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गडकरी के बोल बताते हैं सब ठीक नहीं है

आप बस अच्छा- अच्छा बोल कर चुनाव नहीं जीत सकते, आप विद्वान हो सकते हैं लेकिन जरूरी नहीं है कि लोग आप को वोट दें जिन्हें लगता है कि वह सबकुछ जानते हैं उनकी सोच गलत है। आत्मविश्वास और अहंकार में अंतर है। आपको आत्मविश्वासी होना चाहिए लेकिन अहंकार से बचना चाहिए।

Anoop Ojha
Published on: 26 Dec 2018 6:56 AM GMT
गडकरी के बोल बताते हैं सब ठीक नहीं है
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योगेश मिश्र

आप बस अच्छा- अच्छा बोल कर चुनाव नहीं जीत सकते, आप विद्वान हो सकते हैं लेकिन जरूरी नहीं है कि लोग आप को वोट दें जिन्हें लगता है कि वह सबकुछ जानते हैं उनकी सोच गलत है। आत्मविश्वास और अहंकार में अंतर है। आपको आत्मविश्वासी होना चाहिए लेकिन अहंकार से बचना चाहिए। शीर्ष नेतृत्व को जीत की तरह हार की भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। हार की जिम्मेदारी कोई भी नहीं लेना चाहता। लेकिन संस्था के प्रति जिम्मेदारी साबित करने के लिए नेतृत्व को हार और नाकामी की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

यह बयान देते हुए गडकरी ये भूल जाते हैं कि उनके पार्टी अध्यक्ष रहते हुए भाजपा की दो दशकों में सबसे बुरी हार उत्तर प्रदेश में हुई थी। उस समय उन्होंने नरेन्द्र मोदी के विरोधी संजय जोशी को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया था और इसी लिए नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार के लिए उत्तर प्रदेश नहीं आए थे।

लेकिन आज केंद्र सरकार में नरेंद्र मोदी कबीना के ताकतवर मंत्री नितिन गडकरी के ये बोल यह चुगली कर रहे हैं कि तीन राज्यों में पराजय के बाद पार्टी और सरकार के भीतर सबकुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। हालांकि नितिन गडकरी ने इनमें से एक बयान को मीडिया द्वारा तोड़ मरोड़कर पेश करने के घिसे पिटे आरोप की डगर पकड़ ली है। लेकिन जिस तरह वह पंडित जवाहरलाल नेहरू को पसंद करने लगे हैं और नरेंद्र मोदी कांग्रेस मुक्त भारत का अभियान चला रहे हैं। यही नहीं बाकी के दो बयान जिन पर गडकरी कीओर से खामोशी ओढ़ ली गई यह साफ करती है कि मोदी और अमित शाह की सत्ता अब अपराजेय नहीं रह गई है। क्योंकि नितिन गडकरी उन गिने चुने मंत्रियों में हैं जो पूरे पांच साल अपनी अलग अलख जगाने मे कामयाब रहे हैं।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जब अपनी सरकार के विकास के काम गिनाते हैं तो यह जरूर कहते हैं कि उनकी सरकार में रोजाना सड़क बनने का आंकड़ा मनमोहन सरकार से ज्यादा तेज और अधिक है। यही नहीं दुर्घटना से रोकने के बाबत गडकरी ने देश भर के मीडिया में अपने आडियो और विडियो संदेश जारी कर यातायात के नियम पालन करने की अपील में यह दिखा दिया कि वह अकेले मंत्री हैं जो सरकार के इतर भी अपने प्रचार की कूव्वत रखते हैं। नितिन गडकरी का यह आडियो और वीडियो बहुत पसंद भी किया गया। कहा जाता है कि नोटबंदी के सवाल पर गडकरी इकलौते ऐसे नेता थे जिन्होंने अपनी राय रखी थी।

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इम्पोर्ट सब्सिटिच्यूट इकनामी होनी चाहिए

गडकरी संघ के प्रिय लोगों में शुमार हैं महाराष्ट्र में सार्वजनिक निर्वाण विभाग के मंत्री रहते हुए उन्होंने अपने काम से खूब नाम कमाया। गडकरी के पास मंत्रालय के रूप में गंगा और सड़क तथा नौवहन परिवहन भले हो लेकिन वह वित्तीय मामलों में टिप्पणी करने से नहीं चूकते हैं सरकारों के काम के तरीकों पर सवाल उठाते हुए उन्हें यह कहने में गुरेज नहीं होता कि सरकार का काम पालिसी बनाना है बिजनेस करना और उसमें दखल देना नहीं। अच्छाई का पेटेंट किसी ने नहीं लिया है अगर दूसरों के पास है तो उसे अपनाइये। गडकरी मानते हैं कि इम्पोर्ट सब्सिटिच्यूट इकनामी होनी चाहिए यानी जो चीज इस साल इम्पोर्ट हो रही है उसको अगले साल इम्पोर्ट करने की जरूरत न पड़े देश को इसका विकल्प तैयार करना चाहिए।

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अमित शाह और नरेंद्र मोदी भले ही अपने बयानवीर नेताओं के ऊलजलूल बयानों पर भले ही कुछ कह पाने की स्थिति में न हों। उन्हें विवादित बयानों में भी पार्टी का लाभ दिखता हो लेकिन नितिन गडकरी इसके भी खिलाफ खड़े दिखते हैं वह कहते हैं कि हमारे पास इतने नेता हैं और उन्हें टीवी पत्रकारों के सामने बोलना पसंद है इसलिए हमें उन्हें कुछ काम देना चाहिए। एक फिल्म के सीन का जिक्र करते हुए यह भी कहते हैं कि कुछ लोगों के मुंह में कपड़ा डालकर मुंह बंद करने की जरूरत है। जिस भगोड़े विजय माल्या को भारत लाने की मोदी सरकार तैयारी कर रही है उसे भी जी कहते हुए उसके प्रति सहानुभूति दिखाने में गड़करी गुरेज नहीं करते।

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गडकरी का मुखर होना उस समय और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब अभी हाल ही में महाराष्ट्र के एक बड़े किसान नेता ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को सुझाव दिया कि अगर बीजेपी को 2019 में चुनाव जीतना है तो उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जगह केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को लेना चाहिए। यह मांग वसंतराव नाईक शेती स्वालंबन मिशन के प्रमुख किशोर तिवारी की तरफ से आई है। आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत और सहकार्यवाह भैयाजी जोशी को लिखी चिट्ठी में तिवारी ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की हार के लिए अहंकारी नेताओं को जिम्मेदार ठहराया जिन्होंने नोटबंदी, जीएसटी और पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने जैसे फैसले लिए। तिवारी ने बहुत कड़े शब्दों वाली चिट्ठी में लिखा है पार्टी और सरकार में अतिवादी और तानाशाही रवैये वाले नेता समाज और देश के लिए खतरनाक हैं। ये बात पहले भी साबित हो चुकी है और अगर इतिहास नहीं दोहराना है तो 2019 चुनाव के लिए कमान नितिन गडकरी को सौंप दी जानी चाहिए।कृषि कार्यकर्ता किशोर तिवारी महाराष्ट्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे वसंतराव कृषि स्वावलंबन मिशन के अध्यक्ष हैं। ये मिशन किसानों की आत्महत्याओं पर रोकथाम और उनसे जुड़ी कल्याणकारी योजनाओं के अमल पर नज़र रखता है। महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार ने 11 दिसंबर को वीएनएसएसएम प्रमुख किशोर तिवारी को मंत्री का दर्जा दिया था।

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उधर गडकरी के तेवर तल्खी और बयान यह साफ कर रहे हैं कि मोदी और शाह की जोड़ी उन्हें अब उस तरह पसंद नहीं है। बात भले सच न हो लेकिन गाहे बगाहे लोगों के बीच में यह जिक्र तो होता ही है कि अगर 2019 में भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो गठबंधन के साथियों के लिए नरेंद्र मोदी से अधिक पसंदीदा चेहरा नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह का हो सकता है। हालांकि यह संभव है कि अल्पमत की सरकार की नौबत न आए। पार्टी के अंदर अपनी बात कह लेने वाले नेता के रूप में गडकरी मोदी और शाह कालखंड में भी बने हुए हैं। इसकी वजह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से उनके निजी ताल्लुकात कहे जाते हैं गडकरी जो साहस दिखा रहे हैं वह भले नया हो लेकिन अपनी स्वतंत्र छवि को लेकर वह हमेशा सचेत रहे हैं यही वजह है कि उनके इन दिनों के बयानों में नई इबारत पढ़ी जा रही है।

Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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