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लंच प्लेट पर पॉलिटिकल तड़का: नीतीश का साफ संकेत, नहीं बनेंगे विपक्ष की राजनीति का हिस्सा

बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने मॉरिशस के पीएम प्रविंद कुमार जगन्नाथ के सम्मान में पीएम नरेंद्र मोदी के दिए लंच में शामिल होकर साफ संकेत दे दिया कि अब वो विपक्ष की राजनीति का हिस्सा नहीं रहेंगे।

tiwarishalini
Published on: 27 May 2017 12:50 PM GMT
लंच प्लेट पर पॉलिटिकल तड़का: नीतीश का साफ संकेत, नहीं बनेंगे विपक्ष की राजनीति का हिस्सा
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Vinod Kapoor

लखनऊ: बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने मॉरिशस के पीएम प्रविंद कुमार जगन्नाथ के सम्मान में पीएम नरेंद्र मोदी के दिए लंच में शामिल होकर साफ संकेत दे दिया कि अब वो विपक्ष की राजनीति का हिस्सा नहीं रहेंगे।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रेसिडेंट और वाइस प्रेसिडेंट के लिए आगामी जुलाई में होने वाले चुनाव के लिए एकजुटता दिखाने के लिए 26 मई को बैठक बुलाई थी। बैठक के लिए पूरी पहल पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी कर रही थीं। बैठक में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को छोड सभी विपक्षी नेताओं को बुलाया गया था। स्वाभाविक है कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी आमंत्रित थे जो विपक्ष की राजनीति का बड़ा ही साफ सुथरा चेहरा हैं, लेकिन वो शामिल नहीं हुए।

चूंकि नीतीश शामिल नहीं थे इसलिए कोई बड़ा फैसला भी नहीं हो सका। बैठक के बाद ममता बनर्जी ने सिर्फ ये कहा कि अगर दोनों पद के लिए आपसी सहमति नहीं बनी तो विपक्ष का अपना प्रत्याशी होगा।

विपक्ष की बैठक के ठीक दूसरे दिन पीएम ने मॉरिशस के पीएम के सम्मान में लंच दिया। जिसमें नीतिश कुमार को भी बुलाया गया और वह शामिल भी हुए।

पीएम के लंच में नीतीश का शामिल होना साफ संकेत था कि वो विपक्ष की राजनीति से धीरे-धीरे दूर जा रहे हैं। हालांकि, लंच के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि इसमें राजनीति नहीं देखी जानी चाहिए। बिहार के काफी लोग मॉरिशस में रहते हैं। जिनके पूर्वज गिरमिटिया मजदूर बन कर गए थे। जो अब वहां की सत्ता में भी शामिल हैं।

अंग्रेज बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों को मजदूर बना कर सालों पहले ले गए थे। जो वहां की आबोहवा में रच बस गए। समय बदला तो सत्ता की चाबी उन लोगों के हाथ आ गई जो वहां मजदूरी करने गए थे।

नीतीश ने भी कहा कि बिहार का मॉरिशस से गहरा रिश्ता है, इसलिए वो पीएम के लंच में शामिल होने आए। इसमें कहीं से कोई राजनीति नहीं है। इसके अलावा बिहार के कुछ मुद्दे थे जिस पर पीएम से बात करनी थी। पीएम से गंगा की सफाई पर भी बात हुई। बिहार में गंगा नदी में सिल्ट ज्यादा जमा हो गई है जिसे निकालना जरूरी है, नहीं तो गंगा की सफाई का काम पूरा नहीं हो सकता।

उन्होंने कहा कि पहले ही तय हो गया था कि सोनिया की मीटिंग में शरद यादव जाएंगे। मारीशस के पीएम का रिश्ता बिहार से है इसलिए वो आए। फिर मॉरिशस की आबादी का 52 प्रतिशत हिस्सा बिहार से जुड़ा है।

दो राजनीतिज्ञ मिलें और राजनीति पर चर्चा नहीं हो ऐसा हो सकता है क्या? हालांकि, नीतीश ने पीएम के साथ किसी राजनीतिक चर्चा से इंकार किया । लेकिन उनके पीएम के लंच में शामिल होते ही विपक्ष की राजनीति का पूरा पहिया उल्टा घूम गया। सवाल उठने लगे कि नीतिश के पास सोनिया की बुलाई बैठक में शामिल होने का समय नहीं था तो दूसरे दिन पीएम के लंच में कैसे पहुंच गए।

खासकर इससे बिहार की सियासत पूरी तरह से गर्म हो गई। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के बेटे और बिहार के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार पर भी कटाक्ष किया और पीएम के लंच को चटनी पॉलिटिक्स करार दिया। हालांकि, बडी चालाकी से उन्होंने खुद को बयान से अगल रखा और बेटे को आगे कर दिया।

बिहार में लालू की पार्टी और कांग्रेस के साथ महागठबंधन की सरकार बनने के बाद से ही नीतीश असहज महसूस कर रहे हैं। लालू की सरकार के काम में रोज की दखलअंदाजी के बाद से उन्हें सरकार चलाने में परेशानी हो रही है।

बिहार बीजेपी के एक बड़े नेता कहते हैं कि लालू का ध्यान अपने पसंदीदा अधिकारियों की पोस्टिंग पर रहता है। जबकि नीतीश काम के आधार पर किसी भी अधिकारी की पोस्टिंग पर यकीन करते हैं। इसके अलावा बिहार में शराब बंदी के बाद गैरकानूनी शराब की खरीद बिक्री में पकड़े ज्यादातर लोग लालू की जाति के हैं। जिसे रिहा करने का दबाब सीएम पर रहता है।

इसके अलावा नीतीश की लालू यादव के साथ नई परेशानी करोड़ो रूपए की बेनामी संपत्ति खरीद को लेकर है। जिसमें रोज नए नए खुलासे हो रहे हैं।

इससे आजिज नीतिश ने एक बार कह भी दिया था कि यदि आरोपों में दम है तो जांच होनी चाहिए। बस इस संकेत की देर थी कि दूसरे दिन ही लालू प्रसाद के 22 ठिकानों पर आयकर का छापा पड़ा।

लालू की बेटी मीसा भारती और उनके पति को आयकर विभाग ने समन देकर पूछताछ के लिए बुलाया है। मीसा के लिए संपत्ति की खरीद बिक्री में अहम भूमिका निभाने वाले उनके सीए को अरेस्ट भी किया गया है।

बिहार में जदयू और बीजेपी का नेचुरल एलायंस था। जिसे खुद नीतीश ने ही तोड़ा था। लालू प्रसाद के साथ नीतीश कुमार का लंबा राजनीतिक साथ रहा है। कभी दोनों बिहार की राजनीति के चन्द्रगुप्त और चाणक्य कहे जाते थे। लेकिन लालू प्रसाद की सत्ता की ललक के कारण दोनों के बीच दूरी बढ़ती गई।

हालत हो गई कि दोनों एक दूसरे पर वार करने से कभी नहीं चूकते थे। लेकिन जो नीतीश पीएम नरेंद्र मोदी के कट्टर विरोधी माने जाते थे वो धीरे-धीरे उनके करीब आते गए। नीतीश विपक्ष के पहले नेता थे जिन्होंनें पिछले नवंबर में हुई नोटबंदी का समर्थन किया था। जीएसटी का समर्थन करने वाला बिहार पहला राज्य था।

इसके अलावा सेना प्रमुख पद पर जब विपिन रावत को लाया गया तो पूरे विपक्ष ने वरीयता का सवाल उठा इसका विरोध किया क्योंकि दो सीनियर लोगों को दरकिनार कर रावत को सेना प्रमुख बनाया गया था। लेकिन नीतिश ने नरेंद्र मोदी का समर्थन करते हुए कहा कि कि केंद्र सरकार किसे सेना प्रमुख बनाती ये उसका विशेषाधिकार है।

राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि नीतीश अब विपक्ष की राजनीति से निकलना चाह रहे हैं क्योंकि विपक्षी एकता के नाम पर लगभग सभी दागी लोग जुट रहे हैं। ममता बनर्जी की पार्टी पर सारदा और नारदा चिट फंड घोटाले का आरोप है तो चारा घोटाले में सजा पा चुके लालू प्रसाद इसी घोटाले के चार और मुकदमें को झेलेंगे। बेनामी संपत्ति जमा करने का नया आरोप उन पर लग रहा है।

सोनिया और राहुल गांधी नेशनल हेराल्ड की संपत्ति अपने ट्रस्ट के नाम करने पर कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं। बिहार के दस साल से भी ज्यादा समय तक सीएम रहे नीतीश कुमार अब तक बेदाग रहे हैं। उन्हें मिस्टर क्लीन भी कहा जाता है। प्रेक्षक मानते हैं कि वो किसी भी हालत में दागदार लोगों के साथ रहना नहीं चाहेंगे। अब उनके पास राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से जुड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता।

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tiwarishalini

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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