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राजस्थान में सियासी संकट: जानिए अब क्या होगी राज्यपाल और स्पीकर की भूमिका

जब किसी राज्य में राजनीतिक संकट पैदा हो जाता है तो ऐसी स्थिति में राज्यपाल और विधानसभा स्पीकर के निर्णय सबसे ज्यादा अहम हो जाते हैं। स्पीकर सत्ताधारी दल के सदस्य होते हैं, ऐसा देखा गया है कि उनके पद का झुकाव उसी तरफ नजर आता है।

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Published on: 14 July 2020 7:31 AM GMT
राजस्थान में सियासी संकट: जानिए अब क्या होगी राज्यपाल और स्पीकर की भूमिका
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जयपुर: राजस्थान में कांग्रेस की सरकार में अंदरूनी सत्ता संघर्ष चल रहा है। उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बगावती तेवर को दबाने की कोशिशें जारी हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सियासी संकट में फंसते जा रहे हैं, हालंकि उनका रुख भी पायलट के खिलाफ सख्त नजर आ रहा है। जब किसी राज्य में राजनीतिक संकट पैदा हो जाता है तो ऐसी स्थिति में राज्यपाल और विधानसभा स्पीकर के निर्णय सबसे ज्यादा अहम हो जाते हैं। स्पीकर सत्ताधारी दल के सदस्य होते हैं, ऐसा देखा गया है कि उनके पद का झुकाव उसी तरफ नजर आता है। जबकि राज्यपाल को लेकर हमेशा केंद्र के दिशा-निर्देश महत्वपूर्ण समझे जाते हैं।

पायलट का कहना है कि गहलोत सरकार अल्पमत में है

राजस्थान की मौजूदा कांग्रेस सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसे में चर्चा इस बात को लेकर भी है कि इस परिस्थिति में राज्यपाल और विधानसभा स्पीकर की क्या भूमिका होगी। राजस्थान की ये राजनीतिक स्थिति उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बागी रुख के चलते पैदा हुए हैं। पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ दिल्ली के पास गुरुग्राम में डेरा डाले हुए हैं। पायलट का कहना है कि गहलोत सरकार अल्पमत में है, जबकि अशोक गहलोत खेमे का दावा है कि उनके पास बहुमत है। हालांकि, ये बातें अभी तक सिर्फ बयानों में की जा रही हैं।

स्थिति को देखते हुए राज्यपाल की भूमिका?

इस मसले पर राजस्थान की राजनीति के जानकार श्याम सुंदर शर्मा से ने बताया कि ''राज्यपाल की भूमिका तब आती है जब या तो केंद्र से कोई निर्देश मिले या बीजेपी जाकर अल्पमत की बात कहे। या फिर सचिन पायलट के लोग राज्यपाल के पास जाकर कोई पत्र दें कि हम अलग पार्टी बनाने जा रहे हैं। यानी गवर्नर हाउस का रोल तब शुरू होता है जब उनके पास कोई तथ्य पहुंचे।'' श्याम सुंदर शर्मा का कहना है कि जब तक नंबर कम होने की बात नहीं कही जाएगी तब तक गवर्नर का रोल नहीं आता है और राजस्थान के गवर्नर ज्यादा दखल नहीं देते हैं।

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अशोक गहलोत सरकार अल्पमत में

बता दें कि अब तक ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाया गया है। सचिन पायलट खेमा ये जरूर कह रहा है कि उनके पास विधायकों की संख्या पर्याप्त है और अशोक गहलोत सरकार अल्पमत में है, लेकिन उनकी तरफ से राज्यपाल को अप्रोच नहीं किया गया है। सचिन पायलट खेमे के कांग्रेस विधायक दीपेंद्र सिंह शेखावत ने कहा है कि उनके पास 30 विधायक हैं, लेकिन हम न कांग्रेस छोड़ेंगे, न ही बीजेपी में जाएंगे और न ही अलग पार्टी बनाएंगे।

न विश्वास मत की बात और न ही अविश्वास प्रस्ताव की कोई चर्चा

वहीं, दूसरी तरफ विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर भी कोई चर्चा अभी नहीं है। श्याम सुंदर शर्मा ने कहा कि अबतक न ही विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने के लिए कहा गया है। ऐसे में न विश्वास मत की बात है और न ही अविश्वास प्रस्ताव की कोई चर्चा है। उन्होंने कहा कि स्पीकर गहलोत पक्ष के हैं, ऐसे में जब बात वहां तक पहुंचेगी तो एक्शन भी उसी हिसाब से होगा।

फ्लोर टेस्ट कराकर साबित करना चाहिए

गौरतलब है कि बीजेपी के आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने हालांकि फ्लोर टेस्ट की चर्चा जरूर की है। मालवीय ने ट्वीट कर कहा है कि अगर अशोक गहलोत के पास बहुमत है तो उन्हें तुरंत फ्लोर टेस्ट कराकर साबित करना चाहिए। लेकिन सचिन पायलट खेमे की तरफ से कोई आधिकारिक कदम नहीं उठाया गया है। दूसरी तरफ कांग्रेस के चीफ व्हिप महेश जोशी ने कहा है कि उनके पास पर्याप्त बहुमत है और उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है। अशोक गहलोत ने सीएम आवास पर विधायकों की मीडिया के सामने परेड कराकर अपना दावा भी कर दिया है।

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कांग्रेस बागी विधायकों के खिलाफ क्या एक्शन लेगी

लेकिन अब तक न ही सचिन पायलट की तरफ से कोई ऐसा कदम उठाया गया है, जिससे राज्यपाल को कोई एक्शन लेना पड़े और न ही राज्यपाल ने खुद से इस पूरे मामले में कोई दखल दिया है। कांग्रेस बागी विधायकों के खिलाफ क्या एक्शन लेगी ये अभी क्लियर नहीं है। एक्शन लेने का प्रस्ताव जरूर विधायक दल की बैठक में पास हुआ है, लेकिन कोई एक्शन लिया नहीं गया है। यानी कहा जा सकता है कि सचिन पायलट जब तक अपने पत्ते पूरी तरह नहीं खोलते हैं तब तक बहुमत साबित करने या विधायकों की सदस्यता रद्द होने जैसा कोई समीकरण बनता दिखाई नहीं दे रहा है।

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