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Lok Sabha Election 2019: गठबंधन के गले की फांस बनने लगे असंतुष्ट, खिसक रही जमीन

समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठबन्धन अब अपने ही दल के समर्पित नेताओं से आजिज है। ये गले की फांस बनते जा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस को इसका सीधा फायदा मिल रहा है। सपा-बसपा को गठबंधन के गले की फांस बने इन नेताओं को मनाने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा है।

Dhananjay Singh
Published on: 16 March 2019 7:45 PM IST
Lok Sabha Election 2019: गठबंधन के गले की फांस बनने लगे असंतुष्ट, खिसक रही जमीन
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धनंजय सिंह

लखनऊ : समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठबन्धन अब अपने ही दल के समर्पित नेताओं से आजिज है। ये गले की फांस बनते जा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस को इसका सीधा फायदा मिल रहा है। सपा-बसपा को गठबंधन के गले की फांस बने इन नेताओं को मनाने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा है। भाजपा-कांग्रेस में शामिल होने वाले असंतुष्टों से बसपा-सपा की जमीन खिसकने लगी है।

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फतेहपुर से सांसद रहे राकेश सचान और बसपा कोटे से सीतापुर से सांसद रह चुकीं कैसर जहां के कांग्रेस में शामिल होने से बसपा को झटका लगा था कि कांग्रेस ने कैसर जहाँ को उम्मीदवार बनाकर जले पर नमक छिड़क दिया है। अब इन नेताओं से जुड़े जमीनी कार्यकर्ता अपने-अपने नेताओं के साथ जुड़कर बसपा की जमीन खिसकाने में जुटे हैं। इधर, लोकसभा उपचुनाव में निषाद पार्टी का साथ मिलने से खुश सपा को भी अमरेंद्र निषाद और उनकी पूर्व विधायक मां राजमती के भाजपा का दामन थामने से झटका लगा है।

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पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक योगेश श्रीवास्तव की मानें तो जिन निषाद मतदाताओं के बल पर सपा को उपचुनाव में जीत हासिल हुई थी, अब वह दो खेमों में बंटेंगे। मंदिर में प्रति आस्थावान निषादों को सहेजने में भाजपा को अब ज्यादा कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा। अमरेंद्र निषाद और राजमती निषाद के भाजपा में शामिल होने से राह आसान हुई है।

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राजनैतिक विश्लेषक और पत्रकार राजेश मिश्रा की मानें तो अभी सपा-बसपा एक-दूसरे के प्रति वफादारी दिखा रहे हैं, लेकिन यह केवल शीर्ष स्तर पर है। जमीनी स्तर पर हो रही गुटबाजी और उभरा असंतोष साफ-साफ दिख रहा है। इनका कहना है कि लोकल समस्याओं और लोकल प्रभाव को लेकर छोटी-छोटी बातों पर इन दलों में नेता, कार्यकर्ता और पदाधिकारी आमने-सामने हैं। यह केवल राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता नहीं है। खुद के अस्तित्व की लड़ाई भी है।

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गठबंधन में बसपा के 38 और सपा के 37 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद दोनों पार्टी के असंतुष्ट नेताओं की संख्या सामने आ रही है। टिकट की आस में बैठे जमीनी कार्यकर्ता, पदाधिकारी और नेता निराश हैं। शायद यही वजह है कि अभी सपा-बसपा छोड़ने की मंशा रखने वाले नेता दूसरी पार्टियों से लगातार संपर्क में हैं। बस्ती मंडल में दो नेताओं के प्रति छोड़ने का कयास लगाया जा रहा है। इन दोनों नेताओं का संबंध सपा से है। राजनैतिक जानकारों का कहना है कि दोनों नेता भाजपा का दामन थाम सकते हैं।



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