×

सिंबल पर संग्राम: साइकिल का फ्रीज होना करीब-करीब तय, अलग-अलग चिन्हों पर लड़ेंगे चुनाव!

समाजवादी पार्टी पर कब्जे की जंग में अखिलेश और मुलायम दोनों के हाथ खाली रहने की संभावनाएं ज्यादा बढ़ गई हैं। इन दोनों की स्थिति न खुदा ही मिला न विसाले सनम जैसी हो गई है। अगर मुलायम सिंह ने अपनी अर्जी वापस नहीं ली तो चुनाव आयोग के पास भी साइकिल चुनाव चिन्ह जब्त करने के अलावा कोई विधिक रास्ता नहीं रह जाएगा।

tiwarishalini
Published on: 8 Jan 2017 5:48 PM IST
सिंबल पर संग्राम: साइकिल का फ्रीज होना करीब-करीब तय, अलग-अलग चिन्हों पर लड़ेंगे चुनाव!
X

योगेश मिश्र

लखऩऊ: समाजवादी पार्टी पर कब्जे की जंग में अखिलेश और मुलायम दोनों के हाथ खाली रहने की संभावनाएं ज्यादा बढ़ गई हैं। इन दोनों की स्थिति 'न खुदा ही मिला न विसाले सनम' जैसी हो गई है। अगर मुलायम सिंह ने अपनी अर्जी वापस नहीं ली तो चुनाव आयोग के पास भी साइकिल चुनाव चिन्ह जब्त करने के अलावा कोई विधिक रास्ता नहीं रह जाएगा।

हालांकि जिस तरह रामगोपाल यादव चुनाव चिन्ह की जंग लड़ रहे हैं उससे यह बात साफ होती है कि यह पूरी लड़ाई खेलने और खेलने देने की नहीं, बल्कि खेल बिगाड़ने की है।

बीते 23 अक्टूबर को पार्टी के लखनऊ स्थित मुख्यालय पर शिवपाल सिंह यादव ने जब यह खुलासा किया था कि अखिलेश यादव पार्टी तोड़कर कांग्रेस के साथ मिल चुनाव लड़ना चाहते हैं तो सहसा लोगों को विश्वास नहीं हुआ था। हालांकि शिवपाल सिंह यादव ने अपनी बात को सच बताने के लिए गंगाजल उठाने जैसी बात कह दी थी, लेकिन अखिलेश यादव की तरफ से कोई खंडन न आने के बावजूद यह बात मुलायम सिंह के गले नहीं उतरी।

उसी समय से रामगोपाल यादव लगातार दस्तावेज पूरा कराने में जुटे थे। बहुत लंबे समय तक पार्टी का कार्यालयी कामकाज देखने वाले एसआरएस यादव ने भी अलग पार्टी बनाने और मुलायम सिंह यादव को अपदस्थ करने के रणनीतिक दस्तावेज पूरा करने में मदद की।

प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए भी शिवपाल सिंह यादव यह भांपने में कामयाब नहीं हुए कि सक्रिय सदस्यों से किस तरह जिलों-जिलो में रजिस्टर भेजकर दस्तखत करवाए जा रहे हैं। हालांकि रामगोपाल यादव यह भूल गए कि पार्टी के संविधान के मुताबिक, सारे अधिकार राष्ट्रीय अध्यक्ष के पास हैं।

नतीजतन जनेश्वर मिश्र पार्क में 01 जनवरी को मीटिंग का बुलाया जाना भले ही गैरकानूनी रहा हो और वह पार्टी और सिंबल पर कब्जे के लिए दस्तावेजी साक्ष्य के तौर पर काम आने लायक न रहा हो। बावजूद इसके उसे चुनाव आयोग में जमा कराया गया है। इससे आगे बढ़कर अखिलेश यादव और रामगोपाल ने विधायकों और सांसदों से दस्तखत कराकर जो हलफनामे निर्वाचन आयोग को दिए वे अगर रामगोपाल और अखिलेश के पक्ष साबित करने में काम आ सकते हैं। 01 जनवरी की बैठक के असंवैधानिक होने के पुख्ता दस्तावेज मुलायम सिंह यादव की तरफ से भी जमा करा दिए गए हैं।

चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक, किसी भी पार्टी पर अधिकार, चुनाव चिन्ह आदि न तो सिर्फ पार्टी के संविधान से तय होते हैं और न ही विधायकों, सांसदों और सक्रिय सदस्यों के हलफनामे से। ऐसे में किसी भी विवाद कि स्थिति में चुनाव चिन्ह के जब्त करने के अलावा आयोग के पास कोई विकल्प नहीं बचता है क्योंकि समाजवादी मुलायम गुट और समाजवादी अखिलेश गुट की ओर से दिए गए दस्तावेज विवाद की स्थिति को तो हर हाल में पुख्ता कर देते हैं पर किसका हक होगा, इस बाबत दस्तावेजी साक्ष्य किसी गुट के पास पूरे नहीं है। ऐसे में मुलायम और अखिलेश दोनो को नए चुनाव चिन्ह और पार्टी से चुनाव लड़ना पड़ सकता है। इस बाबत भी दोनों गुटों की तैयारी तेज है।



tiwarishalini

tiwarishalini

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

Next Story