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आरक्षण का ब्रह्मास्त्र : सवर्णों को रिझाने की मोदी की कोशिश

लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तुरुप का पत्ता चल दिया है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि सामान्य वर्ग को आरक्षण देने का उनका फैसला अगले चुनाव में बड़ी भूमिका अदा करेगा।

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Published on: 11 Jan 2019 12:00 PM IST
आरक्षण का ब्रह्मास्त्र : सवर्णों को रिझाने की मोदी की कोशिश
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आरक्षण का ब्रह्मास्त्र : सवर्णों को रिझाने की मोदी की कोशिश

अंशुमान तिवारी

लखनऊ : लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तुरुप का पत्ता चल दिया है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि सामान्य वर्ग को आरक्षण देने का उनका फैसला अगले चुनाव में बड़ी भूमिका अदा करेगा। तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार के बाद पहले ही ऐसी चर्चाएं तैर रही थीं कि मोदी चुनाव से पहले कुछ बड़े ऐलान कर सकते हैं। नतीजतन मोदी ने अपने पिटारे से ऐसी दमदार चीज निकाली जिसकी चर्चा न तो मीडिया में थी और न किसी को ऐसे ऐलान की आशा ही थी। क्रिकेट की भाषा में कहें तो इसे स्लॉग ओवर्स का छक्का बताया जा रहा है। वैसे जानकारों का कहना है कि अभी मोदी स्लॉग ओवर्स में और छक्के जड़ेंगे। उम्मीद है कि वे जल्द ही कुछ और बड़े ऐलान करने वाले हैं। वैसे इस बिल के पारित होने के साथ ही आरक्षण को लेकर नई बहस भी शुरू हो गयी है। संसद से सड़क तक ओबीसी आरक्षण बढ़ाने की मांग तेज हो गयी है। इसके साथ ही आबादी के हिसाब से आरक्षण देने की मांग भी होने लगी है। आने वाले दिनों में आरक्षण को लेकर माहौल और गरमाने के आसार हैं।

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सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षा एवं रोजगार में 10 प्रतिशत आरक्षण देने वाले 124वें ऐतिहासिक संविधान संशोधन विधेयक को बुधवार को संसद की मंजूरी मिल गई। लोकसभा की मंजूरी के बाद यह बिल राज्यसभा में लाया गया था। शुरुआती हंगामे के बाद इस मुद्दे पर राज्यसभा में लंबी बहस चली और आखिरकार इस बिल को मंजूरी मिल गयी। इसके समर्थन में 165 और विरोध में सात मत पड़े। विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के द्रमुक सदस्य कनिमोझी सहित कुछ विपक्षी दलों के प्रस्ताव को सदन ने 18 के मुकाबले 155 मतों से खारिज कर दिया। अन्नाद्रमुक सदस्यों ने इस विधेयक को 'असंवैधानिक' बताते हुये सदन से बहिर्गमन किया। बिल में विपक्ष के सारे संशोधन प्रस्ताव खारिज हो गए। लोकसभा में तीन सदस्यों ने इस बिल के विरोध में मतदान किया था। अब इस बिल को राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा और उनके दस्तखत के बाद यह बिल प्रभावी हो जाएगा। वैसे इस बिल के प्रभावी होने से पहले ही यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है और इस मामले में याचिका दायर की गयी है। एक एनजीओ की ओर से दायर याचिका में इसे असंवैधानिक बताया गया है।

गजब का संयोग

आरक्षण के मामले में एक गजब का संयोग है। एक सवर्ण प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशें लागू कर ओबीसी वर्ग को आरक्षण दिया था और 28 साल बाद एक ओबीसी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विधेयक लाकर सामान्य वर्ग के लोगों को आरक्षण दिया है। दोनों प्रधानमंत्रियों ने मुसीबत के दिनों में आरक्षण का कार्ड खेला है। वीपी सिंह ने विहिप के गरमाते मंदिर आंदोलन की धार को कुंद करने के लिए मंडल कार्ड खेला तो पूरे देश में बवाल हो गया। जातीय खांचों में बंटकर लोग सड़कों पर उतर आए और कई स्थानों पर हिंसा हुई। मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने के बाद वी.पी. सिंह ने कहा था कि मैंने गोल तो कर दिया, पर अपनी टांगें तुड़वा लीं। इस फैसले के बाद एक तरफ जहां आरक्षण विरोधी लोग उनके कट्टर दुश्मन बन गए तो दूसरी ओर आरक्षण समर्थकों ने वी.पी.सिंह को नहीं स्वीकारा. क्योंकि वो उनके 'बीच' से नहीं थे। इतना ही नहीं जो वी पी सिंह 1987-89 के 'बोफोर्स अभियानÓ के जमाने में मीडिया के अधिकतर हिस्से के हीरो थे, वो मंडल आरक्षण के बाद खलनायक बन गए।

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मोदी ने समय पर चला ब्रह्मास्त्र

अब नरेन्द्र मोदी ने भी आरक्षण रूपी ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल ऐसे समय किया है जब उनका जादू कमजोर पड़ता दिख रहा है। तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार हुई। इन चुनावी नतीजों ने जहां एक ओर लोकसभा चुनाव से पहले मोदी के कमजोर पड़ते असर की तस्दीक की वहीं दूसरी ओर इससे इस बात की भी पुष्टि हुई कि राहुल गांधी भी रणनीति और चुनावी प्रबंधन में भाजपा को जवाब दे सकते हैं। इन चुनावों में भले ही स्थानीय क्षत्रप धुंआधार चुनाव प्रचार में सक्रिय रहे हों मगर सामने तो मोदी व राहुल का ही चेहरा था। यही कारण है कि जब चुनावी नतीजे सामने आए तो सोशल मीडिया पर लोगों ने कहा कि भाजपा के लोग अब राहुल को पप्पू न समझें। उन्होंने चुनाव में भाजपा को अपनी ताकत दिखा दी है।

सवर्णों की नाराजगी दूर करने की कोशिश

चुनावी हार के बाद ही भाजपा में वोटरों की नाराजगी को लेकर गहरा मंथन चल रहा था। इस बाबत किए गए विश्लेषणों से साफ हुआ कि भाजपा की हार के पीछे कई कारण थे और इनमें एक प्रमुख कारण सवर्णों की नाराजगी का भी रहा। यह सच्चाई भी है क्योंकि एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के समय भी कर्ई राज्यों में सवर्ण सड़कों पर उतर आए थे और उन्होंने दमदार प्रदर्शन कर अपना विरोध जताया था। सोशल मीडिया पर सवर्णों ने भाजपा के खिलाफ एक योजनाबद्ध अभियान छेड़ दिया और चुनाव में भाजपा को सबक सिखाने की बात कही। इसके बाद से ही भाजपा में सवर्णों की नाराजगी कम करने के उपायों पर मंथन किया जा रहा था और आखिरकार पीएम मोदी ने सामान्य वर्ग के लिए दस फीसदी आरक्षण का रास्ता खोल दिया।

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विपक्ष ने सवाल तो उठाए मगर विरोध का साहस नहीं

सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को दस फीसदी आरक्षण का फैसला सबको चौंकाने वाला था। इस 124वें संविधान संशोधन विधेयक के संसद को दोनों सदनों में पारित हो जाने को ऐतिहासिक घटनाक्रम माना जा रहा है। यह सामान्य वर्ग के लोगों की नाराजगी का भय ही था कि संसद में सरकार की नीयत पर सवाल उठाने वाले विपक्षी दल भी इसका विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाए और सरकार लोकसभा व राज्यसभा दोनों सदनों में एक-एक दिन की बहस के बाद इस विधेयक को पारित कराने में कामयाब हो गयी। राज्यसभा में पहले तो कांग्रेस और कई विपक्षी दलों ने शुरुआत में हंगामा किया मगर दो बार सदन स्थगित होने के बाद बैठक शुरू हो गयी और आखिरकार रात में बिल पारित हो गया। कुछ विपक्षी दलों ने इस विधेयक को लोकसभा चुनाव से कुछ समय पहले लाए जाने को लेकर सरकार की मंशा तथा इस विधेयक के न्यायिक समीक्षा में टिक पाने को लेकर आशंका जताई। कुछ सदस्यों ने आर्थिक आधार की सीमा आठ लाख रखने पर भी सवाल उठाए और कहा कि 66 हजार से अधिक मासिक कमाने वाले को गरीब कैसे माना जा सकता है।

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सरकार ने कांग्रेस को याद दिलाया वादा

जहां तक न्यायिक समीक्षा का सवाल है तो सरकार की ओर से दावा किया गया कि कानून बनने के बाद यह न्यायिक समीक्षा की अग्निपरीक्षा में भी खरा उतरेगा क्योंकि इसे संविधान संशोधन के जरिये लाया गया है। राज्यसभा में हुई चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने इसे सरकार का एक ऐतिहासिक कदम बताया। उन्होंने कांग्रेस सहित विपक्षी दलों से यह पूछा कि जब उन्होंने सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने का अपने घोषणापत्र में वादा किया था तो वह वादा किस आधार पर किया गया था। क्या उन्हें यह नहीं मालूम था कि ऐसे किसी कदम को अदालत में चुनौती दी जा सकती है? उन्होंने कहा कि यह हमारी संस्कृति की विशेषता है कि जहां प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एससी और एसटी को आरक्षण दिया वहीं पिछड़े वर्ग से आने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सामान्य वर्ग को आरक्षण देने की पहल की है। उन्होंने एसटी, एससी एवं ओबीसी आरक्षण को लेकर कई दलों के सदस्यों की आशंकाओं को निराधार और असत्य बताते हुए कहा कि उनके 49.5 प्रतिशत से कोई छेड़छाड़ नहीं की जा रही है।

लोकसभा में अरुण जेटली ने भी करीब-करीब ऐसी ही बातें कही थीं। उनकी दलील थी कि यह नरसिंह राव के समय से पूरी तरह भिन्न बिल है क्योंकि यह प्राविधान संविधान संशोधन के जरिये किया जा रहा है। उन्होंने लोकसभा में कांग्रेस का 2014 का चुनावी घोषणापत्र पढ़कर सुनाया। उनका कहना था कि कांग्रेस ने जब खुद आर्थिक रूप से पिछड़ों को आरक्षण देने का वादा किया था तो अब वो इसका किस आधार पर विरोध कर सकती है। हालांकि कांग्रेस की ओर से बिल की टाइमिंग, सरकार की नीयत और इसके न्यायिक प्रक्रिया में फंसने की आशंका जताई गई मगर आखिरकार उसने भी इस बिल का समर्थन कर दिया।

विधेयक की राह में हैं कई अड़चनें

सामान्य वर्ग के लोगों को आरक्षण देने संबंधी संशोधन संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 किया गया है और मौलिक अधिकारों से जुड़ा हुआ है। ऐसे में इसे आधे राज्यों की विधानसभाओं में पारित करना जरूरी नहीं है मगर अदालत में इसे चुनौती दिए जाने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। सरकार की ओर से भले ही यह कहा जा रहा है कि उसने आर्थिक आधार पर आरक्षण की नई श्रेणी बनाई है मगर 1992 में सर्वोच्च न्यायालय की नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने बहुमत से दिए फैसले में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव द्वारा आर्थिक आधार पर आरक्षण को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि आर्थिक स्थिति को आरक्षण का आधार नहीं बनाया जा सकता। यही कारण है कि यह तय माना जा रहा है कि सरकार के संविधान संशोधन करने के बावजूद न्यायालय इस बात पर विचार जरूर करेगा कि यह फैसला संविधान के मूल ढांचे से छेड़छाड़ है या नहीं। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट यह फैसला भी दे चुका है कि आरक्षण किसी भी सूरत में 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। इसी आधार में संवैधानिक मामलों के कई जानकार कह रहे हैं कि यह बिल न्यायिक प्रक्रिया में जाकर अटक जाएगा।

मोदी को मिल सकती है चुनावी बढ़त

वैसे जो भी हो, लेकिन एक बात तो साफ है कि इसके जरिये मोदी ने दूसरे दलों पर बढ़त बना ली है। यह चुनाव से पहले लोगों की नाराजगी का ही भय था कि कांग्रेस सहित सभी अन्य विपक्षी दल न चाहते हुए भी मोदी की इस चाल को नाकाम नहीं कर सके। सभी ने साढ़े चार साल बाद बिल लाने के लिए मोदी पर हमला तो किया मगर बिल के विरोध का साहस कोई नहीं जुटा सका। इस बिल से मोदी को चुनावी बढ़त हासिल होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। अब आने वाले चुनाव के नतीजे ही बताएंगे कि मोदी इस विधेयक का कहां तक फायदा उठाने में कामयाब हुए हैं।

किसी का हक मारे बगैर दिया आरक्षण:मोदी

सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को दस फीसदी आरक्षण का विधेयक संसद से पारित होते ही पीएम नरेन्द्र मोदी ने अपनी सभाओं में इसे जोर-शोर से उठाना शुरू कर दिया। लोकसभा में बिल के पारित होने के बाद जिस दिन राज्यसभा में इस बिल पर चर्चा हो रही थी उस दिन मोदी महाराष्ट्र के शोलापुर व आगरा के दौरे पर थे। दोनों ही जगहों पर अपने भाषण के दौरान उन्होंने जोरशोर से इस मुद्दे को उठाया और इशारों में कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला। उन्होंने कहा कि हमने एससी-एसटी और ओबीसी का हक मारे बगैर सामान्य वर्ग को आरक्षण दिया है। मैंने ऐसा कदम उठाया जिसे उठाने का साहस 1947 में देश की आजादी के बाद कोई पीएम नहीं दिखा सका। उन्होंने इसे सामाजिक न्याय की जीत बताया और कहा कि इससे देश की युवा शक्ति को अपनी क्षमता दिखाने और देश की कायापलट करने का मौका मिलेगा। मोदी के भाषणों से स्पष्ट है कि वे आने वाले दिनों इस मुद्दे को उठाकर सामान्य वर्ग का समर्थन हासिल करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेंगे।



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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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