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UP निकाय चुनाव परिणाम : सभी विपक्षी दल पस्त पर हाथी मस्त
चार बार प्रदेश की सत्ताधारी दल रह चुकी बसपा का लोकसभा चुनाव में खाता तक नहीं खुला। विधानसभा चुनाव में पार्टी सिमट कर रह गई। कद्दावर नेताओं की लगातार वि
लखनऊ: चार बार प्रदेश की सत्ताधारी दल रह चुकी बसपा का लोकसभा चुनाव में खाता तक नहीं खुला। विधानसभा चुनाव में पार्टी सिमट कर रह गई। कद्दावर नेताओं की लगातार विदाई और अंदरखाने चल रहे उठापटक से समर्थकों की निराशा बढ रही थी। पर इन सबके बीच शहरी सरकार के चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन ने सबको चौंका दिया है। मेरठ और अलीगढ के महापौर पद पर बसपा प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है। इस जीत ने प्रदेश में एक बार फिर पार्टी की वापसी के संकेत दे दिए हैं। चूंकि निकाय चुनाव को आगामी लोकसभा चुनाव के पहले दलों के अपने जनाधार की थाह लेने के रूप में देखा जा रहा है। ऐसे में इन परिणामों ने साफ कर दिया है कि बसपा को कमतर नहीं आंका जा सकता।
चुनाव परिणामों को देखा जाए तो भाजपा से सीधे टक्कर में सिर्फ बसपा ने ही दिखी। दूसरे विपक्षी दल पस्त हो गए। मेयर की कुर्सी पाने की होड़ में सपा और कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला। पर बसपा ने चुनाव पूर्व सभी कयासों को दरकिनार करते हुए अपनी जबर्दस्त मौजूदगी दर्ज कराई है। शुरूआती रुझानो में जब पार्टी प्रत्याशियों ने आगरा, सहारनपुर, अलीगढ, झाँसी, गाजियाबाद में बढ़त हासिल की थी तो बसपाइयों का उत्साह चरम पर था पर देर शाम तक तस्वीर साफ हो गई। पार्टी प्रत्याशी सुनीता वर्मा ने 229,238 वोट पाकर भाजपा प्रत्याशी को धूल चटा दी। वह भी तब जब मेरठ भाजपा का गढ माना जाता है। यह पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी का गृह जनपद भी है। यह तब और खास हो जाता है जब बसपा की शहरी वोटरों में कमजोर पकड़ मानी जाती है। पर इन चुनाव परिणामों ने सियासी पंडितों की उन धारणाओं को भी धराशायी कर दिया है। अलीगढ से फुरकान को विजय श्री हासिल हुई। उन्हें कुल 41.39 फीसदी और दूसरे नम्बर पर रहे भाजपा प्रत्याशी राजीव कुमार को 38.09 फीसदी वोट मिले हैं।
बहरहाल इन परिणामों से बसपा के चुपचाप रणनीति के रूप में प्रचारित दांव को बल मिला है। जिस तरह पार्टी मुखिया ने राज्य सभा में नहीं बोलने देने का आरोप लगाकर अपने पद से इस्तीफा देकर सत्ताधारी दल के विरूद्ध मोर्चा खोल दिया था, इसके बाद मंडल स्तरीय रैलियां की, उसमें भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर लगातार हमलावर रहीं। दलितों के मुद्दों पर फोकस किया। परिणामों पर उसका भी असर दिख रहा है। इसमें मुस्लिम वोटरों ने भी उनका साथ दिया। जानकार बसपा की इस जीत को दलित—मुस्लिम गठजोड़ की जीत बता रहे हैं। उनका कहना है कि मोदी सरकार बनने के बाद लव जिहाद, गो रक्षा जैसे मुद्दों ने अल्पसंख्यक वर्ग की पेशानी पर बल ला दिया। सपा परिवार में टूट से यह वर्ग पहले से निराश था। ऐसे में उन्हें हाथी की राह की तरफ ही रोशनी दिखाई पड़ी। निकाय चुनाव में मिले मत इसी तरफ इशारा कर रहे हैं।
महपौर की जिन सीटों पर बसपा को हार का मुंह देखना पड़ा हैं वहां भी पार्टी प्रत्याशियों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। झांसी में विजयी भाजपा प्रत्याशी रामतीर्थ सिंघल को 35.29 फीसदी वोट मिलें जबकि उन्हें टक्कर दे रहे बसपा प्रत्याशी को 27.9 प्रतिशत वोट मिले हैं। इसी तरह सहारनपुर मेयर पद पर भाजपा के संजीव वालिया और बसपा के फजलुर्रहमान के बीच कांटे की टक्कर रही। वालिया को 36.55 फीसदी तो फजलुर्रहमान को 35.95 फीसदी वोट मिला। यहां कमल और हाथी के बीच जीत और हार के अंतर ने सबको चौंकाया। फिरोजाबाद में मेयर प्रत्याशी पायल राठौर ने कुल 41528 वोट झटके तो मथुरा में गोवर्धन सिंह को भी 32655 मत मिले। हालांकि राजधानी में मेयर प्रत्याशी बुलबुल गोदियाल चौथे नम्बर पर रहीं। उन्होंने कुल 83120 मत हासिल हुए।