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Global Politics News: वैश्विक राजनीति की कठपुतलियाँ और विनाश की पटकथा

Global Politics News: यूक्रेन इसका जीवंत उदाहरण है। यह सिर्फ एक देश की त्रासदी नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक चेतावनी है। एक ऐसा षड्यंत्र, जिसमें कठपुतलियाँ नाच रही हैं लेकिन धागे कहीं और से खींचे जा रहे हैं।

Diwakar Sharma
Published on: 1 March 2025 5:44 PM IST
Global Politics News
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Global Politics News (Image From Social Media)

Global Politics News: इतिहास केवल युद्धों के मैदान में लिखी गई वीरगाथाओं तक सीमित नहीं होता। असली लड़ाई सत्ता के उन अंधेरे गलियारों में लड़ी जाती है, जहाँ नीतियाँ बनती और बिगड़ती हैं, जहाँ फैसले किए जाते हैं कि कौन-सा देश समृद्धि की ओर बढ़ेगा और कौन-सा अपने ही नेताओं की कायरता, विदेशी आकाओं की चालों और वैश्विक सत्ता समीकरणों की बलि चढ़ जाएगा। यूक्रेन इसका जीवंत उदाहरण है। यह सिर्फ एक देश की त्रासदी नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक चेतावनी है। एक ऐसा षड्यंत्र, जिसमें कठपुतलियाँ नाच रही हैं लेकिन धागे कहीं और से खींचे जा रहे हैं।

ओवल ऑफिस में जो दृश्य पूरी दुनिया ने देखा, वह सिर्फ एक सामान्य बैठक नहीं थी। यह सत्ता का अहंकार भी था और एक सुनियोजित नाटक भी। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेन्स्की के बीच तीखी बहस महज एक विचारों का टकराव नहीं था, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन को नया मोड़ देने वाला क्षण था। जब ट्रम्प ने ज़ेलेन्स्की से कहा कि वह अपनी औकात से बाहर जाकर झगड़े मोल ले रहा है, तो यह सिर्फ एक व्यक्तिगत अपमान नहीं था, बल्कि एक कड़वी सच्चाई थी। ज़ेलेन्स्की अपने देश को आग में झोंक रहे हैं, अपने ही नागरिकों को मरवा रहे हैं, और पश्चिमी आकाओं के हाथों में खेलते हुए ऐसे युद्ध को हवा दे रहे हैं जिसका कोई अंत नहीं। लेकिन ज़ेलेन्स्की इस सच्चाई को स्वीकार करने के बजाय अकड़ गए और बिना किसी सार्थक वार्ता के वहाँ से चले आए। इसे स्वाभिमान नहीं कहा जा सकता, यह एक गहरे षड्यंत्र का हिस्सा था।

यह घटना केवल अमेरिका और यूक्रेन तक सीमित नहीं थी। यह दुनिया को यह दिखाने का प्रयास था कि ज़ेलेन्स्की स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकते हैं, कि वे ट्रम्प का अपमान कर सकते हैं और अमेरिका की सत्ता की परवाह नहीं करते। लेकिन यह वास्तव में एक दिखावा था। पश्चिमी रणनीतिकारों ने इसे नियंत्रित किया और ज़ेलेन्स्की को केवल एक मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया। यह विचारणीय है कि क्या ज़ेलेन्स्की वास्तव में अपने देश के नेता हैं या फिर सिर्फ एक अभिनेता, जिसे पश्चिमी शक्तियों ने एक विशेष भूमिका में डाल दिया है? हास्य कलाकार से राष्ट्रपति बनने तक का उनका सफर क्या संयोग था या इसके पीछे कोई गहरी साजिश थी? उनके हाथ में वाकई सत्ता है या फिर वे केवल कठपुतली बनकर नाच रहे हैं?

वैश्विक राजनीति में यह अकेला उदाहरण नहीं है। दुनिया की कई सरकारें बाहरी शक्तियों के इशारों पर नाच रही हैं। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो, जर्मनी की पूर्व चांसलर एंजेला मर्केल—सभी कहीं न कहीं वैश्विक सत्ता प्रतिष्ठान के मोहरे बनकर कार्य कर चुके हैं। भारत में भी ऐसे नेता हैं जो देश को कमजोर करने में लगे हुए हैं। ये ऐसे चेहरे हैं जो विदेशी धन से संचालित होते हैं, विदेशी मीडिया और एनजीओ द्वारा निर्देशित होते हैं और अपने ही राष्ट्र के खिलाफ षड्यंत्र रचते हैं। इनके भाषणों में राष्ट्रभक्ति कम और विदेशी "हैंडलर्स" की गूँज अधिक सुनाई देती है। ये वही बौद्धिक बंधुआ मजदूर हैं, जिनके लिए देशभक्ति केवल एक दिखावा है और विदेशी आकाओं के आदेश ही उनका असली मार्गदर्शन।

पश्चिमी नीतियाँ हमेशा एक जैसी होती हैं—लड़ाओ, जलाओ और फिर मलबे पर अपना साम्राज्य खड़ा करो। यूक्रेन जल रहा है, यूरोप अस्थिर हो रहा है, और असली लाभार्थी वही पश्चिमी शक्तियाँ हैं जो शांति की बातें तो करती हैं, लेकिन हथियारों के व्यापार से अपनी समृद्धि देखती हैं। हर युद्ध एक व्यापार बन चुका है। यूक्रेन का विनाश भी इसी व्यापार नीति का हिस्सा है। अमेरिका, नाटो और उनके सहयोगी देश शांति के नाम पर हथियारों की आपूर्ति कर रहे हैं और इस आपूर्ति का असली उद्देश्य सिर्फ अपने सामरिक और आर्थिक हितों की पूर्ति करना है। इस युद्ध में जो भी हारा, लेकिन पश्चिम की हथियार कंपनियाँ हमेशा जीतती हैं।

भारत को इस षड्यंत्र को समय रहते पहचानना होगा। आज देश के भीतर भी ऐसे ज़ेलेन्स्की पल रहे हैं, जो विदेशी धन और वैचारिक गुलामी में अपने ही राष्ट्र को दांव पर लगाने के लिए तैयार हैं। ऐसे नेता, बुद्धिजीवी और कार्यकर्ता हर संभव प्रयास में जुटे हैं कि देश को कमजोर किया जाए, सांप्रदायिक और जातिगत तनाव को बढ़ावा दिया जाए और विदेशी हस्तक्षेप का मार्ग प्रशस्त किया जाए। मीडिया का एक बड़ा वर्ग भी इस खेल का हिस्सा बन चुका है, जो विदेशी शक्तियों के इशारे पर राष्ट्रविरोधी नैरेटिव गढ़ रहा है।

यूक्रेन ने जो गलती की, भारत उसे दोहराए, यह सबसे बड़ा खतरा होगा। यदि देश को अपनी संप्रभुता, संस्कृति और राष्ट्रीय अस्मिता को बचाना है, तो इन ज़ेलेन्स्कियों को बेनकाब करना होगा। यह समझना आवश्यक है कि राष्ट्रवाद केवल एक नारा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति की आत्मा है। इसे बचाना ही हमारी असली लड़ाई है और इसमें विजय ही हमारी सच्ची स्वतंत्रता होगी।

आज यदि भारत सजग नहीं हुआ, तो वही वैश्विक ताकतें, जिन्होंने यूक्रेन को युद्ध की आग में झोंका, हमारी संप्रभुता को भी चुनौती देने से पीछे नहीं हटेंगी। इन राष्ट्रविरोधी शक्तियों को पहचानना और उन्हें परास्त करना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। न सत्ता, न राजनीति और न ही विदेशी शक्तियों की सहानुभूति—राष्ट्र से बड़ा कुछ भी नहीं।



Ramkrishna Vajpei

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