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UP Election : UP चुनाव के रोचक किस्से, एक बार नहीं, कई बार मुलायम सिंह यादव को 'मुलायम' से ही मिली टक्कर
UP Election : समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव को अपनी नाम राशि वाले उम्मीदवारों से ही चुनावी मैदान में चुनौती मिली।
UP Election : मुलायम सिंह यादव राजनीति का एक बड़ा नाम हैं। बड़ा नाम होना या उससे मिलता-जुलता अन्य नाम होना, कभी-कभी परेशानियों का सबब बन जाता है। कुछ ऐसा ही समाजवादी पार्टी (सपा) (Samajwadi Party) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के भी साथ हुआ है। ऐसे कई मौके आए हैं, जब मुलायम सिंह को अपनी नाम राशि वाले उम्मीदवारों से ही चुनावी मैदान में चुनौती मिली।
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के साथ ऐसा पहली बार साल 1989 में हुआ था। इस वर्ष उन्हें पहली बार अपनी वास्तविक मतदाता पहचान साबित करने के लिए अपने पिता के नाम (सुघर सिंह यादव) का सहारा लेना पड़ा था। वजह था, जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र से मुलायम सिंह के नाम वाले व्यक्ति का उन्हें चुनौती देना। यह पहली बार नहीं था। ये हालात उनके साथ साल 1991 और 1993 के चुनावों में भी बने थे।
पहली बार पिता के नाम का सहारा लेना पड़ा
उल्लेखनीय है, कि मुलायम सिंह यादव साल 1967 में पहली बार विधायक बने थे। अपने राजनीतिक करियर में वो कुल आठ बार विधायक बने। चुनाव आयोग के आंकड़ों को देखें तो वर्ष 1989 में जनता दल ने अपने प्रत्याशी मुलायम सिंह यादव पुत्र सुघर सिंह यादव को चुनाव मैदान में उतारा था। उनके मुकाबले एक अन्य मुलायम सिंह यादव (निर्दलीय) मैदान में था। बस, पिता के नाम में फर्क था। निर्दलीय प्रत्याशी मुलायम सिंह के पिता का नाम पत्तीराम था।
दूसरी बार भी 'मुलायम' से मुलायम की टक्कर
हालांकि, मुलायम सिंह यादव को उस चुनाव में कुल 65,597 वोट मिले थे। जबकि उनके नाम वाले निर्दलीय उम्मीदवार को महज 1,032 वोट हासिल हुए थे। यही हालात साल 1991 में भी रहे। तब जनता पार्टी के टिकट पर ही चुनाव लड़कर मुलायम सिंह जसवंतनगर सीट से जीते थे। इस बार मुलायम सिंह यादव को 47,765 वोट हासिल हुए थे। जबकि उनके नाम वाले प्रत्याशी को मात्र 328 मत मिले थे। हद तो तब हो गई जब इसी चुनाव में एक अन्य मुलायम सिंह नजर आए। वह भी निर्दलीय उम्मीदवार। बरौली विधानसभा सीट से चुनाव लड़े इस नए मुलायम को मात्र 218 वोट ही हासिल हुए थे।
1993 में तीनों सीटों पर अपने नाम वालों से चुनौती
मुलायम सिंह यादव साल 1993 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की तीन सीटों से चुनावी मैदान में उतरे थे। ये थे जसवंत नगर (इटावा), शिकोहाबाद (फिरोजाबाद) और निधौली कलां (एटा) से। इस बार ये अपनी समाजवादी पार्टी के टिकट से चुनाव मैदान में उतरे थे। मुलायम सिंह यादव में तीनों ही सीटों पर जीत दर्ज की। लेकिन आश्चर्यजनक तौर पर तीनों ही विधानसभा सीटों पर मुलायम सिंह यादव को अपनी नाम राशि वाले उम्मीदवारों से चुनौती का सामना करना पड़ा था। हालांकि, हर बार मुलायम सिंह के सामने उनके नाम वाले कहीं नहीं टिके।
निर्दलीय मुलायम कहीं नहीं टिक पाए
चुनाव आयोग की आंकड़ों की मानें तो जसवंतनगर सीट पर मुलायम सिंह यादव को कुल 60, 242 वोट मिले थे, जबकि उनके नाम वाले निर्दलीय उम्मीदवार को केवल 192 मत हासिल हुए। वहीं, शिकोहाबाद सीट पर मुलायम सिंह को 55,249 मत हासिल हुए थे, जबकि उनके नाम वाले प्रत्याशी को महज 154 वोट मिले थे। निधौलीकलां सीट पर मुलायम सिंह यादव को 41,683 वोट मिले थे, जबकि उनके नाम वाले निर्दलीय प्रत्याशी को मात्र 184 मत मिले थे।
80 के दशक में भी कई उम्मीदवार मुलायम नाम से
अब थोड़ा और पीछे चलें। बात वर्ष 1985 चुनाव की है। तब मुलायम सिंह यादव जसवंतनगर सीट से लोकदल के टिकट पर मैदान में थे। मुलायम सिंह ने यहां से जीत दर्ज की। लेकिन उन्हीं के नाम वाले मुलायम औरैया से चुनाव लड़े थे। तब उन्हें केवल 292 वोट मिले थे। मुलायम सिंह यादव साल 1980 का विधानसभा चुनाव जसवंतनगर सीट से हार गए। वह चौधरी चरण सिंह की अगुवाई वाली जनता दल (सेक्युलर) से चुनावी मैदान में थे। तब उनकी नाम वाले उम्मीदवार इंडियन नेशनल कांग्रेस (यूनाइटेड) के टिकट पर भर्थना से चुनाव लड़े थे। उन्हें 2,367 वोट हासिल हुए थे।
'नेताजी' से पहले भी उस सीट से लड़े थे मुलायमएक और दिलचस्प बात आपको बताता हूं। ऐसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में मुलायम सिंह यादव के आने से पहले उनके नाम वाले प्रत्याशी मैदान में नहीं रहे हैं। 1951 में निर्दलीय उम्मीदवार मुलायम सिंह गुन्नौर (उत्तर) सीट से चुनाव लड़े थे, तब उन्हें 2,944 वोट हासिल हुए थे। बता दें, कि बाद में मुलायम सिंह यादव खुद वर्ष 2007 में गुन्नौर और भरथना दोनों सीटों से चुनाव लड़े और जीते भी। मुलायम सिंह यादव 1974 में जसवंत नगर सीट से भारतीय क्रान्ति दल के टिकट पर जीते थे । साल 1977 में इसी सीट से जनता पार्टी के टिकट पर विजयी हुए थे।