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RSS Celebrate Christmas: संघ का बड़ा राजनीतिक दांव, पहली बार क्रिसमस भोज का आयोजन, ईसाइयों को साधने की कोशिश
RSS Celebrate Christmas: ईसाई समुदाय को जोड़ने की कोशिश में जुटे संघ की ओर से पहली बार क्रिसमस भोज का आयोजन किया जाएगा।
RSS Celebrate Christmas: ईसाइयों के सबसे बड़े त्योहार क्रिसमस की धूम देश के विभिन्न इलाकों में दिखने लगी है। देशभर के चर्च लाइटों की रोशनी से जगमगा उठे हैं। क्रिसमस की इस देशव्यापी उमंग के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से एक बड़ी पहल की जा रही है। ईसाई समुदाय को जोड़ने की कोशिश में जुटे संघ की ओर से पहली बार क्रिसमस भोज का आयोजन किया जाएगा। अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री जॉन बारला इस भोज की मेजबानी करेंगे।
संघ से जुड़े राष्ट्रीय ईसाई मंच की ओर से शुक्रवार को इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। भोज में इंद्रेश कुमार समेत संघ के कई नेताओं के हिस्सा लेने की संभावना है। इस आयोजन को संघ का बड़ा राजनीतिक दांव माना जा रहा है। भोज में कश्मीर से लेकर केरल तक के चर्च प्रमुखों और ईसाई प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया है।
सियासी नजरिए से महत्वपूर्ण है भोज
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से इस बात पर जोर दिया जाता रहा है कि चर्च प्रमुखों को वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा नहीं बनना चाहिए। भाजपा नेता भी चर्च प्रमुखों के राजनीतिक रूप से तटस्थ रहने की बात करते रहे हैं। जानकारों का मानना है कि ईसाई समुदाय भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ताकतवर बनकर उभरने के बाद संघ और भाजपा से ज्यादा दूरी बनाए रखने के पक्ष में नहीं है।
ईसाई मिशनरियों के कामकाज को लेकर संघ और भाजपा नेताओं की ओर से पूर्व में आपत्ति जताई जाती रही है। ऐसे में संघ की ओर से क्रिसमस भोज के आयोजन को सियासी नजरिए से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
केरल में जनाधार मजबूत बनाने की कोशिश
भोज के संबंध में एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि इसमें कश्मीर से लेकर केरल तक के ईसाई प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के चर्च प्रमुखों और ईसाई प्रतिनिधि भी इस भोज में आमंत्रित किए गए हैं। इन प्रदेशों में चर्च और ईसाईयों के संस्थानों पर हमले की घटनाओं के मद्देनजर इस कदम को काफी अहम माना जा रहा है। यदि केरल के नजरिए से देखा जाए तो वहां ईसाई समुदाय काफी मजबूत स्थिति में है। केरल की आबादी करीब साढ़े तीन करोड़ है और यहां करीब 18 फ़ीसदी वोटर ईसाई समुदाय से जुड़े हुए हैं।
भाजपा तमाम कोशिशों के बावजूद केरल में खुद को मजबूती से स्थापित नहीं कर पा रही है। 2016 के विधानसभा चुनाव में केरल में भाजपा को 10.53 फ़ीसदी वोट मिले थे। 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से पूरी ताकत लगाए जाने के बावजूद वोट शेयर में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई। पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी 11.3 फ़ीसदी वोट पाने में कामयाब हुई थी। ऐसे में संघ और भाजपा की ओर से ईसाई समुदाय को साधने की इस कोशिश का महत्व समझा जा सकता है।
भाजपा और संघ की उत्तर पूर्व पर निगाहें
2023 में भाजपा को उत्तर पूर्व के कई राज्यों में बड़ी सियासी जंग लड़नी है। अगले साल मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में विधानसभा चुनाव होने हैं। मेघालय,नागालैंड और मिजोरम में 70 फ़ीसदी आबादी ईसाइयों की है। इन राज्यों में भाजपा अपनी सियासी ताकत दिखाते हुए अपने बूते सरकार बनाने की कोशिश में जुटी हुई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उत्तर-पूर्व के राज्यों पर विशेष फोकस कर रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि भाजपा और संघ की ओर से ईसाई समुदाय को साधने का बड़ा सियासी मकसद है और इसी कड़ी में पहली बार क्रिसमस भोज का आयोजन किया जा रहा है।