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ओमप्रकाश राजभर 2022: 'जिसकी जितनी संख्या भारी...' मूलमंत्र, खेल बिगाड़ने का रखते हैं माद्दा

OM Prakash Rajbhar News: देश में पिछड़ों-दलित की राजनीति का उभार 1989-90 में मंडल-कमंडल की राजनीति के बाद देखने को मिला, तो वहीं उतर प्रदेश में यह 1985 के मध्य से ही रफ्तार पकड़ चुकी थी। तब कांशीराम दलितों के बड़े नेता थे।

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Written By aman
Published on: 17 Dec 2021 3:49 PM IST (Updated on: 17 Dec 2021 4:30 PM IST)
ओमप्रकाश राजभर 2022: जिसकी जितनी संख्या भारी... मूलमंत्र, खेल बिगाड़ने का रखते हैं माद्दा
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OM Prakash Rajbhar News: देश में पिछड़ों-दलित की राजनीति का उभार 1989-90 में मंडल-कमंडल की राजनीति के बाद देखने को मिला, तो वहीं उतर प्रदेश में यह 1985 के मध्य से ही रफ्तार पकड़ चुकी थी। तब कांशीराम दलितों के बड़े नेता थे। फिर कल्याण सिंह, मायावती और धीरे-धीरे ओमप्रकाश राजभर (OM Prakash Rajbhar) का नाम इसी कड़ी से जुड़ता गया। 'जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी' यही मूलमंत्र लेकर ओमप्रकाश राजभर आगे बढ़ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश की राजनीति (Politics in Uttar Pradesh) पर अगर आप सरसरी निगाह डालें तो यह आपको हमेशा से दिलचस्प दिखेगा। यहां एक तरफ जहां परिवारवाद, भाई-भतीजावाद का बोलबाला दिखेगा तो, दूसरी तरफ अगड़ों, पिछड़ों, दलितों की राजनीति भी दिखेगी। लेकिन सबसे दिलचस्प नजारा चुनाव के वक्त देखने को मिलता है। चुनाव (UP Election 2022) के समय यूपी में सभी तरह की राजनीतिक खिचड़ी पकती है। बड़ी पार्टियों को भी जातिगत समीकरण बैठने के लिए छोटे दलों की जरूरत पड़ती है तो छोटी पार्टियां भी बड़े दलों के सहारे सत्ता तक पहुंचती है। उत्तर प्रदेश की ऐसी ही एक पार्टी है सुहेलदेव भारतीय समाज (सुभासपा) पार्टी। जिसके संस्थापक हैं ओमप्रकाश राजभर।

कौन होते हैं राजभर? (Rajbhar Kaun Hote Hain)

अब आपके मन में स्वाभाविक सवाल उठेगा कि आखिर कौन होते हैं राजभर? बता दें, कि राजभर जाति मछली पालन और खेतीबाड़ी से जुड़ी है। यह समुदाय उन 17 जतियों में हैं, जिन्हें अखिलेश यादव की सरकार ने अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन तब केंद्र सरकार ने इसे राज्य सरकार की 'वोट बैंक पॉलिटिक्स' मानते हुए अदालती रोक के बाद ठंडे बास्ते में डाल दिया। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, उत्तर प्रदेश में राजभर जाति का प्रतिनिधित्व करती है। राजभर समुदाय के लोग विशेषकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों बलिया, गाजीपुर, आज़मगढ़, मऊ,भदोही, चंदौली, वाराणसी और मिर्जापुर में निवास करती है। इस समुदाय की जनसंख्या 12 लाख के करीब है।

कौन हैं ओमप्रकाश राजभर? (Kaun Hain OM Prakash Rajbhar)

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के संस्थापक ओम प्रकाश राजभर (OM Prakash Rajbhar Political Career) का शुरुआती जीवन मुफलिसी में बीता। एक समय था जब राजभर टैंपो चलाकर गुजर करते थे। इनका पैतृक निवास वाराणसी के फत्तेहपुर खौंदा में है। इनके पिता का नाम सन्नू राजभर है। वो कोयला खदान में काम करते थे। ओमप्रकाश राजभर राजनीति शास्त्र से एम.ए की है। किस्मत बदली और ये उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में मंत्री तक बने। हालांकि, बाद में अनबन की वजह से बीजेपी के साथ ओमप्रकश के रास्ते अलग हो गए। ऐसे में वो एक बार फिर साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं।

ओम प्रकाश राजभर बसपा छोड़, अपना दल से जुड़े

ओम प्रकाश राजभर एक समय बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ जुड़े थे। दरअसल, राजभर कांशीराम के विचारों से प्रभावित थे। इन्होंने 1981 राजनीति शुरू की थी। वर्ष 1995 में इनकी पत्नी राजमति राजभर वाराणसी जिला पंचायत सदस्य के रूप में निर्वाचित हुई थीं। 1996 में राजभर बसपा से ही कोलअसला (अब पिंडरा) विधानसभा से प्रत्याशी थे लेकिन चुनाव हार गए। इनका बहुजन समाज पार्टी में रहते हुए मायावती से विवाद गहराया। इन्होंने बसपा छोड़ दी। इसके बाद ओम प्रकाश राजभर अपना दल से जुड़े। पार्टी ने इन्हें युवा मंच का प्रदेश अध्यक्ष बनाया। साल 2000 में अपना दल भी छोड़ दिया।

2002 में बनाई अपनी पार्टी (OM Prakash Rajbhar Party)

वर्ष 2002 में ओमप्रकाश राजभर ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी नाम की अपनी पार्टी बनाई। इनकी पार्टी का चुनाव चिह्न पीला ध्वज और छड़ी है। यही वजह है कि आप राजभर की कोई तस्वीर देखिए उनके गले में पार्टी के झंडे के रंग स्कार्फ नजर आएगा। 2004 से राजभर की पार्टी चुनाव लड़ रही है। यह अभी दो ही राज्यों मुख्यतः यूपी और बिहार तक सीमित है। ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी इनकी पार्टी के उम्मीदवार चुनाव जीतें या न जीतें, मगर खेल जरूर बिगाड़ देते हैं।

2017 में पहली बार मिली जीत

साल 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान देश में मोदी लहर थी। इस चुनाव में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (Suheldev Bharatiya Samaj Party) ने अपने 13 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा। पार्टी के सभी उम्मीदवारों को 118,947 वोट मिले। सभी प्रत्याशियों की जमानत ज़ब्त हो गई। राजभर खुद सलेमपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे। उन्हें भी महज 66,084 वोट मिले। 2017 में राजभर की राजनीति की रुकी गाड़ी चल पड़ी। इस साल सुभासपा के चार प्रत्याशी विधानसभा पहुंचने में सफल रहे। बाद में ओम प्रकाश राजभर योगी आदित्यनाथ की सरकार में मंत्री बने। इस चुनाव में समझौते के तहत बीजेपी ने राजभर को आठ सीटें दी थी।

बीजेपी से बढ़ती गई दूरियां

2019 लोकसभा चुनाव में राजभर ने प्रदेश की 39 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। इसके बाद बीजेपी से उनकी दूरियां बढ़ती चली गई। वो लगातार बीजेपी के खिलाफ बयानबाजी करते देखे जाने लगे थे। इसके बाद बीजेपी से उनका गठबंधन टूट गया था। एक बार फिर उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में गठबंधन को लेकर ओम प्रकाश राजभर का कहना है वो बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। हालांकि, उन्होंने इस बार शर्त रखते हुए कहा है, कि अगर बीजेपी पिछड़े वर्ग के किसी नेता को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाती है तो गठबंधन पर विचार हो सकता है। हालांकि अभी राजभर 10 छोटी पार्टियों को मिलाकर राजभर भागीदारी संकल्प मोर्चा को मजबूती दे रहे हैं।

ओम प्रकाश राजभर का परिचय (OM Prakash Rajbhar Wikipedia)

नाम- ओमप्रकाश राजभर

पिता- सन्नू राजभर

पत्नी- राजमति राजभर

1981 में राजनीति शुरू की

1996 में बसपा के टिकट पर कोलअसला (अब पिंडरा) विधानसभा सीट से प्रत्याशी, चुनाव हार गए।

2002 में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की स्थापना की

2004 से राजभर की पार्टी चुनाव लड़ रही है।

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का परफॉर्मेंस:


2004 लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 13 प्रत्याशी उतारे, 0.07 प्रतिशत वोट के साथ 2 लाख 75 हजार वोट मिले।

2007 यूपी विधानसभा चुनाव में 97 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, 94 की जमानत जब्त।

2009 में अपना दल के साथ गठबंधन। लोकसभा चुनाव में 22 प्रत्याशी उतारे। कोई सफलता नहीं मिली।

2012 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 52 प्रत्याशी उतारे। 48 की जमानत जब्त हुई। पार्टी को 0.63 प्रतिशत वोट मिला।

2014 लोकसभा चुनाव में 13 चेहरे मैदान में उतरे, नतीजा सिफर रहा।

2017 यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन। 8 उम्मीदवार मैदान में, चार को जीत मिली। राजभर मंत्री बने।

2019 लोकसभा चुनाव में 39 प्रत्याशी उतारे। किसी को जीत नहीं मिली।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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