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स्वामी पर लागू हो सकता है दल बदल कानून, सदन की सदस्यता पर बढ़ी कशमकश

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने फैसले में कहा है कि दल बदल विरोधी कानून के तहत विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय को अदालत में चुनौती दी जा सकती है। कानूनी जानकारों के अनुसार इस्तीफा देने के बावजूद स्वामी प्रसाद पर दल बदल विरोधी कानून लागू हो सकता है। यह कानून पार्टी से त्यागपत्र देने या निकाले जाने, दोनों हालात में लागू होता है।

zafar
Published on: 27 Aug 2016 10:13 AM GMT
स्वामी पर लागू हो सकता है दल बदल कानून, सदन की सदस्यता पर बढ़ी कशमकश
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फोटो साभार: टाइम्स ऑफ इंडिया

लखनऊ: बसपा से इस्तीफा देने के बाद बीजेपी में आए स्वामी प्रसाद मौर्य के शुक्रवार को विधानसभा की सदस्यता से अचानक त्यागपत्र देने से कई सवाल खड़े हो गए। पहला सवाल इस्तीफे की टाइमिंग को लेकर था।

विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडे ने स्वामी प्रसाद मौर्य की विधानसभा की सदस्यता खत्म करने की बसपा की अपील पर सुनवाई के लिए 31 अगस्त की तारीख तय की थी। लेकिन उन्होंने इसके पहले ही त्यागपत्र दे दिया।

मुश्किल था बचना

वैसे भी दल बदल विरोधी कानून में आए बदलाव के बाद उनकी सदस्यता का बचना मुश्किल होता। स्पीकर माता प्रसाद ने सुनवाई के लिए पहले स्वामी प्रसाद को 16 अगस्त को बुलाया था, लेकिन वे हाजिर नहीं हुए। उन्होंने नहीं आने का कारण बताया कि वो अपने विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के लोगों से मिलने में व्यस्त थे। स्पीकर ने इसके बाद 31 अगस्त की नई तारीख तय की। लेकिन उसके पांच दिन पहले ही उन्होंने विधानसभा की सदस्यता त्याग दी।

हालांकि उन्होंने सदस्यता त्याग दी, लेकिन कानून के हिसाब से विधानसभा अध्यक्ष उन्हें अब भी तय तारीख पर नहीं आने के कारण डिसक्वालिफाई कर सकते थे। उस हालत में सभाध्यक्ष के निर्णय को अदालत में चुनौती देने का विकल्प खुल रहता। विधानसभा अध्यक्ष कह सकते थे कि वो सुनवाई को जानबूझकर डिले कर रहे हें ताकि मामला लंबा खिंच जाए और निर्णय आने में देर हो।

दल बदल का पेंच

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने फैसले में कहा है कि दल बदल विरोधी कानून के तहत विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय को अदालत में चुनौती दी जा सकती है। कानूनी जानकारों के अनुसार इस्तीफा देने के बावजूद स्वामी प्रसाद पर दल बदल विरोधी कानून लागू हो सकता है। दल बदल विरोधी कानून पार्टी से त्यागपत्र देने या निकाले जाने, दोनों हालात में लागू होता है। यदि कोई सदस्य पार्टी छोड़ता है तब भी, और निकाले जाने पर भी ये कानून लागू होता है। ये कानून 1985 में बना और इसमें 2003 में संशोधन किया गया।

इस कानून के तहत सदस्यता एक शर्त पर बच सकती है कि यदि पार्टी लिख कर विधानसभा अध्यक्ष को ये दे कि छोड़ने वाले व्यक्ति के जाने पर कोई एतराज नहीं है। लेकिन ये बात स्वामी प्रसाद पर नहीं लागू होगी। विधानसभा में विपक्ष के नेता के साथ पार्टी से त्यागपत्र देने वाले स्वामी प्रसाद की सदस्यता खत्म करने के लिए बसपा ने ही विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष अपील की थी।

सीट पर असमंजस

विधानसभा के लिए 2012 में हुए चुनाव में कुशीनगर की पडरौना सीट से जीतने वाले स्वामी प्रसाद के साथ एक और बात उपचुनाव को लेकर जुड़ी है। नियम के तहत कोई भी विधानसभा या लोकसभा सीट छह महीने से ज्यादा रिक्त नहीं रखी जा सकती। ये माना जा रहा है कि स्वामी प्रसाद अपनी सदस्यता त्याग चुके हैं इसलिए 31 अगस्त की तारीख को विधानसभा अध्यक्ष के सामने सुनवाई के लिए उपस्थित नहीं होंगे।

अब देखना होगा कि क्या विधानसभा अध्यक्ष उनको डिसक्वालिफाई करते हैं या उनका इस्तीफा मंजूर करते हैं। आम चुनाव में छह महीने से ज्यादा का वक्त होने पर उपचुनाव कराना होता है। विधानसभा चुनाव में अभी छह महीने से ज्यादा का वक्त बाकी है। स्वामी प्रसाद चार बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं। बसपा के शासनकाल में वो मंत्री थे और त्यागपत्र देने के पहले विधानसभा में विपक्ष के नेता। उन्होंनें बसपा प्रमुख मायावती पर टिकट बेचने का आरोप लगाते हुए त्यागपत्र दिया था ।

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