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उत्तर प्रदेश कांग्रेस का हेलीकाप्टर' अध्यक्ष और जर्जर होती पार्टी

Anoop Ojha
Published on: 4 Dec 2018 2:17 PM GMT
उत्तर प्रदेश कांग्रेस का हेलीकाप्टर अध्यक्ष और जर्जर होती पार्टी
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रजत राय

लखनऊ: एक तरफ जहां सपा और बसपा के साथ 2019 में होने वाले लोक सभा चुनाव में गठबंधन को ले कर कांग्रेस में अभी भी अनिश्चितता है, वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश कांग्रेस के कार्यकर्ता भी भाजपा जैसी मजबूत और 'विकराल' पार्टी से सीधी और मजबूत टक्कर लेने में खुद को कमज़ोर और असहाय महसूस कर रहे हैं।

अगर एक दो प्रदेशों को छोड़ दिया जाए तो पिछ्ले कुछ समय में देश में हुए विधान सभा चुनाओं में कांग्रेस के लगातार कमज़ोर प्रदर्शन और बीजेपी की बढती साख के अलावा प्रदेश कांग्रेस का कमज़ोर और गैर् ज़िमेदाराना नेतृत्व को भी प्रदेश के कार्यकर्ता और नेता कांग्रेस की गिरती और कमज़ोर होती साख की वजह मानते हैं।

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अगर प्रदेश के नेताओं की बातों को गौर से सुना और समझा जाए तो उससे निष्कर्ष यही निकलता है की प्रदेश का 'हेलीकाप्टर ' अध्यक्ष न तो उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतर पा रहा है, न तो उनका पार्टी की मजबूती के लिए काम करने में रूचि है।

''उनकों (राज बब्बर) प्रदेश का अध्यक्ष बने लगभग ढाई साल हो चुके हैं, लेकिन अब तक वो केवल 8—10 बार ही लखनऊ (प्रदेश पार्टी के कार्यालय) आए हैं। इन दौरों में से सिर्फ दो बार ही वो लखनऊ में रुके बाकी अवसरों पर वो आते हैं और उसी दिन वापस चले जाते हैं। आखिरी बार वो इंदिरा गाँधी के जन्म दिन के कार्यक्रम में शामिल होने नवम्बर में आए थे और प्रदेश कार्यालय के प्रांगण में हुए कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर वापस चले गए। प्रदेश के कार्यालय के अपने कमरे में गए और कार्यकर्ताओं और नेताओं से मीटिंग किये उनको न जाने कितना समय हो गया'', एक पुराने कांग्रेसी ने अपना दर्द बयां करते हुए नाम न छापने की शर्त पर बताया।

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उनको 'हेलीकाप्टर' अध्यक्ष का तमगा भी इसी लिए दिया गया है की वो सुबह आते हैं और शाम को वापस चले जाते हैं। कम से कम देश की सबसे पुरानी पार्टी के इतने महत्वपूर्ण प्रदेश के अध्यक्ष का अपना एक स्थाई ठिकाना (घर) और पता तो प्रदेश में होना चाहिए? और उनको पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं को अपनी शक्ल तो बार बार दिखानी चाहिए, उन्होंने आगे कहा।

एक तरफ जहां बीजेपी है जो पूरे साल चुनाव मोड में रहती है, वहीँ अब जहां 2019 चुनाव में कुछ महिने ही बाकी हैं, प्रदेश कांग्रेस के दफ्तर पर फैले सन्नाटे को देख कर आप समझ सकते हैं की यहाँ तैयारियां कैसी चल रही हैं।

इधर प्रदेश कांग्रेसियों को ये भी अफसोस है की500 मेम्बर वाली प्रदेश कमिटी अभी तक निष्क्रिय पड़ी है और उसके पास कोई भी काम या कर्तव्य नहीं है।

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प्रदेश समिति का गठन करीब 10 महीने पहले हुआ था जिसके बाद कार्यकर्ताओं और प्रदेश के नेताओं में उत्साह था। गठन के बाद उनका ऐसा मानना था की इससे 2019 की तैयारियों को न सिर्फ धार मिलेगी, बल्कि समिति के सदस्यों को भी पार्टी में महत्वपूर्ण ज़िमेदारियां मिलेंगी।लेकिन समिति के गठन के महज 5-6 महीने बाद ही राज बब्बर ने एक ऐड हाक समिति का गठन कर दिया और आर. बी. त्रिपाठी, शैलेश अजवानी, हेमंत त्रिपाठी और महेश बाजपेई वाली इस समिति को पार्टी चलाने की जिम्मेदारी दे दी गई। इसमें भी न तो किसी दलित या मुस्लिम को जगह दी गई पुराने कांग्रेसियों को भी दरकिनार कर दिया गया।

एक वरिष्ठ कांग्रेसी के अनुसार इस समिति में सीनियर नेताओं को तरजीह नहीं दी गई और नए और कम तजुर्बेकार लोगों को पार्टी की बागडोर सौंप दी गई। इसकी शिकायत भी हाई कमांड से हुई लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला। इसी वजह से वरिष्ठ कांग्रेसी नेता इस समिति के साथ काम करने में कतराते हैं और ये भी हाथी के दांत के अलावा कुछ साबित नहीं हुई।

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पार्टी में 'बाहरियों' और कम ताज़ुर्बेकारों की बढ़ती साख से भी कांग्रेसियों में बेचैनी है मगर असहाय बन के चीज़ों को देखने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं है।

एक अन्य कांग्रेसी ने बताया की बसपा से आए दो लोगों को महत्वपूर्ण पद दिए जाने से भी असंतोष व्याप्त है। जहां अभिमन्यु सिंह को प्रशासनिक जिम्मेदारी दी गई है, वहीँ नईम सिद्दिकी को कोषाध्यक्ष बना गया है। उन्होंने आगे बताया की अभी अभी गठित पार्टी के नए मीडिया पैनल में भी करीब एक-तिहाई सदस्य ऐसे हैं की उन्हें पार्टी ज्वाइन किये ही 4 से 6 महीने हुए हैं। कई बड़े नेताओं के रिश्तेदारों को भी इसमें बिना किसी ख़ास अनुभव के इसमें जगह दे देना भी गले से नहीं उतरता। ये सब नियुक्तियां पार्टी के 3 साल से पहले महत्वपूर्ण पद न देने के नियम को ताख पर रख कर हुई हैं और किसी को ये समझ में नहीं आ रहा की वरिष्ठों को संगठन में वरीयता न देने का फैसला आखिर कैसे हो रहा है।

जिला और शहर स्तर पर भी अभी पार्टी गठबंधन के लगभग ज्यादातर काम अधूरे पड़े हैं और जादातर जिलों में अभी भी जिला अध्यक्षों का चयन बाकी है। जिलों का प्रदेश हाई कमान के साथ समन्वय भी बड़ी लचर स्थिति में है।और पूरे प्रदेश में पार्टी को ओवर हॉलिंग की अवश्याकता है।

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''बड़े अफसोस की बात है की पार्टी में भारी असंतोष व्याप्त है।काम करने का न तो माहौल है न किसी के पास कोई जिमेदारी है। अगर जिमेदारी नहीं होती है तो जवाबदेही भी नहीं होती है। ऐसे में आपके (पार्टी नेतृत्व) पास किसी से कोई सवाल पूछने या किसी पर दोषारोपण करने का कोई नैतिक हक भी नहीं होता'', पार्टी के एक पूर्व और वरिष्ठ प्रवक्ता ने अपना दर्द साझा करते हुए नाम न छापने की शर्त पर कहा।

लगता है की बब्बर जानबूझ कर काम नहीं कर रहे हैं ताकि उन्हें हटाया जाए और ये मेसेज जाए की उनकी रूचि अध्यक्ष् बने रहने में नहीं है. लेकिन हाई कमान क्यों उन्हें क्यों ढो रहा है, ये समझ के परे है, उन्होंने आगे कहा।

2017 में जब उन्होने पद छोड़ा था तब एक आस जगी थी की अब पार्टी के दिन बहुरेंगे। लेकिन राहुल गाँधी ने फिर उन्हें 'समझा बुझा' कर मना लिया और हमारी उम्मीदों पर पानी फिर गया, उन्होंने कहा।

'' हमें तो आश्चर्य इस बात का होता है की हाई कमान सब चीज़ों की जानकारी होते हुए भी चुप क्यों है... पार्टी में व्याप्त इस व्यापक असंतोष की जानकारी कई बार आला कमान को दी गई है और हम केवल यही अपेक्षा कर सकते हैं की शीघ्र कोई उपाय किये जाएँ ताकि 2019 में हमारा प्रदेश में प्रदर्शन सुधार् सके। हमे राहुलजी सभी बहुत उम्मीदें हैं और वो भी इस चीज़ों से वाकिफ हैं। अभी वह चुनाओं में व्यस्त हैं और हमे उम्मीद है की जल्द वो इसका कोई समाधान निकालेंगे '', एक और वरिष्ठ कांग्रेसी ने कहा।

Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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