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मेरठ के बाद अब गोरखपुर नगर निगम में भी वंदेमातरम पर मचा बवाल
गोरखपुर : मेरठ नगर निगम में बोर्ड की बैठक के समापन में वंदेमातरम गाए जाने को लेकर पैदा हुआ विवाद अभी थमा नहीं था, कि गोरखपुर नगर निगम बोर्ड की बैठक में भी इसी मुद्दे पर जमकर हंगामा हुआ। महापौर डा. सत्या पांडेय ने वंदेमातरम् के साथ बैठक के समापन का प्रस्ताव रखा तो सपा पार्षद विरोध पर उतर आए। उन्होंने इसे तय कार्यसूची में शामिल न करने का आरोप लगाते हुए डायस पर पहुंचकर हंगामा किया। उनके हंगामा के बीच भाजपा के पार्षद वंदेमातरम् के नारे लगाने लगे।
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इस दौरान भाजपा पार्षदों ने योगी आदित्यनाथ जिंदाबाद के नारे लगाए तो सपा पार्षदों ने अखिलेश यादव जिंदाबाद के नारे लगाए। हंगामा बढ़ता देख महापौर और नगर आयुक्त सदन से निकल गए। इस बीच सदन में अफरा-तफरी मची रही। नगर निगम बोर्ड की बैठक बुलाई गई थी, जिसमें वर्ष 2017-18 के लिए बजट और नगर निगम क्षेत्र में 31 गांवों को जोड़ने का प्रस्ताव रखा जाना था।
दोपहर एक बजे सदन की कार्यवाही शुरू हुई। पार्षद संजय सिंह, वीर सिंह सोनकर, पिंटू गौड़, शिवाजी शुक्ला, रमेश गुप्ता, मोहम्मद जावेद, शकील अंसारी ने छुट्टा पशुओं को पकड़ने, खराब सड़कें और पथ प्रकाश की समस्या उठाए। इस दौरान कई प्रस्ताव पर सदन की मुहर लगी।
दोपहर सवा दो बजे मेयर ने वंदेमातरम् के साथ सदन की कार्रवाई समाप्त करने का प्रस्ताव रखा, जिसे लेकर विवाद शुरू हो गया। सपा पार्षद जियाउल इस्लाम, मंजूर आलम, हाजी शकील अंसारी, मोहम्मद अख्तर, अमीरुद्दीन अंसारी और मोहम्मद जावेद विरोध करते हुए डायस तक पहुंच गए। इसी बीच किसी ने शीशे का ग्लास तोड़ा और कुर्सी पटक दी। सदन के अंदर इस हंगामे के दौरान भाजपा पार्षद पिंटू गौड़, रणंजय सिंह जुगनू, रविंदर सिंह राजू, राजेश जायसवाल समेत कई पार्षद डायस के पास पहुंचे।
सपा पार्षदों का कहना था कि बिना सूचना नई परंपरा क्यों शुरू की गई। भाजपा पार्षदों का कहना था कि वंदेमातरम् न गाने वाले देशद्रोह के श्रेणी में आते हैं।
गोरखपुर की मेयर सत्या पाण्डेय ने कहा की देश और प्रदेश में राष्ट्रवादी सरकार है। इस लिए हर बैठक में अब वंदेमातरम् गाया जाएगा। जो लोग इसका विरोध करते हैं वे देशभक्त नहीं हो सकते। यह जरूरी नहीं है कि जो काम पहले नहीं हुआ है, आगे भी न हो।
वही सपा पार्षद जियाउल इस्लाम ने कहा महापौर ने सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए नगर निगम मेरठ की नकल की है। पौने पांच साल के कार्यकाल में उन्हें कभी राष्ट्रगान और वंदेमातरम् की याद नहीं आई। सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश है कि वंदेमातरम् के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता।