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पंजाब में नया चुनावी समीकरण: बसपा से हाथ मिलाएगा अकाली दल, सीटों पर फंसा है पेंच
भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद अकाली दल को भी पंजाब में एक मजबूत सहयोगी की तलाश है।
नई दिल्ली: पंजाब में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सियासी दलों ने सक्रियता बढ़ा दी है। शिरोमणि अकाली दल इस बार के चुनाव में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने की कोशिश में जुटा हुआ है। नए कृषि कानूनों के मुद्दे पर भाजपा का साथ छोड़ने वाला अकाली दल इस बार बसपा के साथ मिलकर चुनाव में उतरने की तैयारी में है।
सियासी जानकारों का कहना है कि दोनों पार्टियों के प्रमुख नेताओं के बीच इस बाबत कई दौर की बातचीत हो चुकी है और दोनों दलों ने मिलकर सियासी मैदान में उतरने का अंतिम फैसला कर लिया है। सीटों को लेकर फंसे पेंच के कारण ही अभी तक गठबंधन की घोषणा नहीं की गई है मगर इस मुद्दे को भी जल्द सुलझा लिए जाने के आसार हैं।
बसपा मांग रही ज्यादा सीटें
दरअसल भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद अकाली दल को भी पंजाब में एक मजबूत सहयोगी की तलाश है। दलित वोट बैंक को को लुभाने के लिए पार्टी बसपा से हाथ मिलाने को पूरी तरह तैयार है। मामला सिर्फ सीटों को लेकर फंसा हुआ है। अकाली दल भाजपा कोटे की सीटें बसपा को देने को तैयार है। दूसरी ओर बसपा की ओर से ज्यादा सीटों की मांग की जा रही है।
इस मामले के जानकार लोगों का कहना है कि बसपा की ओर से करीब 40 सीटों की मांग की जा रही है जबकि अकाली दल बसपा को 18 से 20 सीटें ही देने को तैयार है।
लचीला रवैया अपनाने को तैयार
वैसे दोनों पार्टी के नेताओं का कहना है कि वे सीटों को लेकर और लचीला रवैया अपनाने को तैयार हैं। बसपा के पंजाब प्रभारी रणधीर सिंह बेनीपाल का कहना है कि अगर अकाली दल से गठबंधन के लिए दो-चार सीटें छोड़नी भी पड़ें तो हम इसके लिए पूरी तरह तैयार है। अकाली दल के नेता डॉ दलजीत सिंह चीमा ने भी इस बात की पुष्टि की है कि पार्टी बसपा के साथ मिलकर गठबंधन की रणनीति बनाने में जुटी है।
33 फीसदी वोट बैंक पर नजर
चुनाव में दलितों का वोट पाने के लिए विभिन्न सियासी दलों में खींचतान शुरू हो चुकी है। प्रदेश के 33 फीसदी दलित मतदाताओं के हाथ में सत्ता की कुंजी है और यही कारण है कि सभी सियासी दल इस वोट बैंक को लुभाने में लगे हैं। पंजाब कांग्रेस के झगड़े में भी दलितों की अनदेखी का मुद्दा छाया हुआ है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से नाराज नेताओं का आरोप है कि उनके राज में दलितों की सुनवाई नहीं की जा रही है और उसका पार्टी को खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
अकाली दल ने भी दलित वोट बैंक को लुभाने के लिए ही बसपा से हाथ मिलाने का फैसला किया है। बसपा मुखिया और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की दलित वोट बैंक पर मजबूत पकड़ मानी जाती है। अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल को उम्मीद है कि बसपा से गठजोड़ के बाद उनके गठबंधन को दलित वोट बैंक का फायदा मिलेगा।
दलित को डिप्टी सीएम बनाने का एलान
दलितों को लुभाने के लिए ही अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने बड़ा एलान भी किया है। उन्होंने कहा है कि चुनाव जीतने की स्थिति में वे दलित नेता को डिप्टी सीएम जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी सौंपेंगे।
पंजाब बसपा में अधिकांश नेता दलित ही है और माना जा रहा है कि बादल की घोषणा का लाभ बसपा के दलित नेता को ही मिलेगा। इसे दलितों का वोट पाने के लिए अकाली दल का बड़ा सियासी कदम बताया जा रहा है।
अकाली दल नेतृत्व की ओर से प्रदेश की सभी 117 विधानसभा सीटों पर सर्वे भी कराया जा रहा है ताकि दलित नेताओं की असली ताकत का पता चल सके। इसके साथ ही अकाली दल अपनी पार्टी के नेताओं की ताकत का भी पता लगाने में जुटा हुआ है। माना जा रहा है कि इसी आधार पर पार्टी नेतृत्व की ओर से टिकट बांटे जाएंगे।
भाजपा ने चला दलित सीएम का दांव
अकाली दल और बसपा में गठबंधन की आहट से भाजपा भी सतर्क हो गई है और भाजपा की ओर से भी दलितों को लुभाने की कोशिशें शुरू कर दी गई हैं। भाजपा ने दलित नेता को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की है। पार्टी का कहना है कि इस कदम से दलितों की अनदेखी का मुद्दा सुलझ सकेगा।
सियासी जानकारों का कहना है कि इस बार के विधानसभा चुनावों में दलितों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होगी। यही कारण है कि सभी सियासी दलों ने दलित वोट बैंक पर डोरे डालने शुरू कर दिए हैं।
वैसे माना जा रहा है कि अकाली दल और बसपा ने हाथ मिलाकर इस दिशा में दूसरे सियासी दलों पर बढ़त बना ली है। जानकारों के मुताबिक इन दोनों दलों की ओर से जल्द ही गठबंधन का औपचारिक एलान कर दिया जाएगा।