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छुआछूत, शोषण के विरुद्ध चट्टान बन गए मुलायम, धरतीपुत्र बन पहुंचे राजनीति के शिखर पर

धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक जीवन से लेकर उनके व्यक्तिगत जीवन तक के कई यादगार किस्से...

Sandeep Mishra
Published on: 12 Jun 2021 5:47 PM IST (Updated on: 8 Jun 2022 3:34 PM IST)
छुआछूत, शोषण के विरुद्ध चट्टान बन गए मुलायम, धरतीपुत्र बन पहुंचे राजनीति के शिखर पर
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राजनीति के अखाड़े के माहिर खिलाड़ी समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने अपने राजनैतिक जीवन में विरोधियों को हमेशा शिकस्त दी है। उनके धोबी पाट दाँव से उनके राजनैतिक विरोधी हमेशा एक अज्ञात भय से ग्रसित रहते हैं, लेकिन देश का यह दिग्गज लोहियावादी नेता भी डरता था। मुलायम सिंह यादव के बचपन के सखा सुभाष यादव बताते हैं कि नेता जी को सांपों से बहुत डर लगता है। वे आज भी सांप देखकर डर जाते हैं। सूबे के मैनपुरी (Mainpuri) जनपद के करहल कस्बे के रहने वाले सुभाष यादव, मुलायम सिंह यादव के राजनैतिक गुरु (Mulayam Singh Yadav Political Guru) चौ. नत्थू सिंह के बेटे हैं और उन्हें मुलायम सिंह यादव ने 1998 में एमएलसी बनवाया था फिर बाद में उन्हें कैबिनेट मंत्री भी बनाया।

मुलायम सिंह के साथ बचपन में गुजारे अपने संस्मरणो में वे बताते हैं कि जब कभी हम लोग नेता जी के साथ किसी शादी समारोह में जाते थे, तो हम लोग उन्हें रबर के सांप से डरा कर काफी हंसी मजाक किया करते थे।

मुलायम सिंह का व्यक्तिगत जीवन

देश के इस दिग्गज समाजवादी नेता (Samajwadi Party leader Mulayam) का जन्म इटावा के सैफ़ई गांव में 22 नवम्बर 1939 को हुआ था। मुलायम सिंह यादव के पिता का नाम सुघर सिंह यादव व माता का नाम श्रीमती राम मूर्ति यादव था। मुलायम सिंह पांच भाई हैं। मुलायम सिंह यादव से बड़े भाई रतन सिंह यादव हैं, जिनके स्वर्गीय पुत्र रणबीर सिंह यादव सैफ़ई के ब्लॉक प्रमुख रहे हैं, उनके स्वर्गवासी होने के बाद उनकी पत्नी मृदुला यादव सैफई की ब्लॉक प्रमुख रही हैं और इस बार भी इसी पद की सैफ़ई ब्लॉक से प्रत्याशी हैं। जबकि रतन सिंह यादव के नाती तेज प्रताप यादव वर्तमान में सांसद हैं।मुलायम सिंह यादव से छोटे भाईयों में अभयराम सिंह यादव हैं, जिनके पुत्र बदायूं के सांसद धर्मेंद्र यादव हैं। अभयराम यादव से छोटे भाई राजपाल यादव हैं, जिनके पुत्र अंशुल यादव हैं, जो जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके हैं। इस बार भी इस पद से चुनाव लड़ रहे हैं। मुलायम सिंह यादव के सबसे छोटे भाई पूर्व कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव हैं जो वर्तमान में इटावा की जसवन्तनगर सीट से विधायक हैं और अपनी खड़ी की गयी नई पार्टी प्रसपा (लोहिया) के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। शिवपाल सिंह यादव के पुत्र आदित्य यादव पी सी एफ चेयरमैन हैं।

मुलायम सिंह यादव के परिवार से बचपन से जुड़े लोग बताते हैं कि मुलायम सिंह के पिता काफी सम्पन्न किसान नहीं थे। वे गो पालन कर अपने सभी बच्चों का पालन करते थे। मुलायम सिंह यादव की एक लाडली बहन भी हैं, जो इटावा फ्रैंड्स कालोनी में रहती हैं। मुलायम सिंह यादव के जीजा का नाम अजंट सिंह यादव है। वे एक शिक्षाविद हैं। मुलायम सिंह यादव ने अपनी शिक्षा बेहद गरीबी की हालत में पूरी की है।मुलायम सिंह की शिक्षित बनने की ललक को देखते हुए उनके गाँव सैफ़ई के तत्कालीन प्रधान चौ. महेंद्र सिंह यादव व इटावा में केके डिग्री कॉलेज के संस्थापक स्व. लाला हजारी लाल वर्मा ने मुलायम सिंह यादव को शिक्षित बनाने में काफी मदद की थी।मुलायम ने स्नातक इटावा के केके डिग्री कॉलेज, स्नातकोत्तर की शिक्षा आगरा विश्विद्यालय से पूरी की जबकि उन्होंने बीटीसी की डिग्री करहल के जैन इंटर कॉलेज से हासिल की। फिर इसी कॉलेज में मुलायम सिंह यादव शिक्षक पद पर तैनात भी हो गए थे।

मुलायम सिंह का राजनीतिक कैरियर

देश के दिग्गज समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव ने देश की राजनीति में अपना पहला कदम वर्ष 1954 में रखा था। तब उनकी उम्र 15 वर्ष थी। 15 साल की ही छोटी सी उम्र में मुलायम सिंह यादव के गरीब दलितों की भलाई के लिए कॉग्रेस सरकार के प्रति उग्र तेवर लोगों को दिखाई देने लगे थे। डॉ. राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर हुए नहर रेट आंदोलन में मुलायम सिंह यादव ने बेहद क्रांतिकारी अंदाज में हिस्सा लिया और इस आंदोलन का प्रतिनधित्व करते हुए पहली बार जेल भी गए।मुलायम सिंह यादव को बचपन से पहलवानी करने का बेहद शौक था। वे दंगल के उस समय के मंझे हुए पहलवानों में अपनी गिनती रखते थे। वर्ष 1957 में लोहिया की प्रजातंत्र सोशलिस्ट पार्टी से चौ. नत्थू सिंह यादव जसवन्तनगर विधान सभा सीट से चुनाव लड़ रहे थे। उसी दौरान इलाके के काशीपुर गाँव मे दंगल प्रतियोगिता आयोजित थी। इस दंगल प्रतियोगिता में बतौर चीफ गेस्ट चौ. नत्थू सिंह यादव भी पहुंचे थे। इस दंगल प्रतियोगिता में मुलायम ने कई कुश्तियां लड़ीं और अपने प्रतिद्वंदी पहलवानों को धूल चटा दी। मुलायम सिंह यादव के पहलवानी के दांव पेंच व धोबी पाट को देख कर चौ. नत्थू सिंह बहुत प्रसन्न हुए। दंगल के बाद चौ. नत्थू सिंह ने मुलायम से पूंछा कि किस दल के लिये काम करते हो? प्रतिउत्तर में मुलायम ने उन्हें बताया कि वे तो उन्ही के दल के लिये काम करते आ रहे हैं।

इसी दंगल समारोह के बाद से मुलायम सिंह यादव, चौ. नत्थू सिंह के बेहद करीब आ गए थे। मुलायम सिंह यादव ने उन्हें अपना राजनैतिक गुरु बना लिया। बस यहीं से गुरु व शिष्य के बीच कई मुलाकातों का दौर शुरू हुआ। बस यही मुलाकातें मुलायम सिंह यादव के राजनैतिक करियर में नया मोड़ ले आईं।इस समय मुलायम सिंह करहल के जैन इंटर कॉलेज में शिक्षक भी थे। वर्ष 1967 में चौ. नत्थू सिंह ने अपने प्रिय शिष्य मुलायम सिंह यादव के लिये जसवंतनगर सीट छोड़ दी और अपनी जगह प्रजातंत्र सोशलिस्ट पार्टी से मुलायम सिंह यादव को जसवंतनगर विधान सभा सीट से पहली बार प्रत्याशी बना दिया। अचानक जसवन्तनगर विधानसभा सीट से मुलायम सिंह यादव के प्रत्याशी बनाने के निर्णय को लेकर डॉ. राम मनोहर लोहिया, चौ. नत्थू सिंह यादव से बेहद नाराज हुए थे। उन्होंने जब लोहिया जी को यह आश्वस्त किया कि मुलायम सिंह यादव यह चुनाव जीत लेंगे, हम सभी उन्हें चुनाव जितवाएँगे, तब लोहिया जी का गुस्सा शांत हुआ।

मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक गुरु चौ. नत्थू सिंह यादव के पुत्र व मुलायम के बाल सखा पूर्व मंत्री सुभाष यादव उन दिनों के अपने संस्मरणों की याद ताजा करते हुए बताते हैं कि नेता जी मुलायम सिंह यादव सफेद धोती कुर्ता व सिर पर लाल टोपी पहन कर उनके साथ मोटरसाइकिल पर बैठकर गांव-गांव चुनाव प्रचार के लिये जाते थे। जबकि चौ. नत्थू सिंह अपनी जीप में बैठकर गांव गांव अपने शिष्य मुलायम के चुनाव के लिये चंदा एकत्रित करते थे। इस चुनाव में जसवन्तनगर सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी लाखन सिंह थे। मुलायम सिह यादव, उनके राजनैतिक गुरू चौ0नत्थू सिंह यादव,मुलायम के बाल सखा दर्शन सिंह यादव,बाबू राम यादव रामफल बाल्मीकि समेत कई लोगो की कड़ी मेहनत के चलते मुलायम सिंह यादव यह चुनाव जीत गए। तब यूपी की विधान सभा में मुलायम सिंह यादव सबसे कम उम्र के विधायक चुनकर गए थे। इस समय उनकी उम्र लगभग 30 वर्ष के आसपास रही थी।

छुआछूत व जातिगत व्यवस्था के बेहद खिलाफ थे मुलायम

मुलायम सिंह यादव के बाल सखा व वर्तमान में सैफई गाँव के प्रधान रामफल बाल्मीकि की,वर्ष 1967 के चुनाव में उम्र यही कोई 22 वर्ष थी। इन्होंने भी इस चुनाव में अपने सखा मुलायम को जिताने के लिए काफी मेहनत की थी।रामफल बाल्मीकि बताते हैं कि 1967 के समय में छुआछूत जातीय व्यवस्था की जड़ें समाज मे बहुत ही गहरी थीं। उस समय मुलायम सिंह यादव पहले ऐसे नेता हुए, जिन्होंने इस व्यवस्था का काफी मुखर होकर विरोध किया। रामफल बाल्मीकि बताते हैं कि मुलायम जब भी गाँव आते थे,तो हमारे समाज के लोगों से गले मिलते थे और हम लोगों को अखाड़े में पहलवानी भी सिखाते थे।उन्होंने बताया कि मुलायम सिंह यादव ने हमेशा समाज में फैली छुआछूत व जातीयता की जड़ों को कमजोर करने का ही काम किया है। उस समय का एक संस्मरण याद करते हुए सैफई के वर्तमान प्रधान रामफल बाल्मीकि बताते हैं कि यह किस्सा उन दिनों का है जब नेता जी सूबे की सरकार में सहकारिता मंत्री हुआ करते थे। इसी समय नेता जी ने अपने छोटे भाई राजपाल सिंह यादव का एक शादी समारोह अपने गांव सैफ़ई में आयोजित किया। इस समारोह में मुलायम सिंह यादव इलाके के सभी बाल्मीकि व अन्य दलित समाज को निमंत्रित किया था। रामफल बाल्मीकि बताते हैं कि उनके समाज के एक बुजुर्ग प्रभुदयाल, जब अपने समाज के लोगों के साथ भोजन करने खाने के पंडाल में पहुंचे तो नेताजी ने उन्हें गले लगाते हुए भोजन ग्रहण करने के लिये आग्रह किया। प्रभुदयाल इस आग्रह पर नेता जी से बोले कि हम लोग अलग बैठ कर भोजन ग्रहण कर लेंगे, लेकिन मुलायम सिंह यादव नहीं माने और पंडाल में सबके साथ बैठा कर भोजन ग्रहण करवाया।

इंदिरा गांधी भी मानती थी मुलायम का लोहा (Mulayam Singh Yadav । Indira Gandhi)

वर्ष 1967 में इटावा जिले की जसवन्तनगर सीट से विधायक चुनने के बाद से फिर मुलायम राजनीति के अखाड़े में अपने राजनैतिक विरोधियों को पटकनी देते हुए आगे बढ़ते रहे हैं। इसके बाद सूबे के मध्यावधि चुनाव 1968,1974 व 1977 में भी वे जसवन्तनगर विधान सभा से निर्वाचित हुए। इसी समय आम जनता के बीच उनकी जमीनी पकड़ की मजबूती को देखते हुए उन्हें धरतीपुत्र की उपाधि मिली। अब लोग उन्हें धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव के नाम से भी बुलाने लगे।यह राजनीतिक घटना है वर्ष 1980 की है। जसवन्तनगर सीट से लगातार हो रही कॉंग्रेस की हार से देश की तत्कालीन पीएम व अखिल भारतीय कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष इंदिरा गांधी बेहद परेशान थीं। तब उन्होंने कांग्रेस के तत्कालीन कद्दावर नेता व इटावा में भरथना के रहने वाले बलराम सिंह यादव को 80 के विधान सभा चुनाव में कॉग्रेस प्रत्याशी के रूप में जसवन्तनगर विधान सभा सीट से टिकट दिया और उस समय बलराम सिंह को इस सीट से विजयश्री दिलवाने की जिम्मेदारी इंदिरा जी ने अपने पुत्र संजय गांधी को दी थी। तब संजय गांधी, बलराम सिंह यादव को जसवन्तनगर सीट से चुनाव जितवाने के लिये चार दिन इटावा रुके थे और बलराम सिंह के चुनाव का संचालन उन्होंने अपने हाथ मे लिया था, तब यह चुनाव मुलायम सिंह यादव लूज कर गए थे। सन 80 में इटावा की जसवन्तनगर विधान सभा सीट का यह चुनाव देश के राजनैतिक गलियारों में बेहद चर्चा का विषय बना था।

पूर्व पीएम मानते थे मुलायम को दत्तक पुत्र

मुलायम सिंह यादव के राजनैतिक मित्र बताते हैं कि लोकदल के संस्थापक व देश के पूर्व पीएम चौ. चरण सिंह, मुलायम सिंह यादव की कार्यकर्ताओ. पर पकड़ व मजबूत याद्दाश्त व चुनावी दांव पेंच में महारथ हासिल होने के कारण उन्हें अपना दत्तक पुत्र भी मानते थे। बस इसी वजह से चौ. चरण सिंह के पुत्र चौ. अजित सिंह का मुलायम सिंह से 36 का आंकड़ा रहता था।मुलायम सिंह यादव के राजनैतिक कैरियर पर एक नजर

देश के दिग्गज समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव ने अपना राजनैतिक कैरियर वर्ष 1954 में शुरू किया था। कांग्रेस सरकार के खिलाफ उनका पहले दो आंदोलन के मुद्दे नहर रेट व किसान लगान थे। मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत अपने गुरु चौ. नत्थू सिंह यादव, डा. राममनोहर लोहिया, कर्पूरी ठाकुर, जनेश्वर मिश्र, राज नारायण, राम सेवक यादव व कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया के साथ की थी।

मुलायम सिंह यादव वर्ष 1967, 1974, 1977, 1985, 1992, 1993 व 1996 में विधायक बने। आपातकाल में मुलायम सिंह यादव ने 19 माह की जेल भी काटी थी। 1980 में मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश लोकदल के अध्यक्ष बनाये गए थे। जो बाद में जनता दल का एक घटक दल भी बना था।वर्ष 1989 में मुलायम सिंह यादव पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 1990 में जब वी पी सिंह की सरकार गिर गयी थी तब मुलायम सिंह यादव, चन्द्रशेखर की जनता दल (समाजवादी) में शामिल हो गए। अप्रैल 1991 में कांग्रेस के समर्थन से मुलायम सिंह यादव फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। वर्ष 1991 में ही कुछ दिनों के पश्चात कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस लेकर उनकी सरकार गिरा दी थी। वर्ष 1991 के यूपी के मध्यावधि चुनाव में मुलायम सिंह सूबे में चुनाव हार गए थे।

4 अक्टूबर 1992 में मुलायम सिंह यादव ने लखनऊ में अपनी अलग समाजवादी पार्टी का गठन किया था। वर्ष 1993 में 256 सीटों पर मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी ने चुनाव लड़ा,जिसमे 103 सीटों पर मुलायम सिंह यादव की सपा चुनाव जीती थी। 1993 में सपा-बसपा गठबंधन की सरकार यूपी में काबिज हुई। जिसमें बसपा की 67 सीटें थीं। एक बार फिर मुलायम सिंह यादव सूबे के मुख्यमंत्री बने थे लेकिन बाद में यह गठबंधन नहीं चल सका और फिर सरकार गिर गई। 1996 में मुलायम सिंह यादव ने केंद्र की राजनीति में प्रवेश किया। केंद्र में बनी सयुंक्त मोर्चे की सरकार में मुलायम सिंह यादव पीएम बनने की दौड़ में शामिल थे लेकिन लालू प्रसाद यादव के दांव पेंच के चलते मुलायम सिंह यादव पीएम पद की रेस से बाहर हो गए। 1जून 1996 को मुलायम सिंह यादव देश के रक्षा मंत्री बने और उनका रक्षा मंत्री के रूप में उनका यह कार्यकाल 19 मार्च 1998 तक चला।वर्ष 1999 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव सूबे के सम्भल व कन्नौज सीट से सांसद निर्वाचित हुए। बाद में उन्होंने कन्नौज सीट छोड़ दी, फिर अपने बेटे को सांसद बनवाया। वर्ष 2003 में मुलायम सिंह यादव ने पुनः उत्तर प्रदेश की राजनीति की तरफ रुख किया और फिर उत्तर प्रदेश के सीएम बन गए। एक मुख्यमंत्रित्व के रूप में उनका यह कार्यकाल 2007 तक चला। मुलायम सिंह यादव वर्ष 2004 व 2009 में मैनपुरी से सांसद भी रहे। 2012 के चुनाव में मुलायम सिंह के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी को सूबे पूर्ण बहुमत मिला तब उन्होंने अपने बड़े बेटे अखिलेश यादव को सूबे का सीएम बनाया।

मुलायम सिंह यादव की शादियां

देश के दिग्गज समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव ने पहली शादी मालती देवी के साथ की। जिनके एक मात्र पुत्र सूबे के पूर्व सीएम व सपा प्रमुख अखिलेश यादव हैं। मुलायम सिंह की पहली पत्नी का स्वर्गवास हो गया है।मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी का नाम है साधना गुप्ता। प्रतीक यादव साधना यादव के बेटे हैं। बताया जाता है कि साधना यादव पहले गुप्ता थी। और ये भी विवाहित थीं, उनका विवाह किसी गुप्ता परिवार में हुआ था।प्रतीक यादव साधना के पहले पति की संतान बतायी जाती हैं। लेकिन 90 के दशक में एक प्रेमिका के रूप में उन्होंने मुलायम सिंह यादव के जीवन में प्रवेश किया फिर मुलायम सिंह यादव ने पहली पत्नी मालती देवी के रहते साधना से प्रेम विवाह कर उन्हें साधना गुप्ता से साधना यादव बना दिया।

समाजवादी विचारधारा में बॉलीवुड ग्लैमर का प्रवेश

देश के दिग्गज लोहियावादी नेता मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक सफर में मुम्बई के बॉलीवुड का भी अहम रोल रहा है। यह वर्ष 1996 की बात है जब मुलायम सिंह यादव एक हवाई यात्रा कर रहे थे उसी हवाई यात्रा में मुलायम सिंह यादव की मुलाकात अमर सिंह से हुई। तब मुलायम सिंह यादव देश के रक्षामंत्री थे।अमर -मुलायम की यह मुलाकात दोस्ती में तब्दील होने का पता लोगों को तब लगा जब वर्ष 2000 में मुलायम सिंह यादव ने अमर सिंह को समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया। जब पहली बार 2002 मे सैफ़ई में एक महोत्सव का आयोजन हुआ तब अमर सिंह पहली बार सदी के महानायक अमिताभ बच्चन समेत कई बॉलीवुड हस्तियों को लेकर सैफ़ई महोत्सव में पहुचे थे।उसके बाद अब तक कइयों बार सम्पन्न हुए सैफ़ई महोत्सव में संजय दत्त, गोविंदा, जया प्रदा, सोनू निगम समेत कई दिग्गज बॉलीवुड की हस्तियां मुलायम सिंह यादव के सैफ़ई महोत्सव की आन बान शान बन चुकी हैं। बॉलीवुड की इन हस्तियों के आगमन से लोग मानते हैं कि इटावा जैसे अतिपिछड़े इलाके की लोक कला संस्क्रति को एक नया आयाम मिला है। मुलायम सिंह यादव ने अपने मित्र अमर सिंह को चार बार राज्य सभा का सांसद यूपी का औद्योगिक विकास परिषद का चेयरमैन भी बनाया। अमर सिंह के आगमन के बाद ही समाजवादी विचारधारा से देश के कोपरेट जगत की हस्तियां अनिल अंबानी व सहारा प्रमुख सुब्रत राय भी जुड़े। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन तो आज भी सपा कोटे से राज्य सभा सांसद हैं।

मुलायम के राजनैतिक कैरियर के बड़े फैसले

(1)-समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनैतिक जीवन मे कुछ ऐसे फैसले लिये जिनके कारण वे हमेशा याद किये जाते रहेंगे।

देश के रक्षामंत्री के रूप में मुलायम सिंह ने सबसे बड़ा फैसला लिया। उनके आदेश के बाद ही शहीदों के शव उनके पैतृक घर लाने का सिलसिला शुरू हुआ, वरना इससे पहले शहीद होने वाले भारतीय सैनिकों के शव की जगह सिर्फ उनकी टोपी व बैल्ट ही घर आती थी। इसके साथ ही शहीद सैनिकों के परिजनों को पहले 5 लाख व फिर बाद में 20 लाख रुपये का अनुदान देने की व्यवस्था मुलायम सिंह यादव ने ही शुरू की।

(2)-जनता दल से अलग होकर वर्ष 1992 में समाजवादी पार्टी के गठन का फैसला

(3)-1989 में जब मुलायम सिंह यादव पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। तब 1990 में अयोध्या में राम मंदिर का आंदोलन तेज होने पर उन्होने कार सेवको पर गोली चलाने का आदेश बेहद कठिन परिस्थितियों में दिया था। अपने आदेश के बाद मुलायम सिंह यादव ने यह भी स्वीकार किया था कि यह उनके जीवन का सबसे कठिन राजनीतिक फैसला था।

(4)-वर्ष 2008 में देश की यूपीए की मनमोहन सरकार से न्यूक्लियर डील में वामपंथी दलों के द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद मुलायम सिंह यादव ने सरकार को बाहर से समर्थन दिया था।

(4)-वर्ष 2012 में अपने बेटे अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश का सीएम बनाने का कड़ा फैसला लेकर उत्तर प्रदेश की राजनीति को नई दिशा दी।

(5)-मुलायम सिंह यादव ने अपने जीवन मे तब भी कड़ा फैसला लिया जब उन्होंने अपने चचेरे भाई व पार्टी के प्रमुख महासचिव डॉ. रामगोपाल यादव को महज इसलिये सपा से बर्खास्त कर दिया था, क्योंकि मुलायम सिंह यादव यह मान कर चल रहे थे कि पुत्र अखिलेश यादव, शिवपाल सिंह यादव के बीच मतभेद कराने व सैफ़ई परिवार में कलह का बीज बोने में रामगोपाल यादव की साजिश है।

आज की पीढ़ी के भी आइकॉन हैं मुलायम

भारतीय राजनीति में अर्श पर एक मुकाम हासिल करने के बाद भी अपने सामान्य से कार्यकर्ताओं के बीच सरल नेता के रूप में रहना ये मुलायम की शख्सियत की पहचान है। मुलायम सिंह यादव से 10 वर्ष की उम्र से जुड़े 30 वर्षीय अर्शी कहते हैं कि हमारे नेता जी आज भी हम सभी को भीड़ में इस तरह से बुला लेते हैं जैसे वो आज भी एक सामान्य आदमी हैं। समाज के कई युवा कहते हैं हमारे नेता जी जैसा सरल सिद्धान्तवादी, कर्मठ, याद्दाश्त का मजबूत नेता होना बहुत ही मुश्किल है।



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