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UP Election 2022: 'ओमिक्रोन' की दस्तक के बीच देश में चुनाव जरूरी है या लोगों की जिंदगी?

कोरोना वायरस के नए स्वरूप 'ओमिक्रोन' की दहशत पूरी दुनिया में व्याप्त है। हालांकि, ओमिक्रोन से संबंधित लक्षणों के अन्य स्वरूप से ज्यादा खतरनाक होने या मौजूदा टीके या फिर इलाज के निष्प्रभावी होने के संबंध में फिलहाल कोई सबूत नहीं हैं।

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Written By aman
Published on: 4 Dec 2021 11:17 AM GMT (Updated on: 4 Dec 2021 11:26 AM GMT)
UP Election 2022: ओमिक्रोन की दस्तक के बीच देश में चुनाव जरूरी है या लोगों की जिंदगी?
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Omicron Variant-UP Election 2022 : कोरोना वायरस (Covid- 19) के नए स्वरूप 'ओमिक्रोन' की दहशत पूरी दुनिया में व्याप्त है। हालांकि, ओमिक्रोन से संबंधित लक्षणों के अन्य स्वरूप से ज्यादा खतरनाक होने या मौजूदा टीके या फिर इलाज के निष्प्रभावी होने के संबंध में फिलहाल कोई सबूत नहीं हैं। बावजूद, दुनिया भर के देश एहतियातन कदम उठा रहे हैं। भारत में भी बीते दिनों इस वायरस से संक्रमितों के आंकड़े सामने आए हैं।

दरअसल, कोरोना के नए खतरे की आहट से लोगों के जेहन में इसी साल कोरोना महामारी की दूसरी लहर का पूरा चित्र एक बार घूम जाता है। याद कीजिए दूसरी लहर से पहले कमोबेश वही हालात थे, जो अभी हैं। लोगों ने चेहरों से मास्क लगभग उतार दिया है। आज कितने लोग हैं जो नियमित सेनिटाइजर का इस्तेमाल कर रहे हैं। क्योंकि, हम भारतीय इस जीवनशैली के आदी हैं। अब लौटते हैं मुख्य मुद्दे पर।

देश में आगामी महीनों में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। सवाल उठता है कि अगर तब तक 'ओमिक्रोन' अपना असली रूप दिखाने लगे तो? स्वास्थ्य विशेषज्ञों की ओर से जैसा बताया जा रहा है कि इसके लक्षण 'डेल्टा' वायरस से अलग हैं और यह ज्यादा खतरनाक है। तो, कल्पना कीजिये चुनावी समर के दौरान यह वायरस क्या आतंक मचा सकता है। खासकर यूपी जैसे हिंदी पट्टी वाले राज्य में, जहां हर सोच, हर विचार यहां तक की फैसले भी राजनीति से प्रभावित होते हैं।

कोरोना की दूसरी लहर, पहली की तुलना में ज्यादा भयानक रही थी। और अब ओमिक्रोन के लक्षण भी कुछ कम साबित नहीं हो रहे। इसके फैलने की रफ्तार पिछले वायरस से 100 प्रतिशत ज्यादा बताई जा रही है। इस तरह तो भारत में हर दिन लाखों लोग आसानी से इसकी गिरफ्त में आ सकते हैं। जब इस बीच देश में चुनाव हो, तो फिर कहना ही क्या? चुनावी रैलियां भी होंगी, आमसभा भी होंगे, फिर उनमें भीड़ जमा होगी। हजारों-लाखों की संख्या में लोगों का एक जगह जुटना भी होगा। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि देश में चुनाव जरूरी है, या लोगों की जिंदगी?

हम बात करें उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की। जिसकी आबादी ही 22 करोड़ है। न जाने कितने धर्म, मजहब, जातियों में बंटा यह सूबा चुनाव के वक्त एक जगह जमा होता है। अभी की है बात लें, यूपी में सभी चुनावी दल मैदान में उतर चुके हैं। कमोबेश चुनावी रैलियां शुरू हो गयी हैं। क्या भारतीय जनता पार्टी और क्या समाजवादी पार्टी या कांग्रेस। सभी दलों के नेता बुंदेलखंड से लेकर कुशीनगर तक यानी एक छोर से दूसरी छोर तक खाक छान रहे हैं। मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, लोकतंत्र के लिए यह सकारात्मक संकेत हैं। चुनाव भी एक पर्व है, लेकिन सवाल 'टाइमिंग' पर अटक जाती है। जब देश में कोरोना का एक नया वायरस दस्तक दे चुका हो तो क्या, इस तरह चुनावी रैलियां जायज हैं। सोचियेगा जरूर।

याद कीजिए कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भी पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हो रहे थे। तब भी ये सवाल उठा था। कि क्या लोगों की जिंदगी से बढ़कर है चुनाव या चुनावी रैली। मैं इस बात को भी मानता हूं, कि इसके पीछे भी राजनीति होती है। एक या दो दल या इस देश में एक बड़ा वर्ग तब इस मुद्दे को उठाता है जब उसके पक्ष के उम्मीदवार या पार्टी अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में रुझान के हिसाब से बढ़त बनाए हुए हों। तब एक पार्टी चुनाव आयोग के समक्ष ऐसे मुद्दे जमकर उठाती है, कि अब बाकी बचे फेज में एक साथ चुनाव निपटा दिए जाएं। लेकिन, ये व्यावहारिक रूप से तर्कसंगत नहीं होता। मगर, जब महामारी का प्रकोप हो, मासूम जिंदगियां कुर्बान हो रही हों, तो जो सही हो वही होना चाहिए।

पश्चिम बंगाल चुनाव को ही आप उदाहरण के तौर पर देखिए ना। तब बंगाल में भी कोरोना संक्रमण तेजी से फैल रहा था। लेकिन वहां लोगों पर इसका कोई खास असर दिखाई नहीं दे रहा था। बंगाल में लगभग हर दिन राजनीतिक पार्टियों के बड़े-बड़े नेता रोड शो करते देखे जा रहे थे। चुनावी रैलियां भी हो रही थी। भारी संख्या में लोगों की भीड़ वहां उमड़ रही थी। इस दौरान न तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा था और न लोग मास्क ही पहनते दिखाई देते थे। संभव है, कि आने वाले दिनों में वही नजारा उत्तर प्रदेश में भी दिख सकता है। यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ हों या सपा प्रमुख अखिलेश यादव, पीएम मोदी हों या प्रियंका गांधी, उनकी रैलियों में खूब भीड़ जुट रही है। ऐसे में अब जिम्मेदारी इन नेताओं की भी है और आम आदमी की भी। अगर, कोरोना जैसी महामारी पर नियंत्रण पाना है तो हमें भीड़-भाड़ से बचना ही होगा, कोरोना के अब तक जारी गाइडलाइन के पालन करने ही होंगे। नहीं तो क्या हो सकता है ये आपको और मुझे दोनों को पता है।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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