UP Politics News: भीम आर्मी से परेशान बसपा सुप्रीमो, वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए मायावती ने चला ये दांव

UP Politics News: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद (bhim army chief chandrashekhar azad) की दलित समाज के बीच बढ़ती लोकप्रियता भी मायावती (BSP supremo mayawati) को रास नहीं आ रही हैं।

Rajendra Kumar
Report Rajendra KumarPublished By Divyanshu Rao
Published on: 10 Nov 2021 1:55 PM GMT
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मायावती और भीम आर्मी चीफ मायावती और चंद्रशेखर आज़ाद 

UP Politics News: सूबे की गरीब जनता को फ्री राशन मिल रहा है। निशक्तजन, वृद्धावस्था एवं निराश्रित महिलाओं को समय से पेंशन भी मिल रही हैं। शहर तथा गांवों में गरीबों को आवास, शौचालय तथा उज्ज्वला योजना का लाभ भी मिल रहा है। "सबका साथ सबका विकास" की मंशा के तहत सूबे की सरकार हर वर्ग के गरीबों को पूरी पारदर्शिता से इन योजनाओं का लाभ पहुंचाने में जुटी है। बहुजन समाज पार्टी (BSP) मुखिया मायावती (BSP Supremo Mayawati) के लिए सरकार की ये योजनाएं ही अब परेशानी का सबब बन गई हैं।

इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh Ki Rajniti) में भीम आर्मी (Bhim Army Latest News) के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद (Chandrashekhar Azad) की दलित समाज के बीच बढ़ती लोकप्रियता भी मायावती को रास नहीं आ रही हैं। कुल मिलाकर प्रदेश सरकार की नीतियों और भीम आर्मी के दलित समाज में बढ़ते प्रभाव से मायावती परेशान हैं। उन्हें लगने लगा है कि बसपा के दलित वोटबैंक में योगी सरकार की नीतियों और भीम आर्मी की बढ़ती सक्रियता से सेंध लग रही हैं। पार्टी के वोटबैंक में लगती इस सेंध को रोकने के लिए अब मायावती ने यूपी में बिना किसी से समझौता किए हुए अकेले चुनाव लड़ने और सरकार बनी तो मैं ही मुख्यमंत्री बनने का ऐलान किया है।

मायावती को लगता है कि उनके इस दांव से दलित समाज बसपा से जुड़ा रहेगा। बसपा संस्थापक कांशीराम के निधन के बाद भी मायावती ने बिना किसी से चुनावी गठबंधन किए हुए राज्य में चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। तब उन्होंने सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले के तहत ब्राह्मणों को बसपा से जोड़ने का दांव चलते हुए चुनाव जीतने पर मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव को जेल भेजने का ऐलान किया था।

अब फिर मायावती ने अपने पुराने दांव पर ही भरोसा जताया है। कहा है कि सर्व समाज की इच्छा है कि मैं पांचवी बार सूबे की मुख्यमंत्री बनूं। मेरा स्वास्थ्य ठीक है और जब काम करने लायक नहीं रहूंगी तो उत्तराधिकारी के नाम का ऐलान कर दिया जाएगा।

मायावती को लगता है कि उनके इस कथन के बाद बसपा समर्थक प्रदेश सरकार ही नीतियों से प्रभावित नहीं होंगे और भीम आर्मी के चंद्रशेखर से भी दूरी बना लेंगे। बसपा समर्थकों को चन्द्रशेखर से दूर रखने के लिए मायावती ने भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर को बीजेपी का एजेंट बताया था। मायावती के इस कथन को राजनीतिक जगत में दलित समाज के बीच चंद्रशेखर के बढ़ते प्रभाव से मायावती का परेशान होना माना गया था। भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर उस वक़्त चर्चा में आए थे जब सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में हिंसा हुई थी।

चंद्रशेखर आज़ाद और मायावती की तस्वीर (फोटो:सोशल मीडिया)

हिंसा के आरोप में चंद्रशेखर (chandrashekhar azad ravan) समेत भीम आर्मी के कई सदस्यों को गिरफ्तार किया गया था और उस वक़्त ये मामला भी काफ़ी सुर्ख़ियों में रहा कि मायावती ने दलितों के साथ हुई हिंसा पर संवेदना जताने में काफी देर की।

तब से लेकर अब तक चंद्रशेखर सुर्खियों में हैं, उन्हें लेकर मायावती ने या तो कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और दी भी तो चंद्रशेखर को अपना प्रतिद्वंद्वी समझकर। मंगलवार को मायावती ने भीम आर्मी के मुखिया का नाम नहीं लिए लेकिन बसपा समर्थकों से किसी के बहकावे में ना आने की अपील जरूर की।

वरिष्ठ पत्रकार वीएन भट्ट का कहना है कि भीम आर्मी के चंद्रशेखर का नाम मायावती ने जानबूझ कर नहीं लिए है। उनके मुताबिक, पश्चिमी उत्तर प्रदेश का दलित समुदाय अच्छी तरह जानता है कि बसपा एक बड़ी राजनीतिक पार्टी है और उसकी सोच में राजनीतिक लाभ सबसे पहले रहेगा।

जबकि दलितों के लिए ज़मीन पर संघर्ष भीम आर्मी साढ़े चार साल से जिस तरह कर रही है, उससे उनके बीच उसकी पैठ काफ़ी गहरे तक बढ़ी है। इस स्तर तक कि यदि मायावती भी उसके बारे में कुछ ग़लत कहें तो शायद लोग यक़ीन न करें। इसीलिये मायावती ने चद्रशेखर का नाम मंगलवार को नहीं लिया।

रही बात प्रदेश सरकार द्वारा कराए गये कार्यो से राज्य में बसपा के वोटबैंक के दरकने की तो बीते साढ़े चार वर्षों में सूबे की सरकार द्वारा गरीब वर्ग हित में शुरू की गई तमाम योजनाओं ने यह कार्य किया है। सरकार के प्रयास से गरीब जनता को मिल रहे फ्री राशन तथा निशक्तजन, वृद्धावस्था एवं निराश्रित महिलाओं को समय से मिल रही पेंशन और शहर तथा गावों में गरीबों को आवास, शौचालय एवं उज्ज्वला योजना का मिले लाभ ने बसपा समर्थकों को मायावती से दूर किया है।

वीएन भट्ट कहते हैं कि कोरोना संकट के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जो खुद भी कोरोना से पीड़ित थे, अपनी बीमारी की परवाह किए बिना लोगों का हाल जानने के लिए जिलों में गए थे। गांवों में जाकर उन्होंने दलित समाज के लोगों का भी तब हालचाल जाना। मुख्यमंत्री ने राज्य में लोगों के इलाज के जो प्रबन्ध किए संसार भर में उसकी तारीफ़ हुई।

जबकि वंचित तथा शोषित दलित समाज का अपने को नेता कहने वाली मायावती पूरे कोरोना काल में अपने घर के बाहर ही नहीं निकली। जिसके चलते लंबे समय से बसपा से जुड़े दलित समाज के लोग पार्टी से छिटक गए। बसपा के कोआर्डिनेटरों इसकी जानकारी मायावती को दी तो मंगलवार को मायावती ने पार्टी के वोटबैंक में लगती सेंध को रोकने के लिए अब फिर मुख्यमंत्री बनने का दांव चला है।

Divyanshu Rao

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