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बहुमूल्य है कांग्रेस का पंजाः ऐसे मिला था इंदिरा गांधी को, जिसने बदल दी तकदीर

1980 के चुनाव में इंदिरा गांधी को अलग लोकसभा का चुनाव लड़ना था। उन्हें चुनाव चिन्ह चाहिए था। कहा जाता है कि इसके लिए इंदिरा गांधी शंकराचार्य के पास गयीं। वह उन दिनों मौन थे। इंदिरा गांधी ने पूछा तो उन्होंने तथास्तु की मुद्रा में हाथ का पंजा उठा दिया।

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Published on: 15 Sep 2020 7:43 AM GMT
बहुमूल्य है कांग्रेस का पंजाः ऐसे मिला था इंदिरा गांधी को, जिसने बदल दी तकदीर
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ऐसे मिला था इंदिरा गांधी को पंजा चुनाव चिह्न

योगेश मिश्र

जीवन में कई बार दुख के भेष में सुख आता है। हमारे लिए दुख के भेष में आये सुख को पहचानना मुश्किल होता है। बात 1977 की है। लोकसभा का यह चुनाव हारने के बाद तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष ब्रह्मानंद रेड्डी ने इंदिरा गांधी को पार्टी से बाहर कर दिया। इसी के साथ उनके हाथ से गाय बछडा का लोकप्रिय चुनाव चिन्ह भी चला गया।

दुख में भी सुख

यह थी तो बहुत परेशानी की बात पर इस दुख में भी इंदिरा गांधी के लिए यह सुख था कि गाय बछड़ा को लोग इंदिरा गाँधी व संजय गांधी से जोड़ कर रूपायित करने लगे थे। प्रचारित किया जाने लगा था। इंदिरा गांधी को लगा चलो इससे तो मुक्ति मिली।

1980 के चुनाव में इंदिरा गांधी को अलग लोकसभा का चुनाव लड़ना था। उन्हें चुनाव चिन्ह चाहिए था। कहा जाता है कि इसके लिए इंदिरा गांधी शंकराचार्य के पास गयीं। वह उन दिनों मौन थे। इंदिरा गांधी ने पूछा तो उन्होंने तथास्तु की मुद्रा में हाथ का पंजा उठा दिया।

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फला शंकराचार्य का आशीर्वाद

कहा जाता है कि जिस समय चुनाव चिन्ह के आवंटन की प्रक्रिया निर्वाचन आयोग में चल रही थी उस समय इंदिरा गाँधी नरसिंह राव के साथ आँध्र प्रदेश के प्रवास पर थीं। कांग्रेस आई ने हाथी, साइकिल व हाथ का पंजा तीन चुनाव चिन्ह निर्वाचन आयोग को अपनी ओर से दिये थे।

पार्टी महासचिव बूटा सिंह चुनाव चिन्ह आवंटन के दिन निर्वाचन आयोग में पार्टी की तरफ़ से उपस्थित थे। इंदिरा गाँधी की मंज़ूरी के लिए बूटा सिंह ने टेलीफ़ोन कॉल बुक की। इधर से बूटा उन्हें साइकिल, हाथी और हाथ बताते रहे। लेकिन वो हाथ को ठीक से समझ नहीं पा रही थीं।

आख़िर में उन्होंने फ़ोन का चोगा नरसिंह राव को दे दिया। दर्जन भर भाषाओं के जानकार नरसिंह राव समझ गये कि पंजाबी लहज़े में बोल रहे बूटा सिंह पंजा कह रहे हैं। इस तरह से पंजे पर मुहर लग गई। उधर शंकराचार्य की मुद्रा इंदिरा गांधी को याद हो आई।

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