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शिवपाल यादव ने किया समान नागरिक संहिता का समर्थन, बीजेपी का है प्रमुख एजेंडा, आखिर क्या है प्लान ?

Shivpal Singh Yadav: सपा के अध्यक्ष शिवपाल यादव ने समान नागरिक संहिता का समर्थन किया।

Rahul Singh Rajpoot
Published on: 15 April 2022 11:05 AM IST (Updated on: 15 April 2022 11:30 AM IST)
Shivpal yadav supported Social justice code
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शिवपाल यादव ने किया सामाजिक न्याय संहिता का समर्थन (Social media)

Shivpal Singh Yadav News: प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव की बीजेपी से दिन ब दिन नज़दीकियां बढ़ती जा रही है। अब वह भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख मुद्दे का भी समर्थन करते दिखाई दे रहे हैं । 14 अप्रैल को बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जयंती के अवसर पर आयोजित पार्टी कार्यालय के कार्यक्रम में उन्होंने अपने संबोधन में समान नागरिक संहिता के समर्थन की बात कही।

शिवपाल यादव ने कहा कि बाबा साहब ने भी संविधान सभा में समान नागरिक संहिता की वकालत की थी. डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने भी इसे जन मुद्दा बनाया था. सबकी भावनाओं के अनुरूप समान नागरिक संहिता का मसौदा बनाकर इसे लागू किया जाना चाहिए।

तनिष्काप्रसपा प्रमुख ने कहा कि कॉमन सिविल कोर्ट से समानता को बल मिलेगा. इसको लेकर जो भ्रांतियां फैलाई गई है उसे दूर किया जाएगा। उन्होंने कहा मैं और हमारी पार्टी ऐसी समान नागरिक संहिता लागू करना चाहती है जिसका मसौदा सर्वसम्मति से तैयार किया गया हो. जिसमें सब की आस्था में समाहित की गई हो।

सामाजिक न्याय का सिद्धांत क्या है?

हिंदुस्तान में जिस समान नागरिक संहिता की बात लम्बे समय चल रही है वह भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख एजेंडे में शामिल है. दरअसल सामाजिक न्याय शब्द का प्रयोग पहली बार 1940 में इटली के एक पादरी लुइगी तपारेली द एजेगलिओ किया गया था. जबकि इस शब्द को पहचान 1948 में एंटोनियो रोसिमनी सरबाली ने दिलाई। आधुनिक काल में जॉन रॉल्स और आत्म सेन जैसे विचारको ने समान नागरिक संहिता को एक प्रमुख अवधारणा बना दिया.

साथ ही वर्तमान में लोक कल्याणकारी राज्य का मूल्य सामाजिक न्याय की स्थापना करना ही है. सामाजिक न्याय से आशय एक ऐसे न्याय पूर्ण समाज की स्थापना से है जिसमें सामाजिक, आर्थिक, विषमताएं न्यूनतम हो, सामाजिक समावेशी हो और संसाधनों का वितरण सर्वमान्य विकृत के आधार पर हो।

सामाजिक न्याय का उद्देश्य राज्य के सभी नागरिकों को सामाजिक समानता उपलब्ध कराना है. समाज के प्रत्येक वर्ग के कल्याण के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आजादी आवश्यक है. भारत एक कल्याणकारी राज्य है और यहां सामाजिक न्याय का मुख्य उद्देश्य लैंगिक, जातिगत, नस्लीय एवं आर्थिक भेदभाव के बिना सभी नागरिकों की मूलभूत अधिकारों तक समान पहुंच सुनिश्चित करना है. मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही सामाजिक न्याय और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच प्राथमिकता को लेकर विवाद रहा है. 20वीं सदी में सामाजिक न्याय की अवधारणा के तीव्र विकास के साथ ही उपरोक्त दोनों मूल्यों में व्याप्त भिन्नता और भी अधिक स्पष्ट हुई है।

समाजवादी देशों ने समान नागरिक संहिता को सर्व प्रमुख माना

इसलिए एक ओर जहां पश्चिमी पूंजीवादी देशों ने अपनी संवैधानिक योजना में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रमुखता दी, वहीं दूसरी ओर समाजवादी देशों ने सामाजिक न्याय को सर्व प्रमुख माना. जबकि समकालीन राजनीतिक व्यवस्थाओं ने प्रमुखता उदारवादी लोकतंत्र को अपनाते हुए सामाजिक न्याय व व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मध्य बेहतरीन सामंजस्य स्थापित किया है. भारतीय राजव्यवस्था में उदारवादी राजनीतिक लोकतंत्र के साथ-साथ समाजवादी आदर्शों को भी अपनाया गया है.

इसे ध्यान में रखते हुए ही संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय का उल्लेख किया गया है. भारत के संविधान निर्माताओं ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय में संतुलन स्थापित करने के उद्देश्य से संविधान के भाग 3 में मौलिक अधिकारों के रूप में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को भाग चार में राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अंतर्गत सामाजिक न्याय को सुनिश्चित किया है। सामाजिक न्याय शब्द को कठोर प्रतियोगिता के विरुद्ध कमजोर, वृद्धों, दीनहीन, महिलाओं,बच्चों और अन्य सुविधा से वंचितों को राज्य द्वारा संरक्षण के अधिकार के रूप में परिभाषित किया जा सकता है. दूसरे शब्दों में कहें यह सिद्धांत एक भी समतामूलक समाज के सर्व समावेशी समाज के रूप में परिवर्तन में एक मार्गदर्शक का कार्य करता है।



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Ragini Sinha

Ragini Sinha

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