​ कि ह्यूम का सबूत पेश न कर पाना बड़ा कारण है कि इस थ्योरी पर विश्वास न किया जाए। इस बारे में कोई पुख्ता ऐतिहासिक प्रमाण अब तक सामने न आने के कारण ह्यूम के ये सारे किस्से विश्वास योग्य नहीं हैं।

Shivakant Shukla
Published on: 2 Aug 2023 10:08 AM GMT (Updated on: 2 Aug 2023 10:27 AM GMT)
कांग्रेस चमत्कारी बाबाओं की पार्टी! नहीं है यकीन तो यहां जानें हकीकत
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लखनऊ: देश की सवा सौ साल से ज़्यादा पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रदेश अध्यक्ष के पदों को लेकर कई तरह की चर्चाएं ज़ोरों पर हैं। आज हम आपको पार्टी से जुड़ी कुछ बातें बताने जा रहे हैं...

कहा जा रहा है कि पार्टी का झुकाव राष्ट्रवादी और हिंदुत्व के एजेंडे की तरफ भी है, ये जानकर आपको थोड़ी सी हैरानी जरूर होगी, लेकिन कांग्रेस की स्थापना के पीछे कुछ पहुंचे हुए साधु संतो का बड़ा रोल रहा था! जी हां, इतिहास के पन्नों में दर्ज एक थ्योरी की मानें तो कांग्रेस की स्थापना ए. ओ. ह्यूम ने की ज़रूर थी लेकिन इसकी प्रेरणा उन्हें कुछ चमत्कारी महात्माओं के ज़रिए ही मिली थी।

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इतिहास को ध्यान में रखकर बात करें तो कुछ इतिहासकार अप्रामाणिक करार देते हैं, तो कुछ मानते हैं कि ह्यूम को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना करने का आइडिया महात्माओं की प्रेरणा से ही मिला था। तो आइये जानते हैं क्या है हकीकत...

कैसे महात्माओं के बारे में मिली थी ह्यूम को जानकारी

पहले जान लीजिए कि ए.ओ.ह्यूम भारत में ब्रिटेन की इंपीरियल सिविल सर्विसेज़ के अधिकारी थे। ह्यूम को भारत के इन चमत्कारी महात्माओं के बारे में जानकारी अमेरिका के थियोसॉफिकल सोसायटी की स्थापना करने वाली मादाम ब्लैवैत्स्की के ज़रिए पता चला था।

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भारतीय धर्म प्रभावित होकर ह्यूम ने शाकाहार अपनाया था

ब्लैवैत्स्की ने इन आध्यात्मिक गुरुओं को महात्मा कहा था और ह्यूम को बताया था कि ये महात्मा हिमालय में गुप्त रूप से तिब्बत के पास कहीं रहते थे लेकिन इनके पास करिश्माई शक्तियां थीं जिनसे वह कहीं से भी किसी के भी साथ जुड़ सकते थे और भारत के जनमानस को प्रभावित कर सकते थे। भारतीय धर्म और अध्यात्म से प्रभावित होकर ह्यूम ने शाकाहार अपनाया था।

क्या ह्यूम को साधु संतो पर विश्वास था?

आधुनिक भारत के इतिहास के इतिहासकार बिपिन चंद्रा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पुस्तक में इस पूरी घटना का उल्लेख करते हुए लिखा है कि ब्लैवैत्स्की ने ह्यूम की मुलाकात ऐसे ही एक महात्मा कूट हूमी लाल सिंह के साथ करवाई भी थी। वहीं, पायनियर के संपादक एपी सिनेट ने 1880 में एक किताब लिखी थी, जिसमें ऐसे ही महात्माओं के साथ सिनेट के पत्र व्यवहार को लेकर दस्तावेज़ थे।

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1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में हुआ था चमत्कारी शक्ति का प्रयोग

सिनेट की किताब में कहा गया था कि इन्हीं महात्माओं ने 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम के समय अपनी चमत्कारी शक्तियों से भारतीय जनमानस को नियंत्रित किया था और एक तरह से ब्रिटिश हुकूमत की मदद की थी। ब्लैवैत्स्की और इस किताब का यही प्रभाव था कि ह्यूम ने इन बातों पर विश्वास किया और उन्हें लगा कि ये महात्मा फिर ब्रिटिश सरकार की मदद कर सकते हैं। दूसरी बात ये भी कि भारतीय और पूर्वी एशियाई धर्मों और अध्यात्म में ह्यूम की काफी दिलचस्पी रही थी।

पागल थे या झूठे थे ह्यूम?

चंद्रा की किताब में उल्लेख है कि 1883 के आसपास ह्यूम ने इन महात्माओं के साथ भारतीय प्रशासन को बेहतर करने संबंधी विषयों पर चर्चा की थी। दूसरी तरफ, वायसराय रिपन और दूसरे ब्रिटिश आला ​अधिकारियों को इन महात्माओं की चमत्कारी शक्तियों पर विश्वास करने और ब्रिटिश सरकार को इनकी मदद लेने के लिए मनाने की कोशिश की थी।

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ये चर्चा आगे बढ़ी और जब ब्रिटिश हुकूमत ने इन महात्माओं को लेकर ह्यूम से ठोस सबूत मांगे तो ह्यूम ऐसा कोई सबूत नहीं दे सके, जिससे उन पर विश्वास किया जा सके। इस बात से चिढ़े ह्यूम के हवाले से ये भी लिखा मिलता है कि उस वक्त भारत में मौजूद यूरोपीय लोग 'या तो उन्हें पागल समझते थे या झूठा'। आगे उन्होंने कांग्रेस की स्थापना की।

कांग्रेस की स्थापना की दूसरा इतिहास

चंद्रा की ही किताब में महात्माओं वाली इस थ्योरी को कांग्रेस की स्थापना को लेकर मिथक वाले अध्याय में दर्ज करते हुए अगले अध्याय में लिखा गया है कि वास्तविक कारण ये था कि कांग्रेस की स्थापना भारतीय नेताओं और ब्रिटिश सरकार के बीच करीब दो दशकों से चल रही बातचीत का नतीजा थी, जिसमें भारतीय नेताओं ने ब्रिटिश सरकार में अपना पक्ष रखने के लिए राजनीतिक अधिकारों पर बहस छेड़ी थी।

कांग्रेस की स्थापना न तो अचानक हुई थी और न ऐतिहासिक दुर्घटना थी

चंद्रा ने हरी अपनी किताब में लिखा है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना न तो अचानक हुई थी और न ऐतिहासिक दुर्घटना थी। 1860 के दशक में इस तरह की शुरूआत हुई थी और 1885 में एक टर्निंग प्वाइंट दिखा था। भारतीय नेताओं, राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले छोटे गुट जो राष्ट्रीय में जुड़ना चाहते थे, भारतीय विद्वान, सभी ने मिलकर एक राष्ट्रीय पार्टी के लिए जो जद्दोजहद की थी, यह उसका नतीजा था।

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तो क्या बकवास है महात्माओं वाली थ्योरी?

चंद्रा अपनी किताब में लिखते हैं​ कि ह्यूम का सबूत पेश न कर पाना बड़ा कारण है कि इस थ्योरी पर विश्वास न किया जाए। इस बारे में कोई पुख्ता ऐतिहासिक प्रमाण अब तक सामने न आने के कारण ह्यूम के ये सारे किस्से विश्वास योग्य नहीं हैं। लेकिन एक और खेमा है जो इस थ्योरी को कुछ स्वीकार भी करता है। ऐसे में इस स्टोरी पर विश्वास करना थोड़ा कठिन हैं लेकिन कुछ लोग इस पर विश्वास करते हैं तो कुछ नहीं।

Shivakant Shukla

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