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UP Politics : UP के राजनीतिक किस्से, मुलायम के चरखा दांव से चित हुए थे अजित सिंह, दिलचस्प था सियासी खेल

UP Politics : समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव राजनेता के साथ एक अच्छे पहलवान भी थे।

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Written By amanPublished By Shraddha
Published on: 29 Sep 2021 4:16 AM GMT (Updated on: 30 Sep 2021 9:52 AM GMT)
मुलायम के चरखा दांव से चित हुए थे अजित सिंह
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समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

UP Politics : मुलायम सिंह यादव राजनेता के साथ एक अच्छे पहलवान भी थे। राजनीति में उनके चरखा दांव की खूब चर्चा होती है। लेकिन इस दांव के पैतरे पहली बार मुलायम सिंह ने 1989 में दिखाए थे। जब उस साल विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) में जनता दल की जीत के बाद मुख्यमंत्री के घोषित उम्मीदवार अजित सिंह सपने संजोते ही रह गए और मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने अपने दांव से सीएम की कुर्सी झपट ली।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में 80 का दशक कई बदलावों का साक्षी रहा है। एक ऐसा समय आया जब जनता पार्टी, जन मोर्चा, लोकदल (अ) और लोकदल (ब) ने मिलकर जनता दल बनाया। इन चारों दलों की एकजुटता काम कर गई। प्रदेश में करीब दशक भर बाद विपक्ष ने कुल 425 में से 208 सीटों पर जीत हासिल की थी। सरकार बनाने के लिए संख्या बल के लिहाज से अब भी 14 विधायकों की जरूरत थी।

अजित सिंह का नाम हो चुका था फाइनल

तब मुख्यमंत्री पद के दो उम्मीदवार थे। पहले, स्व. चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत को संभालने की दावेदारी करने वाले उनके बेटे अजित सिंह और दूसरे लोकदल (ब) के नेता मुलायम सिंह यादव। जनता दल की जीत के साथ ही सीएम पद के लिए अजित सिंह का नाम तय हो चुका था। राजधानी लखनऊ में सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं। लेकिन क्लाइमेक्स अभी बाकी था। अचानक फैसला बदला गया। अब जन मोर्चा के विधायक मुलायम सिंह के पाले में खड़े हो चुके थे। बाद में मुलायम सिंह ही मुख्यमंत्री बने।


मुलायम सिंह यादव- अखिलेश यादव (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

मुलायम ने ठोकी सीएम की दावेदारी


उस समय केंद्र में भी जनता दल की ही सरकार थी। विश्वनाथ प्रताप सिंह (वी.पी. सिंह) देश के प्रधानमंत्री थे। उत्तर प्रदेश में पार्टी की जीत के साथ ही उन्होंने अजित सिंह के मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा कर दी थी। साथ ही, मुलायम सिंह यादव के उपमुख्यमंत्री बनाए जाने की भी बात कही थी। लखनऊ में अजित सिंह की ताजपोशी की तैयारियां जोरों-शोरों से चल रही थी। तभी खबर आई कि मुलायम सिंह यादव ने उपमुख्यमंत्री पद ठुकराकर, सीएम की दावेदारी ठोकी है। अब पेंच फंस गया। तब पीएम वी.पी. सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री पद का फैसला लोकतांत्रिक तरीके से होगा। इसके लिए गुप्त मतदान के जरिए होगा। इसके बाद जो हुआ, वह प्रदेश राजनीति का एक रोचक किस्सा है।

कुछ ऐसा रहा घटनाक्रम


उत्तर प्रदेश की राजनीति कभी सीधे चली ही नहीं। यह वाकया इसका प्रत्यक्ष प्रमाण था। तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने मधु दंडवते, मुफ्ती मोहम्मद सईद और चिमन भाई पटेल को बतौर पर्यवेक्षक यूपी जाने और विवाद को निपटाने का आदेश दिया। इन तीनों नेताओं ने कोशिश की। लेकिन मुलायम नहीं माने। उन्हें उपमुख्यमंत्री का पद स्वीकार ही नहीं था। कहते हैं तब मुलायम सिंह यादव ने एक बड़ा दांव खेला। उन्होंने बाहुबली डी.पी. यादव की मदद से अजित सिंह खेमे के 11 विधायकों को अपने पक्ष में कर लिया। इसमें उनकी मदद बेनी प्रसाद वर्मा ने भी की थी। इसके बाद से ही बेनी प्रसाद वर्मा और मुलायम की दोस्ती परवान चढ़ी और वो एक-दूसरे के विश्वासपात्र बन गए।

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