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खींचतान में पूर्वांचल से खिसक गई मंत्री पद की कुर्सी

raghvendra
Published on: 10 Jun 2019 8:28 AM GMT
खींचतान में पूर्वांचल से खिसक गई मंत्री पद की कुर्सी
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर: छप्पर फाड़ जीत के बाद भी पूर्वांचल की लोकसभा सीटों से जीते भाजपा सांसद केन्द्रीय मंत्रीमंडल में जगह बनाने में नाकामयाब रहे हैं। दिग्गजों की अनदेखी के अब न सिर्फ निहीतार्थ तलाशे जा रहे हैं बल्कि सवाल भी खड़े हो रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि आखिर क्यों जीत का छक्का और हैट्रिक लगाने वालों को भी तरजीह नहीं मिली। क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पूर्वांचल के सीट से ताल्लुक रखना इसकी वजह है। या फिर आपसी खींचतान के चलते पूर्वांचल से मंत्री पद की कुर्सी खिसक गई है। सवाल यह भी मौजू है कि, क्या पूर्वांचल से जीते सांसदों का योगी आदित्यनाथ से तल्ख रिश्ता कुर्सी से दूरी की वजह बन रहा है। तमाम सवालों की तपिश के बीच वजह कुछ भी हो लेकिन मंत्रीमंडल में जगह नहीं पाने का मलाल क्षत्रपों में जरूर है।

गोरखपुर-बस्ती मंडल की 9 लोकसभा सीटों पर लगातार दूसरी बार भाजपा ने क्लीन स्वीप किया है। महराजगंज से जीते पंकज चौधरी ने जहां जीत का छक्का लगाया तो वहीं डुमरियागंज से जगदम्बिका पाल और बांसगांव से कमलेश पासवान ने जीत की हैट्रिक। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डाॅ रमापति राम त्रिपाठी भी मोदी लहर में देवरिया सीट से जीत कर संसद का सफर तय करने में कामयाब हुए। खुद को मोदी और योगी को अंधभक्त बताकार गोरखपुर में फिल्म सिटी की स्थापना करने का दावा करने वाले रवि किशन को भी कोई तव्वजो नहीं मिलती दिख रही है। राज्यसभा सांसद और मोदी सरकार में केन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री रहे शिव प्रताप शुक्ला को भी मंत्रीमंडल में तरजीह नहीं मिली है। यूपी से लेकर केन्द्रीय मंत्रीमंडल में पूर्वांचल को जगह नहीं मिलने का भले ही मुखर विरोध नहीं हो रहा हो लेकिन अंदरखाने विरोध की चिंगारी जरूर सुलग रही है। राजनीतिक जानकार मंत्रीमंडल में पूर्वांचल की अनदेखी के निहीतार्थ तलाश रहे हैं। गोरखपुर-बस्ती मंडल से जीत कर मंत्री पद की दावेदारी करने वाले नेताओं के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से खराब रिश्ते को भी जानकार मंत्रीमंडल में जगह नहीं मिलने को बड़ी वजह मान रहे हैं।

दरअसल, भाजपा का शीर्ष नेतृत्व यह स्वीकार रहा है कि गठबंधन के जातीय गणित के बाद भी 64 लोकसभा सीटों पर जीत के पीछे मोदी-शाह के बाद सबसे बड़ा योगदान योगी आदित्यनाथ का ही है। बड़ी जीत ने योगी के कद को और बढ़ा दिया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या योगी से सांसदों को खटास भरे रिश्ते के चलते मंत्री की कुर्सी पूर्वांचल से दूर है। महराजगंज से छठवीं बार सांसद बने पंकज चौधरी मंत्रीमंडल के स्वाभविक दावेदार थे। मंत्रीमंडल के गठन से पहले पंकज ने अपने समर्थन वाले विधायकों के साथ दिग्गज नेताओं से मिलकर अपना प्रत्यावेदन भी फूल के गुलदस्ते के साथ दे दिया था। पंकज पिछड़ी जाति से आते हैं और प्रदेश में कुर्मी जाति के बड़े चेहरे हैं। इसके बाद भी मंत्रीमंडल में जगह नहीं मिलने से समर्थकों में गुस्सा है। पंकज समर्थित एक भाजपा विधायक कहते हैं कि मंत्रीमंडल में जगह पाने का मानक समझ से परे है। आठ में से छह चुनावों में जीत के बाद भी अनदेखी समझ में नहीं आ रही है। दरअसल, पंकज चौधरी और योगी आदित्यनाथ के रिश्तों में खटास जगजाहिर है।

पंकज चौधरी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और डाॅ. रमापति राम त्रिपाठी के करीबी माने जाते हैं। वहीं योगी से राजनाथ और डाॅ. रमापति के रिश्तों की खटास किसी से छिपी नहीं है। संतकबीरनगर में चर्चित जूताकांड के बाद पूर्वांचल के ब्राह्मण चेहरे के रूप में स्थापित डाॅ. रमापति राम त्रिपाठी को भी मंत्रीमंडल में जगह नहीं मिलना लोगों को आसानी से हजम नहीं हो रहा है। भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने डाॅ. रमापति को कलराज मिश्र की खाली की हुई सीट देवरिया से लड़ाया था। माना जा रहा था डाॅ. रमापति कलराज मिश्र के सांसदी पद के ही नहीं मंत्री पद के भी उत्तराधिकारी होंगे। लेकिन उन्हें मंत्रीमंडल में जगह नहीं मिली।

दरअसल, योगी और डाॅ. रमापति के रिश्ते सामान्य नहीं हैं। योगी आदित्यनाथ डाॅ. रमापति पर कभी विधानसभा में टिकट बेचने का आरोप लगा चुके हैं। चुनाव से ऐन पहले संतकबीर नगर में जिला योजना की बैठक में पूर्व सांसद शरद त्रिपाठी ने जिस प्रकार योगी के करीबी विधायक राकेश सिंह बघेल पर जूतों की बारिश की थी, उससे रिश्तों में तल्खियां और बढ़ गई थीं। बांसगांव से कमलेश पासवान और डुमरियागंज से जगदम्बिका पाल जीत की हैट्रिक लगाने के बाद भी मंत्री पद की कुर्सी के करीब नहीं पहुंच सके हैं। कमलेश को तरजीह नहीं मिलने के पीछे उनकी खराब छवि को जिम्मेदार माना जा रहा है। कमलेश पासवान जमीन कब्जा से लेकर अन्य विवादों की वजह से सुर्खियों में रहे हैं। कमलेश के रिश्ते भी योगी से पहले जैसे मधुर नहीं रह गए है। वहीं डुमरियागंज से कड़े मुकाबले में जीत की हैट्रिक लगाने वाले जगदम्बिका पाल अनुभव के बाद भी मंत्री पद पाने में कामयाब नहीं हो सके।

शिवप्रताप शुक्ला भी जगह बनाने में असफल

राज्यसभा सांसद शिव प्रताप शुक्ला को एनडीए-1 में अप्रत्याशित रूप से मोदी मंत्रीमंडल में जगह मिली थी। तब यह कहा गया था कि शिव प्रताप को ब्राह्मण चेहरे का लाभ मिला है। मोदी के दूसरे कार्यकाल में शिव प्रताप को मंत्रीमंडल से बाहर रखने की वजहें लोगों को स्वीकार्य नहीं हो रही हैं। शिवप्रताप के समर्थक यह कह कर संतोष कर रहे हैं कि मंत्रीमंडल विस्तार में मंत्री की कुर्सी मिल जाएगी।

तो करना होगा विधानसभा चुनाव का इंतजार

उत्तर प्रदेश में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि पूर्वांचल के सांसदों को तरजीह विधानसभा चुनाव से ऐन पहले ही मिल सकती है। गोरखपुर विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग में प्रोफेसर चन्द्र भूषण अंकुर कहते हैं कि मोदी मंत्रीमंडल में उन राज्यों को तरजीह दी गई है, जहां विधानसभा चुनाव होने हैं। पूर्वांचल से खुद प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री दोनों आते हैं। इसलिए उन्हें लगता है कि पूर्वांचल से मंत्री पद देने का कोई मतलब नहीं है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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