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UP News : एक बंगाली लड़की, जो पंजाब में पली, दिल्ली में पढ़ी और UP में CM बनीं

UP News : 1963 में सुचेता कृपलानी देश के सबसे बड़े सूबे की मुख्यमंत्री बन गईं। इनके शासन काल में एक घटना हुई जो लंबे समय तक सबको याद रही।

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Written By amanPublished By Shraddha
Published on: 29 Sept 2021 7:58 AM IST (Updated on: 30 Sept 2021 3:24 PM IST)
यूपी की मुख्यमंत्री सुचिता कृपलानी
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यूपी की मुख्यमंत्री सुचिता कृपलानी (फाइल फोटो - सोशल मीडिया)  

UP News : उत्तर प्रदेश में 60 के दशक में मुख्यमंत्री थे चन्द्रभानु गुप्ता (Chandra Bhanu Gupta) । प्रदेश की सत्ता में इनका दबदबा बढ़ने से जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) सहित कांग्रेस के कई नेता परेशान थे। इस बात का अंदाजा इतने से ही लग जाता है कि उस वक्त जो नेता नेहरू जी के पांव छूता था, वह चन्द्रभानु गुप्ता के सामने साष्टांग हो जाता था। 1963 में कांग्रेस 'कामराज प्लान' लेकर आई। इसके तहत पुराने लोगों को अपने पद छोड़ने थे। मकसद, देश के हर राज्य में पार्टी को मजबूत करना था।

चंद्रभानु गुप्ता भी हटे। वो गुस्से में थे। लेकिन अब समस्या मुख्यमंत्री के नए चेहरे को लेकर शुरू हो गई। तब पार्टी में चौधरी चरण सिंह, कमलापति त्रिपाठी और हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे कई दावेदार थे। इस दौरान कांग्रेस ने अप्रत्याशित रूप से एक महिला को मुख्यमंत्री चुन लिया। बता दें, कि उस वक्त तक देश के किसी भी राज्य में कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं बनी थीं । इस महिला का नाम था सुचेता कृपलानी (Sucheta Kripalani) । सुचेता बंगाली महिला थीं। उन्होंने दिल्ली में पढ़ाई की थी। उत्तर प्रदेश से उनका कोई नाता नहीं था। कांग्रेस का यह दांव सटीक बैठा। विद्रोही भी शांत रहे।

सोशलिस्ट लीडर जे.बी. कृपलानी से शादी


सोशलिस्ट लीडर जे.बी. कृपलानी (फाइल फोटो - सोशल मीडिया)


सुचेता के पिता अंबाला में डॉक्टर थे। सुचेता ने दिल्ली के इंद्रप्रस्थ और सेंट स्टीफेंस से पढ़ाई की थी। इसके बाद बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में लेक्चरर हो गईं। 1936 में उनकी शादी सोशलिस्ट लीडर जे.बी. कृपलानी से हो गई। शादी के बाद सुचेता का नाम बदल गया। उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली। आजादी की लड़ाई में भी खूब मेहनत की। 1942 में उषा मेहता औऱ अरुणा आसफ अली के साथ भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुईं। ज्ञात रहे, कि ये तीन औरतें ही इस आंदोलन में सबसे ज्यादा चर्चित रहीं। 1947 में देश आजाद हो गया। संविधान सभा का गठन हुआ। इसमें सुचेता ने औरतों का प्रतिनिधित्व किया। संविधान बनने के दौरान वो औरतों के अधिकारों को लेकर मुखर रहीं। सुचेता अच्छी गायिका भी थीं।


1952 में सांसद, 1957 में राज्यमंत्री बनीं

देश की राजनीति बदलने लगी थी। आजादी की लड़ाई का खुमार धीरे-धीरे उतरने लगा था। यह वह दौर था जब कांग्रेस के नेताओं की आपसी नापसंदगी खुलकर सामने आने लगी थी। यह वह दौर भी था जब पार्टी के अंदर ही लोग नेहरू से नाराज रहने लगे थे। 1952 में जे.बी कृपलानी के नेहरू से संबंध खराब हो चले थे। उन्होंने अलग पार्टी बना ली। जिसका नाम 'कृषक मजदूर प्रजा पार्टी' रखा। यह पार्टी कांग्रेस के खिलाफ खड़ी हो गई। 1952 के लोकसभा चुनाव में सुचेता इसी पार्टी से लड़ीं। नई दिल्ली सीट से जीत गईं। सुचेता 1957 का चुनाव भी जीतीं। लेकिन अबकी बार कांग्रेस पार्टी से। क्योंकि तब तक मनमुटाव दूर हो गए थे। अबकी बार नेहरू ने इन्हें राज्यमंत्री बना दिया। बाद में 1967 में गोंडा से जीतकर ये फिर संसद पहुंचीं।


1963 में यूपी की मुख्यमंत्री बनीं


क्या आपको पता है, 1962 में सुचेता कृपलानी बस्ती जिले के मेंढवाल सीट से जीतकर यूपी विधानसभा पहुंचीं। बाद में नेहरू ने इन्हें ही हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया। 1963 में सुचेता देश के सबसे बड़े सूबे की मुख्यमंत्री बन गईं। यह सब अनायास नहीं था। बल्कि राजनीति को साधने के लिए हुआ था। दरअसल, 1962 में यूपी कांग्रेस दो धड़ों में बंट गई थी। एक कमलापति त्रिपाठी का, तो दूसरा चंद्रभानु गुप्ता का। बताया जाता है कि सुचेता कृपलानी के शासन काल में एक घटना हुई जो लंबे समय तक सबको याद रही। सरकारी कर्मचारियों ने भुगतान को लेकर हड़ताल कर दिया था। यह हड़ताल 62 दिनों तक चली। लेकिन, सुचेता टस से मस नहीं हुईं। आखिरकार, उन कर्मचारियों का भुगतान नहीं ही बढ़ा।

इसके बाद साल 1971 में सुचेता कृपलानी ने राजनीति से संन्यास ले लिया। कुछ दिन तक सामान्य जीवन जीने के बाद 1974 में उनका निधन हो गया।



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