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जयंती विशेष: पूर्व पीएम राजीव गांधी ने किए थे अमेरिका व अन्य देशों से संबंध मजबूत

Manali Rastogi
Published on: 20 Aug 2018 3:18 AM GMT
जयंती विशेष: पूर्व पीएम राजीव गांधी ने किए थे अमेरिका व अन्य देशों से संबंध मजबूत
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लखनऊ: प्रधानमंत्री के रूप में अपने शुरुआती दिनों में राजीव गांधी बेहद लोकप्रिय थे। उन्होंने देश को आगे ले जाने के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले किए। उन्हें भारत में कंप्यूटर की शुरुआत करने का श्रेय जाता है। माना जाता है कि उनमें दूरदृष्टि थी और इसी कारण वे समझ सके कि आने वाला समय कंप्यूटर का ही है। इसलिए उन्होंने अपने पांच साल के कार्यकाल में इसे बढ़ावा देने का भरपूर प्रयास किया।

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उन्होंने इंदिरा गांधी के समाजवादी राजनीति से हटकर अलग दिशा में देश का नेतृत्व करना शुरू किया। उन्होंने अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों में सुधार किया और आॢथक एवं वैज्ञानिक सहयोग का विस्तार किया। अमेरिका के साथ अन्य देशों से संबंध मजबूत करने की दिशा में उन्होंने ठोस प्रयास किए।

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उन्होंने विज्ञान, तकनीक और इससे सम्बंधित उद्योगों की ओर ध्यान दिया और टेक्नोलोजी पर आधारित उद्योगों विशेष रूप से कंप्यूटर, एयरलाइंस, रक्षा और दूरसंचार पर आयात कोटा, कर और शुल्क को कम किया। उन्होंने प्रशासन को नौकरशाह घपलेबाजों से बचाने की दिशा में भी महत्वपूर्ण काम किया। 1986 में राजीव गांधी ने देश में उच्च शिक्षा कार्यक्रमों के आधुनिकीकरण और विस्तार के लिए एक राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की।

श्रीलंका में मिली कूटनीतिक विफलता

उनके कार्यकाल के समय पंजाब में आतंकी घटनाएं हो रही थीं। इंदिरा गांधी के आपरेशन ब्लूस्टार के बावजूद आतंकियों को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सका था। राजीव गांधी ने पंजाब में आतंकवादियों के खिलाफ व्यापक पुलिस और सेना अभियान चलाया। श्रीलंका सरकार और एलटीटीई विद्रोहियोंके बीच शांति वार्ता के प्रयासों का उल्टा असर हुआ और राजीव की सरकार को एक बड़ी असफलता का सामना करना पड़ा।

1987 में किये गए शांति समझौते के अनुसार भारतीय शांति सेना को श्रीलंका में एलटीटीई को नियंत्रण में लाना था पर अविश्वास और संघर्ष की कुछ घटनाओं ने एलटीटीई आतंकवादियों और भारतीय सैनिकों के बीच एक खुली जंग के रूप में बदल दिया। हजारों भारतीय सैनिक मारे गए और अंतत: राजीव गांधी ने भारतीय सेना को श्रीलंका से वापस बुला लिया। यह राजीव की एक बड़ी कूटनीतिक विफलता थी। जानकारों का मानना है कि भारतीय शांति सेना को श्रीलंका भेजने का फैसला सही नहीं था।

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