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सूत न कपास
हंगामा है क्यों बरपा? पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यक्रम में शिरकत को लेकर इन दिनों अकबर इलाहाबादी के गज़ल की ये चंद लाइनें बेहद प्रासंगिक हैं। कांग्रेस को सांप सूंघ गया है। यह फैलाया जा रहा है कि आखिर प्रणब मुखर्जी संघ के कार्यक्रम में जो शिरकत करने जा रहे हैं वह कुछ ठीक नहीं है। कांग्रेस के कई नेताओं ने प्रणब मुखर्जी को पत्र भी लिखा है। जयराम रमेश और सी.के. जाफर शरीफ ने अपने पत्र में यहां तक लिखा है कि उन जैसे विद्वान और धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति को संघ के साथ किसी तरह की नजदीकी नहीं दिखानी चाहिए। हालांकि प्रणब मुखर्जी की ओर से इस तरह के सवालों के जवाब स्वयंसेवकों की बैठक में मुख्य अतिथि के तौर पर बोलते हुए मिलने की उम्मीद है।
प्रणब मुखर्जी देश के राष्ट्रपति रहे हैं। राष्ट्रपति को देश की धरोहर की तरह मानना चाहिए। उसे प्रधानमंत्री की तरह जनता से वोट मांगने की विवशता से मुक्ति मिल जाती है। इसलिए उसका नजरिया पार्टी से ऊपर का होना चाहिए। वह भी तब जब उसका कार्यकाल समाप्त हो चुका हो। किसी भी कार्यकाल की समाप्ति के बाद भूतपूर्व हुए शख्स की अभिलाषा निःसंदेह अभूतपूर्व होने की होनी चाहिए। प्रणब मुखर्जी की भी अभिलाषा कुछ ऐसी ही दिख रही है। संघ का आमंत्रण स्वीकार करके उन्होंने उसी दिशा में कदम बढ़ाए हैं। कोई भी व्यक्ति तीन बातों से निर्दशित होता है, पहला अपना विवेक, दूसरा भावना, तीसरा प्ररेणा स्रोत। भारतीय राष्ट्र को समझने, उसके इतिहास को ग्रहण करने, बदलाव को अंजाम देने तथा बौद्धिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए संघ को समझे बिना काम चलने वाला नहीं है। इसके लिए संघ प्रेरणा स्रोत है। क्योंकि संघ की स्थापना ही 1925 में डाॅ. केशव बलिराम हेडगेवार ने भारत को यूरोपीय चश्में से न देखने के लिए ही की थी। हेडगेवार जी पर भारत सरकार डाक टिकट जारी कर चुकी है। आरएसएस की स्थापना के पहले वह भी कांग्रेस के सदस्य हुआ करते थे। खिलाफत आंदोलन में उनकी भूमिका के कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया था। सात साल की सजा सुनाई गई थी। वे कभी किसी भी सदन के सदस्य नहीं रहे। गोलवरकर जी पर सुरुचि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किताब बताती है कि उनके निधन पर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति वी.वी. गिरी ने कहा था कि गोलवरकर अपने ढंग से अत्यंत निष्ठापूर्वक आजीवन देश की सेवा करते रहे। देश की संसद ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा कि वे शक्तिशाली आस्था वाले व्यक्ति थे। अपने प्रभावी व्यक्तित्व और विचारों के प्रति अटूट निष्ठा के कारण राष्ट्रीय जीवन में उनका महत्वपूर्ण स्थान था। लोक सभा अध्यक्ष गुरुदयाल सिंह ढिल्लो, राज्यसभा के सभापति गोपाल स्वरूप पाठक, पुरी और कांची कामकोटि के शंकराचार्य, धर्मसंघ के संस्थापक स्वामी करपात्री, जैन संत आचार्य तुलसी और आचार्य विनोबा भावे सरीखे अनंत महत्वपूर्ण लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी थी।
जनता पार्टी की सरकार में मोराजी देसाई के साथ संघ के राजनीतिक फ्रंट के नेता भी शामिल थे। विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ जनता दल में संघ के इस राजनीतिक फ्रंट ने विलय करके कुर्बानी दी थी। 1963 में पं. जवाहर लाल नेहरू ने 26 जनवरी की परेड में संघ के स्वयं सेवकों को इसलिए शामिल होने का आमंत्रण दिया था क्योंकि 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान संघ ने बहुत सराहनीय कार्य किया था। पं. नेहरू के दो दिन के आमंत्रण पर 35 सौ गणवेषधारी स्वयं सेवक गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल हुए थे। बीबीसी पोर्टल पर ज्ञानेंद्र बरतरिया ने लिखा है कि लाल बहादुर शास्त्री ने 1965 के युद्ध के दौरान संघ से कानून व्यवस्था की स्थिति संभालने में मदद देने और दिल्ली का यातायात अपने हाथ में लेने का अग्रह किया था। कश्मीर की हवाई पट्टियों से बर्फ हटाने का काम स्वयं सेवकों ने 1965 में युद्ध के समय किया था। पाकिस्तान से जान बचाकर भारत आये शरणार्थियों के लिए स्वयं सेवकों ने तीन हजार से ज्यादे राहत शिविर चलाये थे। ‘भाग मिल्खा भाग‘ फिल्म में शिविरों में राहत सामग्री देने का काम करते हुए संघ के स्वयं सेवक देखे जा सकते हैं। जगन्नाथ राव जोशी की अगुवाई में संघ के स्वयं सेवकों ने 1955 में गोवा मुक्ति आंदोलन में शिरकत की थी। हालांकि वह 1961 में आजाद हुआ। आपात काल के दौरान संघ के बहुत से नेता जेल में रहे। उड़ीसा चक्रवात, भोपाल गैस त्रासदी, सिख विरोधी दंगे, गुजरात भूकंप, सुनामी, प्रलय, उत्तराखंड की बाढ़, कारगिल युद्ध के घायल लोगों की सेवा में संघ के लोग निःस्वार्थ जुटे दिखे। नेपाल, श्रीलंका और सुमात्रा में भी संघ के स्वयं सेवकों ने दैवीय आपदा के दौरान बहुत काम किया। कारखानों में विश्कर्मा जयंती की पूजा का चलन संघ के संगठन भारतीय मजदूर संघ की देन है। हमारे खोये हुए संस्कार के वापस लाने का व्रत संघ का संकल्प है।
आज समाज के संसाधनों और लोगों द्वारा संघ तकरीबन 1 लाख 80 हजार उपक्रम चला रहा है। संघ में बहुत बड़ी संख्या जीवन व्रती लोगों की है। संघ की शाखा में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी जा चुके हैं। 1978 में जयप्रकाश नारायण संघ शिक्षा वर्ग में गए थे। कांग्रेस के नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे संपूर्णानंद ने पं. दीनदयाल उपाध्याय की किताब ‘पोलिटिकल डायरी‘ की प्रस्तावना लिखी थी। कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह के पिता उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह ‘राजा भैया‘ के पिता का स्थानीय संघ के नेताओं से बड़ा करीबी रिश्ता रहा है। राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, चंद्रभान गुप्ता और सुचेता कृपलानी सरीखे नेता संघ प्रमुख रहे रज्जू भैया के निरंतर संपर्क में रहे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे राम नरेश यादव 1977 में जब संघ से प्रतिबंध हटा तब आगरा में आयोजित होने वाले अभिनंदन समारोह के मंच पर थे। वामपंथी नेता हिरेन मुखर्जी, भूपेश गुप्ता और पी. राममूर्ति संघ के दंतोपंत ठेगड़ी से निरंतर संवाद में रहा करते थे। पी.वी. नरसिम्हा राव के साथ जो खांडेकर बतौर भरोसेमंद रहा करते थे वे संघ के ओ.टी.सी. प्रशिक्षित थे। यह विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है।
प्रणब मुखर्जी को संघ के कार्यक्रम में शिरकत करने से रोकने वालों को याद रखना चाहिए कि इंदिरा गांधी भी कांग्रेस की ही नेता थीं। संसद का सदस्य न होने के बावजूद दोनों सदन में जहां उन्हें श्रद्धांजलि दी गई उनमें कांग्रेस ही बहुमत में थी। इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद हुए लोक सभा चुनाव में देश की जरूरत को भांपते हुए संघ ने कांग्रेस के विजय रथ को गति दी थी।
ऐसे में भूतपूर्व से अभूतपूर्व होने की अभिलाषा पूरी करने या फिर भारत को जानने समझने की दिशा में कदम बढ़ाने का कोई इच्छुक व्यक्ति संघ के कार्यक्रमों में शिरकत करे तो हंगामा खड़ा करना लाजिमी नहीं है।
प्रणब मुखर्जी देश के राष्ट्रपति रहे हैं। राष्ट्रपति को देश की धरोहर की तरह मानना चाहिए। उसे प्रधानमंत्री की तरह जनता से वोट मांगने की विवशता से मुक्ति मिल जाती है। इसलिए उसका नजरिया पार्टी से ऊपर का होना चाहिए। वह भी तब जब उसका कार्यकाल समाप्त हो चुका हो। किसी भी कार्यकाल की समाप्ति के बाद भूतपूर्व हुए शख्स की अभिलाषा निःसंदेह अभूतपूर्व होने की होनी चाहिए। प्रणब मुखर्जी की भी अभिलाषा कुछ ऐसी ही दिख रही है। संघ का आमंत्रण स्वीकार करके उन्होंने उसी दिशा में कदम बढ़ाए हैं। कोई भी व्यक्ति तीन बातों से निर्दशित होता है, पहला अपना विवेक, दूसरा भावना, तीसरा प्ररेणा स्रोत। भारतीय राष्ट्र को समझने, उसके इतिहास को ग्रहण करने, बदलाव को अंजाम देने तथा बौद्धिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए संघ को समझे बिना काम चलने वाला नहीं है। इसके लिए संघ प्रेरणा स्रोत है। क्योंकि संघ की स्थापना ही 1925 में डाॅ. केशव बलिराम हेडगेवार ने भारत को यूरोपीय चश्में से न देखने के लिए ही की थी। हेडगेवार जी पर भारत सरकार डाक टिकट जारी कर चुकी है। आरएसएस की स्थापना के पहले वह भी कांग्रेस के सदस्य हुआ करते थे। खिलाफत आंदोलन में उनकी भूमिका के कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया था। सात साल की सजा सुनाई गई थी। वे कभी किसी भी सदन के सदस्य नहीं रहे। गोलवरकर जी पर सुरुचि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किताब बताती है कि उनके निधन पर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति वी.वी. गिरी ने कहा था कि गोलवरकर अपने ढंग से अत्यंत निष्ठापूर्वक आजीवन देश की सेवा करते रहे। देश की संसद ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा कि वे शक्तिशाली आस्था वाले व्यक्ति थे। अपने प्रभावी व्यक्तित्व और विचारों के प्रति अटूट निष्ठा के कारण राष्ट्रीय जीवन में उनका महत्वपूर्ण स्थान था। लोक सभा अध्यक्ष गुरुदयाल सिंह ढिल्लो, राज्यसभा के सभापति गोपाल स्वरूप पाठक, पुरी और कांची कामकोटि के शंकराचार्य, धर्मसंघ के संस्थापक स्वामी करपात्री, जैन संत आचार्य तुलसी और आचार्य विनोबा भावे सरीखे अनंत महत्वपूर्ण लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी थी।
जनता पार्टी की सरकार में मोराजी देसाई के साथ संघ के राजनीतिक फ्रंट के नेता भी शामिल थे। विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ जनता दल में संघ के इस राजनीतिक फ्रंट ने विलय करके कुर्बानी दी थी। 1963 में पं. जवाहर लाल नेहरू ने 26 जनवरी की परेड में संघ के स्वयं सेवकों को इसलिए शामिल होने का आमंत्रण दिया था क्योंकि 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान संघ ने बहुत सराहनीय कार्य किया था। पं. नेहरू के दो दिन के आमंत्रण पर 35 सौ गणवेषधारी स्वयं सेवक गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल हुए थे। बीबीसी पोर्टल पर ज्ञानेंद्र बरतरिया ने लिखा है कि लाल बहादुर शास्त्री ने 1965 के युद्ध के दौरान संघ से कानून व्यवस्था की स्थिति संभालने में मदद देने और दिल्ली का यातायात अपने हाथ में लेने का अग्रह किया था। कश्मीर की हवाई पट्टियों से बर्फ हटाने का काम स्वयं सेवकों ने 1965 में युद्ध के समय किया था। पाकिस्तान से जान बचाकर भारत आये शरणार्थियों के लिए स्वयं सेवकों ने तीन हजार से ज्यादे राहत शिविर चलाये थे। ‘भाग मिल्खा भाग‘ फिल्म में शिविरों में राहत सामग्री देने का काम करते हुए संघ के स्वयं सेवक देखे जा सकते हैं। जगन्नाथ राव जोशी की अगुवाई में संघ के स्वयं सेवकों ने 1955 में गोवा मुक्ति आंदोलन में शिरकत की थी। हालांकि वह 1961 में आजाद हुआ। आपात काल के दौरान संघ के बहुत से नेता जेल में रहे। उड़ीसा चक्रवात, भोपाल गैस त्रासदी, सिख विरोधी दंगे, गुजरात भूकंप, सुनामी, प्रलय, उत्तराखंड की बाढ़, कारगिल युद्ध के घायल लोगों की सेवा में संघ के लोग निःस्वार्थ जुटे दिखे। नेपाल, श्रीलंका और सुमात्रा में भी संघ के स्वयं सेवकों ने दैवीय आपदा के दौरान बहुत काम किया। कारखानों में विश्कर्मा जयंती की पूजा का चलन संघ के संगठन भारतीय मजदूर संघ की देन है। हमारे खोये हुए संस्कार के वापस लाने का व्रत संघ का संकल्प है।
आज समाज के संसाधनों और लोगों द्वारा संघ तकरीबन 1 लाख 80 हजार उपक्रम चला रहा है। संघ में बहुत बड़ी संख्या जीवन व्रती लोगों की है। संघ की शाखा में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी जा चुके हैं। 1978 में जयप्रकाश नारायण संघ शिक्षा वर्ग में गए थे। कांग्रेस के नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे संपूर्णानंद ने पं. दीनदयाल उपाध्याय की किताब ‘पोलिटिकल डायरी‘ की प्रस्तावना लिखी थी। कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह के पिता उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह ‘राजा भैया‘ के पिता का स्थानीय संघ के नेताओं से बड़ा करीबी रिश्ता रहा है। राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, चंद्रभान गुप्ता और सुचेता कृपलानी सरीखे नेता संघ प्रमुख रहे रज्जू भैया के निरंतर संपर्क में रहे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे राम नरेश यादव 1977 में जब संघ से प्रतिबंध हटा तब आगरा में आयोजित होने वाले अभिनंदन समारोह के मंच पर थे। वामपंथी नेता हिरेन मुखर्जी, भूपेश गुप्ता और पी. राममूर्ति संघ के दंतोपंत ठेगड़ी से निरंतर संवाद में रहा करते थे। पी.वी. नरसिम्हा राव के साथ जो खांडेकर बतौर भरोसेमंद रहा करते थे वे संघ के ओ.टी.सी. प्रशिक्षित थे। यह विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है।
प्रणब मुखर्जी को संघ के कार्यक्रम में शिरकत करने से रोकने वालों को याद रखना चाहिए कि इंदिरा गांधी भी कांग्रेस की ही नेता थीं। संसद का सदस्य न होने के बावजूद दोनों सदन में जहां उन्हें श्रद्धांजलि दी गई उनमें कांग्रेस ही बहुमत में थी। इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद हुए लोक सभा चुनाव में देश की जरूरत को भांपते हुए संघ ने कांग्रेस के विजय रथ को गति दी थी।
ऐसे में भूतपूर्व से अभूतपूर्व होने की अभिलाषा पूरी करने या फिर भारत को जानने समझने की दिशा में कदम बढ़ाने का कोई इच्छुक व्यक्ति संघ के कार्यक्रमों में शिरकत करे तो हंगामा खड़ा करना लाजिमी नहीं है।
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