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क्या निषाद गठबंधन से लाभ उठा पाएगी सपा या डूबेगी नइया ..

इन दिनों चर्चा का केंद्र बिंदु बने निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजय निषाद की तो अपने पुत्र को सपा का टिकट दिलवाकर पूर्वांचल की सियासत में एक हैसियत से उभरे हैं। गोरखपुर सदर सीट पर लोकसभा की राह देख रही समाजवादी पार्टी क्या निषाद पार्टी से गठ बंधन कर निषाद जाति के वोटों का एकमुश्त फायदा उठा पाएगी? क्या इससे उसका मत प्रतिशत बढ़ेगा या फिर सपा से गठबंधन का फायदा निषाद पार्टी को होगा? ये ऐसा सवाल है जो हर किसी के जेहन में कौंध रहा है।

tiwarishalini
Published on: 25 Feb 2018 9:04 AM GMT
क्या निषाद गठबंधन से लाभ उठा पाएगी सपा या डूबेगी नइया ..
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गौरव त्रिपाठी

गोरखपुर: इन दिनों चर्चा का केंद्र बिंदु बने निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजय निषाद की तो अपने पुत्र को सपा का टिकट दिलवाकर पूर्वांचल की सियासत में एक हैसियत से उभरे हैं। गोरखपुर सदर सीट पर लोकसभा की राह देख रही समाजवादी पार्टी क्या निषाद पार्टी से गठ बंधन कर निषाद जाति के वोटों का एकमुश्त फायदा उठा पाएगी? क्या इससे उसका मत प्रतिशत बढ़ेगा या फिर सपा से गठबंधन का फायदा निषाद पार्टी को होगा? ये ऐसा सवाल है जो हर किसी के जेहन में कौंध रहा है।

अगर बात करें गोरखपुर जनपद की राजनीति में निषाद राजनीति के उभार की, तो इसके सूत्रधार बने स्व.जमुना निषाद। 1990 के दशक में जमुना निषाद गोरक्षपीठ के सम्पर्क में आये और बदलती राजनीतिक पृष्टभूमि में पीठ के विरोध में सपा के टिकट पर खड़े होकर जमुना निषाद ने दो लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ को कड़ी टक्कर दी।

इसके बाद से उन्हें हर दल में खास तबज्जो मिलने लगी। जिसके परिणाम स्वरूप प्रदेश की मायावती सरकार में उन्हें मंत्रीपद से सम्मानित भी किया गया।किन्तु असमय मार्गदुर्घटना में हुई उनकी मौत के बाद कई निषाद नेताओं के चेहरे सामने आए। इसके बाद हुए सहजनवां कांड से उभरे डॉ. संजय कुमार निषाद ने संगठन के बल पर न सिर्फ निषादों को संगठित किया बल्कि पार्टी बनाकर और विधानसभा चुनाव में अच्छा-खासा वोट बटोरकर राजनितिक दलों को अपनी ताकत भी दिखा दी।डा. संजय कुमार निषाद गोरखपुर के रहने वाले हैं और राष्ट्रीय निषाद एकता संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

वह तब चर्चा में आए जब उन्होंने पश्चिमी यूपी के जाटों की तर्ज पर निषाद वंशीय समुदाय को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग को लेकर सहजनवां के कसरवल में जाट आंदोलनकारियों की तर्ज पर रेल ट्रैक जाम कर सीधे प्रशासन से टकराव किया। जिसमें हुई पुलिस फायरिंग में एक मौत के बाद उनको जेल जाना पड़ा।जहां से छूटने के बाद उन्होंने निषाद पार्टी बनाई और पूर्वी उत्तर प्रदेश के पसमांदा मुसलमानों में अच्छी पैठ रखने वाली पीस पार्टी के साथ गठबंधन किया।पिछले विधानसभा चुनाव में डा. संजय निषाद ने चुनाव तो नहीं जीता ,लेकिन निषाद वोट खूब बटोरकर विरोधियों को अपनी ताकत का अहसास करा दिया।

हालांकि गोरखपुर निषादों की राजनीति का सबसे बड़ा केन्द्र माना जाता है। गोरखपुर लोक सभा क्षेत्र के सीटों पिपराइच, गोरखपुर ग्रामीण,कैम्पियरगंज आदि स्थानों पर निषाद चुनाव परिणाम बदलने की स्थिति में हैं। गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में निषादों की संख्या तीन से 3.50 लाख के बीच बताई जाती है।जिनमे प्रमुख रूप से बसपा सरकार में ही मंत्री रहे रामभुआल निषाद का काफी बोलबाला रहा।इसके बाद स्व.यमुना निषाद की विधायक पत्नी राजमती देवी और उनके पुत्र अमरेंद्र भी कुछ दिनों तक पटल पर दैदीप्यमान रहे।बावजूद इसके कोई भी निषाद जाति की कुर्शी सही से संभाल न सका।

अब सवाल यह उठता है कि क्या सपा को इस गठबंधन का फायदा मिल पायेगा भी कि नहीं। इसके पीछे वजह ये है कि ऊपर दिए गए दो अन्य नाम सपा के कैडर नेता है, जिनका अपना इलाकाई वोट फिक्स है। किंतु बाहर से आयातित किसी भी सजातीय नेता को वह स्वीकार कर लेंगे, क्या इससे उनका अपना जनाधार खिसकने का चांस नही बढ़ेगा? क्या वह अपने वजूद पर होने वाले अतिक्रमण को बर्दाश्त कर पाएंगे? स्वाभाविक सी बात है... नहीं। तो किस आधार पर माना जाए कि इस वोट बैंक का फायदा सपा को होगा। वहीं पार्टी से गठबंधन के बाद निषाद पार्टी को हर क्षेत्र में जातिगत मत मिलेंगे,जो केवल सजातीय प्रत्याशी के चेहरे को देखते हुए मिलेंगे,इससे निषाद पार्टी को फायदा होना लाजमी है।

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tiwarishalini

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