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उत्तर प्रदेश में नौ लाख करोड़ के प्रोजेक्ट अधर में, एसोचैम की रिपोर्ट
अनुराग शुक्ला
लखनऊ। अगर उत्तर प्रदेश में लटके प्रोजेक्ट में से आधे भी पूरे कर लिए जाएं तो प्रदेश में एक लाख सीधी नौकरियां और डेढ़ लाख अप्रत्यक्ष नौकरियां बेरोजगारों को मिल जाएंगी। यह दावा हमारा नहीं है, न ही यह बात किसी विरोधी दल के नेता ने सरकार पर निशाना साधते हुए कही है। यह उस रिपोर्ट की निष्कर्ष है जो देश की सबसे बड़ी उद्योग संस्था एसोसिएटेड चैंबर्स आफ कामर्स इन इंडिया (एसोचैम इंडिया) ने जारी किया है। रिपोर्ट कहती है कि 31 मार्च 2017 स्थिति यह है कि उत्तर प्रदेश में 1050 परियोजनाएं लटकी हुई हैं। इन परियोजनाओं की कुल कीमत 9 लाख करोड़ रुपये है। साथ ही इस रिपोर्ट में सरकार से इन लटके हुए प्रोजेक्ट्स के लिए एक विशेष निगरानी समिति बनाने का भी आग्रह किया गया है ताकि इन प्रोजेक्ट्स को एक तय समयसीमा में पूरा किया जा सके।
एसोचैम की ‘उत्तर प्रदेश-इकोनॉमिक ग्रोथ एंड इनवेस्टमेंट परफॉर्मेंस एनालिसिस’ नाम की रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्तीय वर्ष 2016-17 के अकेले 606 प्रोजेक्ट लटके हुए हैं, जिनकी कुल लागत 6 लाख करोड़ रुपये है। रिपोर्ट बताती है कि 2011-12 से लेकर 2016-17 तक के पांच साल के काल में प्रोजेक्ट लटकने में बेहद बढ़ोत्तरी हुई है। साल 2011-12 में लटके प्रोजेक्ट की संख्या करीब 52.4 थी, वहीं वित्तीय वर्ष 2016-17 तक आते-आते यह दर बढक़र 70.2 फीसदी तक पहुंच गयी। रिपोर्ट में लिखा है कि साल 2011-12 को छोडक़र हर साल लटके प्रोजेक्ट की संख्या में यूपी का औसत देश के राष्ट्रीय औसत से बहुत बुरा रहा है। लटके प्रोजेक्ट में सबसे ज्यादा खनन के प्रोजेक्ट हैं। हालांकि बिजली व रियल एस्टेट भी बहुत पीछे नहीं हैं। (देखें बाक्स-1)
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जनता को नहीं मिल रहा लाभ
दरअसल इसके चलते निवेश की गति भी धीमी हुई है। जनता को प्रोजेक्टों का लाभ नहीं मिल पा रहा है। दरअसल, निवेश आधारित प्रोजेक्टों का लाभ तभी मिल पाता है जब प्रोजेक्ट पूरे हों। एसोचैम के राष्ट्रीय महासचिव डी.एस.रावत के मुताबिक कई स्तरों पर लटके हुए प्रोजेक्ट नीति निर्धारकों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर समस्या बने हुए हैं। केंद्र सराकर के साथ राज्यों को भी इससे निपटने के लिए बड़े कदम उठाने पड़ेंगे। वे कहते हैं कि उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार को इन लटके हुए प्रोजेक्ट की समस्या से निपटने के लिए युद्धस्तर पर काम करना होगा। ऐसा करने से न सिर्फ यह प्रोजेक्ट पूरे होंगे बल्कि यह आगे आने वाले निवेशकों का हौसला बढ़ाएगा। ये प्रोजेक्ट पूरे होते हैं तो प्रदेश में नौकरियां बढ़ेंगी। देश के सबसे बड़े सूबे का समग्र विकास होगा। दरअसल इन लटके हुए प्रोजेक्ट में सबसे बड़ी समस्याओं में पर्यावरण मंजूरी, भूमि अधिग्रहण और नीति निर्धारण हैं।
किस क्षेत्र में कितना निवेश
देश में आए कुल 177 लाख करोड़ रुपये के निवेश का पांच फीसदी करीब 9 लाख रुपये का निवेश उत्तर प्रदेश में ही है। इसमें गैर वित्तीय सेवाओं का सबसे बड़ा हिस्सा है। इन सेवाओं में कुल निवेश का सबसे ज्यादा 39 फीसदी पैसा आया है। वहीं बिजली के क्षेत्र में 27 फीसदी, रियल एस्टेट और कंस्ट्रक्शन में 22.5 फीसदी और विनिर्माण के क्षेत्र में 8 फीसदी निवेश हासिल हुआ है। रिपोर्ट बताती है कि अब निवेशकों की रुचि बदल गयी है। साल 2011-12 में उत्तर प्रदेश में आने वाले निवेश में सबसे ज्यादा 40 फीसदी बिजली के क्षेत्र में निवेश हुआ था, जबकि गैर वित्तीय सेवाओं में 29 फीसदी, कंसट्रक्शन और रियल एस्टेट में 21 फीसदी और विनिर्माण और सिंचाई में 8 फीसदी निवेश आया था।
वित्तीय वर्ष 2016-17 में गैर वित्तीय सेवाओं ने निवेश के मामले में बढ़त बनाई। इस क्षेत्र में इस साल 3 लाख करोड़ रुपये का निवेश आया, जबकि वित्तीय वर्ष 2011-12 में यह राशि महज 1.7 लाख करोड़ रुपये ही थी। परिवहन के क्षेत्र में भी 83 फीसदी बढ़त देखी गयी। विनिर्माण के क्षेत्र में इसी अवधि में निवेश की राशि में 47 हजार करोड़ रुपये से 68 हजार करोड़ रुपये की बढ़त देखी गयी। अगर विनिर्माण क्षेत्र की बात करें तो आधे से ज्यादा ( 54 फीसदी) केमिकल व केमिकल उत्पादों के विनिर्माण में निवेश की बढ़ोत्तरी हुई है, जबकि इसके बाद नंबर आता है कंज्यूमर प्रोडक्ट का। उपभोक्ता उत्पादों में 16 फीसदी और खाद्य और कृषि आधारित उत्पाद में 11 फीसदी का निवेश देखा गया।
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इसके चलते राज्य की आॢथक स्थिति में तो सुधार देखा गया पर देश में राज्य का आॢथक योगदान लगातार घटता गया। वित्तीय वर्ष 2012 में यह 8.3 फीसदी था जो वित्तीय वर्ष 2015 में घटकर 7.9 फीसदी तक पहुंच गया था। लटके प्रोजेक्ट्स से विभाग संभाल रहे कई नेताओं के कामकाज पर भी उंगली उठती है। (देखें बाक्स-2)
सियासत जारी
निवेश के इन आंकड़ों को लेकर सरकार और विपक्ष में ठन सी गयी है। समाजवादी पार्टी का दावा है कि सारे निवेश अखिलेश यादव के प्रयासों से आए हैं और नयी सरकार ने उसे लटका दिया है। इससे पहले कि निवेश का फल आता सरकार चली गयी। भारतीय जनता पार्टी का दावा है कि अखिलेश यादव सिर्फ कागजों पर निवेश लाए और सारे प्रोजेक्ट लटका दिये। प्रदेश में फिर से जमीन तलाशती मायावती का आरोप है कि भाजपा सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्य की बुनियादी मुद्दों पर फेल हो गयी है। यही वजह है कि वह भावनात्मक मुद्दे उठा रही है।
लटके काम पूरे होंगे:भाजपा
भाजपा के प्रदेश महामंत्री विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि योगी सरकार की प्राथमिकता प्रदेश के विकास से जुड़े हर लटके काम को पूरा कराने की है। चाहे वह कोई परियोजना हो या फिर आधारभूत ढांचे से जुड़ा कोई काम हो। प्रदेश में बदहाल पड़े निवेश की स्थिति को पटरी पर लाना तो हमारा सबसे बड़ा एजेंडा है। हाल में ही मुख्यमंत्री से मिलकर कई देशों ने निवेश की इच्छा जताई है। पाठक के मुताबिक जो भी निवेश के प्रस्ताव हैं उन्हें तेजी से पूरा कराने के लिए अब सरकार नई औद्योगिक नीति लाई है। हमने अभी कमान संभाली है। हमारे प्रयत्न के फल बहुत जल्द देखने को मिलने लगेंगे। हम सिर्फ दावे नहीं करते, उन्हें जमीन पर उतारते हैं। पिछली सरकार ने प्रोजेक्ट को सिर्फ वाहवाही का जरिया बनाया, निवेश कागजों पर आया और प्रोजेक्टों को पूरा न करके लटका दिया।
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भाजपा सिर्फ बातें करना जानती है : सपा
इस मुद्दे पर पलटवार करते हुए विधानसभा में समाजवादी पार्टी के उपनेता नितिन अग्रवाल कहते हैं कि नई सरकार खुद के इन्वेस्टमेंट फ्रेंडली होने का दावा करती है। ऐसे में एसोचैम की रिपोर्ट उसे आइना दिखाती है। दरअसल भाजपा को झूठ के बल पर सत्ता मिली है। उसका विकास से कोई मतलब नहीं है। वह भावनात्मक मुद्दों पर ध्यान भटका कर राजनीति करती रही है। भाजपा सरकार ने वादा किया है कि वह प्रदेश की जीडीपी बढ़ाएगी, नौकरियां देगी पर ऐसे लटके प्रोजेक्ट की सच्चाई बताती है कि वह सिर्फ बातें करना जानती है। ऐसे कैसे बढेगी जीडीपी। दरअसल ये प्रोजेक्ट अखिलेश यादव की कोशिश से यूपी आये थे और जो लटके हंै वह इस सरकार के इम्प्लीमेंट न कर पाने की वजह से लटके हैं। अग्रवाल का कहना है कि रतन टाटा ने खुद आकर यूपी में निवेश की इच्छा जताई थी। सैमसंग का बड़ा निवेश यूपी में हुआ। एचसीएल यूपी में आया। नई सरकार को तो हम विरासत में सारे प्रोजेक्ट दे गये थे जिन्हें लटके बताया जा रहा है। अगर जनता ने हमें फिर से मौका दिया होता तो ये प्रोजेक्ट तेजी से पूरे होते और यूपी की शक्ल ही बदल जाती।
मायावती ने भाजपा सरकार को विफल बताया
इस मुद्दे पर मायावती केंद्र और राज्य दोनों भाजपा सरकारों पर हमलावर हैं। मायावती कहती हैं कि सरकार लोगों को बुनियादी जरुरत तक मुहैया नहीं करा पा रही है। जनहित व जनकल्याण के साथ-साथ देशहित के खास मुद्दों जैसे गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, अशिक्षा, स्वास्थ्य, शान्ति व सीमा एवं आन्तरिक सुरक्षा आदि के मामलों में बीजेपी सरकार की घोर विफलता का ही परिणाम है कि कुछ मुट्ठीभर बड़े-बड़े पूंजीपतियों व धन्नासेठों को छोडक़र हर कोई अपने भविष्य के प्रति आशंकित नजर आ रहा है। इन सब कमियों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए ही बीजेपी नेताओं द्वारा राष्ट्रधर्म, राष्ट्रगान, देशगान, देशभक्ति आदि भावनात्मक मुद्दों को उभारने का प्रयास किया जा रहा है। आखिर क्या कारण है कि प्रधानमंत्री और इनकी बीजेपी सरकारों में समाज का हर तबका खासकर गरीब, मजदूर, किसान, व्यापारी आदि ईमानदार मेहनतकश वर्ग बुरी तरह से परेशान है।
कैसे सुधरे निवेश
एसोचैम ने प्रदेश में निवेश को सुधारने के भी नुस्खे अपनी रिपोर्ट में दिए हैं। इन नुस्खों में सबसे अहम है प्रभावी बिजली व्यवस्था। नये और छोटे निवेशकों को भी बिजली के क्षेत्र में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना। क्लस्टर आधारित विकास काम करना जैसे एग्रो सिटी, बायोसिटी, इलेक्ट्रानिक सिटी, लेदर सिटी आदि पर काम करना, रोजगार को बढ़ावा देने वाले खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, पर्यटन उद्योग, लघु-मझोले और कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करना आदि। इनके अलावा लटके हुए प्रोजेक्ट को फिर से चालू करने और नया निवेश आकॢषत करने के लिए सरकारी विभागों में समन्यवय की नितांत आवश्यकता पर भी इस रिपोर्ट में बल दिया गया है। रिपोर्ट में साफ है कि अगर इन अनुशंसाओं पर काम किया गया तो यूपी देश में सबसे ज्यादा विकसित राज्यों की श्रेणी में खड़ा हो जायेगा।
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बाक्स -01
किस क्षेत्र के कितने प्रोजेक्ट लटके
सबसे ज्यादा प्रोजेक्ट सिंचाई में लटके हैं। यहां पर सबसे ज्यादा 99 फीसदी प्रोजेक्ट अभी लटके हुए हैं।
क्षेत्र कितने निवेश के प्रोजेक्ट लटके
- सिंचाई 99 फीसदी
- खनन 91.5 फीसदी
- कंसट्रक्शन एंड रियल एस्टेरट 90 फीसदी
- बिजली 68 फीसदी
- गैर वित्तीय सेवा 63 फीसदी
बाक्स 2
इन दिग्गजों की वजह से लटक गए प्रोजेक्ट
एसोचैम की यह रिपोर्ट बताती है कि 2011-2017 तक के कालखंड में प्रोजेक्ट लटकने की वजह से प्रदेश का विकास नहीं हो सका है। उत्तर प्रदेश में 2012 से लेकर मार्च 2017 तक अखिलेश यादव की सरकार थी और 2011-12 में मायावती की सरकार थी। अगर ध्यान से देखा जाय तो इस रिपोर्ट के कालखंड में सिंचाई विभाग नसीमुद्दीन सिद्दीकी के हाथ एक साल और शिवपाल यादव के हाथ करीब 4 साल और अखिलेश यादव के पास करीब 6 महीने था। ऐसे में सिंचाई विभाग में निवेश के 99 फीसदी प्रोजेक्ट लटके होने की जिम्मेदारी भी इन पर ही आती है।
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इसी तरह बिजली के क्षेत्र में आए निवेश के लटके प्रोजेक्टों के लिए बतौर बिजली मंत्री अखिलेश यादव और कुछ हद तक रामवीर उपाध्याय दोषी हैं। इन दिनों दुराचार को लेकर जेल की सजा काट रहे गायत्री प्रजापति के खनन विभाग में 91.5 फीसदी निवेश के प्रोजेक्ट लटके हैं। वहीं बाबूसिंह कुशवाहा भी लटके प्रोजेक्ट के लिए मायावती सरकार में बतौर खनन मंत्री कटघरे में दिखते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक अगर आधे काम भी हो जाते तो सीधे एक लाख नौकरियां मिलती, डेढ़ लाख लोगों को काम मिलता और प्रदेश का विकास तेजी से होता। यानी अगर इस रिपोर्ट की मानें तो इस कालखंड में सत्ता संभाल रहे नेताओं और मंत्रियों ने निवेश को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई और निवेश के प्रपोजल आने के बाद उन्हें प्रशस्ति पत्रों की तरह अलमारियों में बंद कर दिया।