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Vivadit Dhancha Ayodhya : विवादित ढांचे की गिरी आखिरी ईंट, कल्याण बोले- राम नाम पर बनी सरकार, अब उन्हीं पर कुर्बान

Vivadit Dhancha Ayodhya : ढांचा विध्वंस के बाद जब सीबीआई ने चार्जशीट दायर की, तो उसमें साफ कहा गया था कि सीएम बनने के बाद कल्याण सिंह अयोध्या दौरे पर गए थे।

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Written By amanPublished By Shraddha
Published on: 28 Sep 2021 1:26 AM GMT (Updated on: 28 Sep 2021 1:44 AM GMT)
विवादित ढांचे की गिरी आखिरी ईंट पर कल्याण सिंह ने दिया इस्तीफा
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विवादित ढांचे की गिरी आखिरी ईंट(कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)

Vivadit Dhancha Ayodhya : वर्ष 1990 में जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी (सपा) (Samajwadi Party) सरकार थी तब अयोध्या में उनके आदेश पर कारसेवकों पर गोलियां चली थी। स्थानीय प्रशासन कारसेवकों पर काफी सख्ती से एक्शन ले रहा था। इस दौरान कई कारसेवकों की जान भी गई। उस दौरान भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) ने अपने वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह (Kalyan Singh) को आगे किया। राजनीतिक विश्लेषक यह मानते रहे हैं कि कल्याण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) के समान हुनर रखते थे। उस वक्त यह कहा जाता था कि जिस तरह लोग अटल बिहारी वाजपेयी का भाषण सुनना पसंद करते थे, वैसे ही कल्याण सिंह के भाषणों के भी मुरीद थे। रैली में लोग मंच पर कल्याण सिंह की बारी आने का इंतजार करते थे। कल्याण सिंह का अपना तेवर था।

आज अयोध्या में जिस राम मंदिर का भव्य निर्माण हो रहा है, उसे मुकाम तक पहुंचाने में कल्याण सिंह की अहम भूमिका थी। मंदिर आंदोलन के दौरान भी वो बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। यही वजह थी कि साल 1991 के विधानसभा चुनाव में बीजपी ने बहुमत के साथ कल्याण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाई। ढांचा विध्वंस के बाद जब सीबीआई ने चार्जशीट दायर की, तो उसमें साफ कहा गया था कि सीएम बनने के बाद कल्याण सिंह अयोध्या दौरे पर गए थे। वहां उन्होंने राम मंदिर निर्माण की शपथ ली थी।


कल्याण सिंह (फाइल फोटो - सोशल मीडिया)


ढांचा गिरते टीवी न्यूज़ में देख रहे थे


उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की अगुवायी में भारतीय जनता पार्टी ने 1991 में सरकार बनाई थी। सरकार गठन के एक साल के भीतर ही यानि 1992 में कारसेवकों ने विवादित ढांचा ध्वस्त कर दिया। इस घटना के बारे में कल्याण सिंह के तत्कालीन प्रमुख सचिव रिटायर्ड आईएएस ऑफिसर योगेंद्र नारायण ने मीडिया को बताया था। उन्होंने बताया कि जिस वक्त ढांचा गिराया जा रहा था उस समय कल्याण सिंह अपने कक्ष में लालजी टंडन और ओमप्रकाश सिंह के साथ खाना खाते हुए इस पूरी घटना को टीवी न्यूज़ में देख रहे थे। टीवी पर देखा जा सकता था कि कई कारसेवक विवादित ढांचे पर चढ़ चुके। गुंबद ध्वस्त करने की कोशिश कर रहे हैं। यह सब देखकर कल्याण सिंह चिंतित थे, मगर व्याकुल नहीं थे।

आंसू गैस चलाइए, लाठीचार्ज करिए...गोली नहीं


योगेंद्र नारायण आगे बताते हैं, उस समय तत्कालीन डीजीपी एस.एम. त्रिपाठी भागते हुए सीएम के पास आए। लेकिन उन्होंने खाने के बाद मिलने को कहा। कुछ देर बाद जब डीजीपी उनसे मिले तो बताया कि कारसेवक विवादित ढांचे को गिराने पर तुले हैं। ऐसे में गोली चलाने के आदेश चाहिए। तब कल्याण सिंह ने डीजीपी से पूछा, "फायरिंग में कितने लोग मारे जाएंगे?" इसपर डीजीपी त्रिपाठी ने कहा, कारसेवकों ने पूरी तरीके से विवादित स्थल को घेर लिया है। अगर प्रशासन फायरिंग करता है तो बहुत लोग मारे जाएंगे।" इस पर कल्याण सिंह बोले, आंसू गैस चलाइए या लाठीचार्ज करिए। लेकिन मैं गोली चलाने के आदेश नहीं दे सकता। इसके बाद कल्याण सिंह ने डीजीपी से यह भी कहा, आप चाहें तो मैं कागज पर लिखकर दे सकता हूं, कि आपने तो परमिशन मांगी थी।लेकिन मुख्यमंत्री ने नहीं दी। यह सुन डीजीपी वापस चले गए।

'मैं मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे रहा हूं'


कल्याण सिंह टीवी के जरिए कारसेवकों द्वारा ढांचा ढहाए जाने को देखते रहे। जैसे ही आखिरी ईंट गिरी, कल्याण सिंह ने अपना राइटिंग पैड मंगाया और इस्तीफा लिख दिया। कल्याण सिंह की गाड़ियों का काफिला थोड़ी देर में ही राजभवन पहुंच गया। राजभवन की मुख्य इमारत में कल्याण सिंह मुस्कुराते दाखिल हुए। अपने लेटर पैड का एक पेज राज्यपाल के हाथ में पकड़ा दिया। अब तक उनसे मिले सहयोग के लिए धन्यवाद दिया। कागज पर लिखा था, 'मैं मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे रहा हूं, कृपया स्वीकार करिए।'


अयोध्या राम मंदिर (कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)


कभी खेद नहीं जताया


कल्याण सिंह का कहना था कि यह सरकार राम मंदिर के नाम पर ही बनी थी, अब मकसद पूरा हो चुका है। इसलिए अब सरकार मंदिर के नाम पर कुर्बान होने को तैयार है। बीजेपी के इस नेता ने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी। लेकिन उस रोज से वह 'हिंदुत्व' की राजनीति का बड़ा चेहरा बनकर उभरे। अपने पूरे जीवनकाल में कल्याण सिंह ने कभी भी विवादित ढांचे के गिराए जाने पर खेद नहीं जताया।

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